पाकिस्तान की पहचान एक ऐसे देश के रूप में है जो कमजोर है, असफल है, कर्ज में डूबा है, अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करने में नाकाम है, आतंक की नर्सरी एवं प्रयोगशाला है, ढहती अर्थव्यवस्था है, इन बड़ी नाकामियों को ढकने के लिए ही वह कश्मीर का राग अलापता रहा है, वहां के नेता एवं सैन्य अधिकारी तमाम जर्जरताओं एवं निराशाओं के बावजूद आज भी हिंदू और भारत विरोध को ढाल बनाकर ही अपनी सत्ता मजबूत करते रहे हैं। लेकिन अब उसका चेहरा इतना बदनुमा बन गया है कि उसने धर्म के नाम पर निर्दोष एवं बेगुनाह लोगों का खून बहाना शुरू कर दिया है। भारत ही नहीं, दुनिया में आतंक को फैलाने में अपनी जमीन, संसाधन एवं ताकत का प्रयोग खुलेआम करना शुरू कर दिया है, यह उसकी बौखलाहट ही है, यह उसकी निराशा ही है, यह उसकी विकृत सोच ही है। इस घिनौनी सोच का पर्दाफाश पहलगाम के खौफनाक आतंकी हमले के रूप में पूरी दुनिया के सामने हुआ है। विडंबना तो यह है कि भारत तथा अंतर्राष्ट्रीय दबाव के आगे लाचार हुए पाकिस्तान के सत्ताधीशों ने स्वीकार किया कि वे पिछले तीस साल से आतंक की फसल सींच रहे थे। भारत ने पूरी दुनिया को मुंबई के भीषण हमले, संसद पर हुए हमले तथा पुलवामा से लेकर उड़ी तक की आतंकवादी घटनाओं में पाक की संलिप्तता के मजबूत सबूत बार-बार दिए, लेकिन अमरीका व उसके सहयोगी देशों एवं चीन ने इसे अनदेखा ही किया। लेकिन इस बार की पहलगाम घटना ने इन देशों के साथ पूरी दुनिया को झकझोर दिया है और पाकिस्तान के प्रति उनकी सोच बदली है।
निश्चित रूप से एक राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान की विफलता जगजाहिर हो गई है, लेकिन उसके आतंकवादी होने के पुख्ता प्रमाणों ने दुनिया को एकजुट कर दिया है, यही कारण है कि दुनिया से वह अलग-थलग अकेला खड़ा है। पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि पिछले तीस साल से पाक आतंकवादी तैयार करने का काम कर रहा था। साथ ही उन्होंने यह भी सफाई दी कि पाकिस्तान ने ये गंदा काम अमरीका व ब्रिटेन जैसे देशों के कहने पर किया। सवाल यह है कि क्यों पाक ने एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में अपने नैतिक दायित्व का पालन नहीं किया? क्यों उसने किन्हीं दूसरे देशों के कहने पर अपनी जमीन को आतंक की उर्वरा भूमि बनने दिया? क्यों उसने इस्लाम को आधार बनाकर कट्टरपंथ की फसल सींची? पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ की यह स्वीकारोक्ति भारत द्वारा लंबे समय से लगाए जा रहे उन आरोपों की पुष्टि ही है, जिसमें पाक को आतंक की पाठशाला बताया गया था। सोचने वाली बात तो यह भी है कि उसने इस्लाम एवं मुसलमान समुदाय को भी अपने गलत एवं गंदे मनसूंबों के लिए इस्तेमाल किया। यह कारण है कि अपने धर्म को धुंधलाने एवं बेजा इस्तेमाल का फल उसे तमाम असफलताओं एवं पराजयों के रूप में मिला है, अन्यथा इस्लाम का पवित्र उपयोग करने वाले देश तो दिनोंदिन आगे बढ़ रहे हैं, समृद्ध हो रहे हैं, अपने लोगों को उन्नत जीवन प्रदत्त कर रहे हैं, दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाकर खड़े है।
दुनिया पाकिस्तान के बदसूरत चेहरे को देख चुकी है, फिर भी दुनिया को बताना चाहिए कि पुलवामा हमले से पहले कैसे पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने कट्टरपंथियों जैसा भड़काऊ बयान दिया था। जिसके कुछ समय बाद ही पहलगाम जैसा भयानक आतंकी हमला सामने आया। भारत को दुनिया को बताना चाहिए कि किस तरह पाकिस्तान दुनिया की शांति, अमन एवं उन्नत संसार-निर्माण के लिये खतरा बना हुआ है। जिसको सख्त आर्थिक प्रतिबंधों के जरिए आतंक से दूरी बनाने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। निश्चय ही अब पाक को सबक सिखाने का वक्त आ गया है। आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान सुधर नहीं सकता, अतीत में भारत से तीन युद्ध हारने के बावजूद उसने कुछ सबक नहीं लिया। भारत को नुकसान पहचाने की नीति पर वह आज भी कायम है। भारत की अलग-अलग समय की सरकारों ने अनेक कोशिशें पाकिस्तान से संबंध सुधारने की है, लेकिन पाकिस्तान सुधरा नहीं। भारत के संबंध सुधार, शांति एवं पड़ोसी देश-धर्म के प्रयासों का जबाव उसने हमेशा आतंकवादी घटनाओं के रूप में ही दिया। भारत के इन सकारात्मक प्रयासों के बदले कभी कारगिल मिला, कभी पठानकोट, कभी उरी तो कभी मुंबई। लेकिन इस बार के पहलगाम के नृशंस आतंकी हमले के बाद हर भारतीय, यहां तक हर कश्मीरी की जुबान पर एक ही सवाल है कि इस पाकिस्तान का इलाज क्या है? लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ बड़ा और आरपार का करने के मुड़ में है। अब तक प्रधानमंत्रियों में वे सर्वाधिक शक्ति संपन्न एवं हौसले वाले महानायक है। पाकिस्तान इस समय बहुआयामी संकट का सामना कर रहा है, आंतरिक असंतोष, आर्थिक पतन एवं घटती अंतर्राष्ट्रीय प्रासंगिकता के चलते वह बौखलाहट का शिकार है। इसी का परिणाम है कि वह भारतीय कार्रवाई के जवाब में परमाणु बम से हमले की धमकी, सिंधु नदी को रक्त से भरने तथा कश्मीर मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण जैसे अनाप-शनाप बयानों से वह अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी चलाता हुआ दिख रहा है। चीन पर उसका भरोसा भी उसे निराश ही करेगा।
भारत की एकता, कश्मीर की शांति एवं विकास एवं आतंकवाद की कमर तोड़ने के लिए अब पाकिस्तान को केवल सैन्य कार्रवाई से नहीं, बल्कि आर्थिक, राजनयिक एवं वैश्विक दबाव से पंगु बनाना होगा। पाकिस्तान के लिए स्थिर पड़ोसी का विचार छोड़कर रणनीतिक विखंडन के जरिए क्षेत्रीय परिदृश्य को नया आकार देना समय की जरूरत है। सिंध एवं बलुचिस्तान अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं, आजाद कश्मीर को भारत में मिलाने की जरूरत है। इस रणनीतिक एवं कूटनीतिज्ञ उद्देश्य के लिए एक दूरगामी, बहुआयामी एवं निर्णायक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसकी पहल लक्षित सर्जिकल स्ट्राइक और प्रमुख आतंकी सरगनाओं को मिटाकर आतंकी केंद्रों को ध्वस्त करके ही हो सकती है।
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