श्योपुर : प्रतिबंधित संगठन पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) के सीक्रेट डॉक्यूमेंट्स से बड़ा खुलासा हुआ है। पीएफआई का मकसद 2047 तक भारत में इस्लामिक सत्ता कायम करना है। कैसे करेंगे? इसका एक तरीका जब्त दस्तावेज में ही मिला- दलितों और आदिवासियों की मदद से चुनाव जीतना, ताकि सरकार में अपना दखल बड़ा सकें और अपने लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दे सकें। सीक्रेट इनपुट मिलने के बाद सबसे पहले चलते हैं श्योपुर से लगे दांतरधा पंचायत में। यहां पप्पू पठान रहते हैं। वे ठेकेदारी करते हैं। उनकी दूसरी पत्नी आदिवासी फूला बाई हैं। फूला ने हाल में जिला पंचायत का चुनाव लड़ा था। वह 1600 वोट से हार गई थीं। पत्रकार उनके पहुंचे तो फूला और पप्पू घर पर नहीं थे। फूला जब बाजार से लौटीं तो बुरका पहने हुए थीं, लेकिन बातचीत शुरू करने से पहले वह बुरका उतारकर आईं। फूला ने बताया कि बात कई साल पुरानी है। पप्पू पठान उनके घर आया-जाया करते थे, बस फिर उन्होंने अपने घर में जगह दे दी। बातचीत में बताया कि उनके 2 बच्चे हैं। वह भी पप्पू पठान के संयुक्त परिवार का हिस्सा हैं, साथ में रहती हैं और सारी रिवायतें पूरी करती हैं। फूला ही नहीं, फूला का भाई राजाराम भी इनके घर पर ही रहता है। राजाराम इस पंचायत का सरपंच चुना गया है।  राजाराम से पूछने पर बताया कि वह 5वीं तक पढ़ा है। पप्पू पठान ने ही उसे सरपंच बनवाया है। राजाराम ने ये भी बताया कि सरपंच का सारा काम उन्होंने पप्पू पठान को ही सौंप दिया है।  पप्पू कहते हैं कि पिछला चुनाव भी फूला हारी थी। इस बार भी हार गई, लेकिन आगे भी चुनाव लड़ेंगे। पैसों की कोई कमी नहीं होगी। फूला भी पप्पू के साथ खुश है। उसके घर परिवार वालों का भी वहां आना-जाना है।  गुड्डी सहरिया आदिवासी हैं और शाहबुद्दीन की दूसरी पत्नी हैं। वे हाल ही में हुए चुनाव से पहले इस गांव की सरपंच थीं। घर के आंगन में बातचीत करते हुए शाहबुद्दीन के परिवार की दूसरी बहू नौशीना कहती हैं कि वो कई साल से हमारे साथ हैं। हमारे साथ ही नमाज पढ़ती हैं। खाना खाती हैं। गुड्डी से शाहबुद्दीन की कोई संतान नहीं है। शाहबुद्दीन कहते हैं कि पहले वे खपरैल के मकान में रहते थे। गुड्डी सरपंच बनी, तो ये पक्का मकान बन गया। निकाह भले न किया हो, लेकिन वो रहती सलीम के साथ ही हैं। सलीम को पहली पत्नी से बच्चे हैं। सलीम की पहली पत्नी की मौत हो चुकी है। आसपास के लोग बताते हैं कि गुड्डी के नाम से सलीम आदिवासियों की पट्टे की जमीन खरीद लेता है।  इस संबंध में गुड्डी खुद बताया कि वह अपनी मां के साथ यहां रहती हैं। सलीम भी आता-जाता रहता है। पूछा गया कि नमाज कितने वक्त पढ़ती हो, तो बोलीं पूरे 5 वक्त। सीधे-सादे सहरिया आदिवासियों की ये कहानियां सिर्फ उदाहरण हैं। मुस्लिमों ने ही नहीं, दूसरे शक्तिशाली वर्गों ने भी सहरिया महिलाओं को अपने फायदे के लिए रख रखा है। इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि ये उनके नाम से जमीनें लेते हैं और मालिक खुद हो जाते हैं। गांधी सेवा आश्रम श्योपुर के संयोजक जय सिंह जादौन कहते हैं कि मुस्लिमों को मालूम है कि आदिवासियों की जमीन बेशकीमती है, इसलिए वे इनकी बहन-बेटियों से पहले अपनापन बढ़ाते हैं। संबंध बनाते हैं और फिर इनसे दूसरी शादी करते हैं। अपनी पत्नी को नहीं छोड़ते। ऐसे एक नहीं, बल्कि 50 उदाहरण आपको यहां मिल जाएंगे। सहरियाओं के सीधेपन का ये फायदा उठाते हैं। महीने भर पहले पूरे देश में पीएफआई के बड़े नेटवर्क का खुलासा हुआ है। पकड़े गए सदस्यों ने ये भी बताया कि श्योपुर के पास राजस्थान के कोटा में उनका ट्रेनिंग सेंटर हुआ करता था। पीएफआई सदस्यों से मिले दस्तावेज इशारा करते हैं कि उन्हें धीरे-धीरे दलित और आदिवासियों का भरोसा हासिल करना है। उनके वोट से ही वे देश में इस्लामिक सत्ता हासिल करना चाहते हैं।  राजस्थान की सीमा से सटे श्योपुर जिले में बदलते सामाजिक ताने-बाने की यह छोटी सी बानगी है। मुस्लिम समुदाय के लोग यहां आदिवासी महिलाओं को अपना बना रहे हैं। ज्यादातर मामलों में सहरिया आदिवासी महिलाएं उनकी दूसरी बीवी हैं। इन्होंने धर्म भले ही न बदला हो, लेकिन अब ये भी 5 वक्त नमाज पढ़ रही हैं। इन्हीं के नाम पर दूसरे आदिवासियों की जमीनें औने-पौने दाम में खरीद रहे हैं। श्योपुर हाल ही में कूनो पालपुर नेशनल पार्क में नामीबियाई चीतों की शिफ्टिंग के कारण चर्चा में आया था। चर्चा में आने की दूसरी वजह पीएफआई भी है। देश में जब प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के बढ़े नेटवर्क का खुलासा हुआ, तब पकड़े गए सदस्यों ने बताया कि श्योपुर में भी संगठन के कार्यकर्ता सक्रिय हैं।