वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है। वैसे-वैसे राजनीतिक दल अपनी रणनीति बनाने में तेजी से जुट गए हैं। जहां विपक्ष गोलबंद होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय रथ को झटका देना चाहता है, वहीं भाजपा अपने को मजबूत करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। विपक्षी दलों के गठबंधन टीम इंडिया में जहां 26 दल शामिल हुए वहीं एनडीए की बैठक में 38 दल शामिल हुए। इसका अर्थ यह है कि देश के 64 राजनीतिक दल या तो इंडिया के साथ हैं या एनडीए के। लेकिन देश के 11 राजनीतिक दल अभी भी तटस्थ हैं जो न तो एनडीए के साथ हैं और न ही इंडिया के। ऐसे राजनीतिक दल देश के 91 लोकसभा सीटों से जीतकर आते हैं। वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल एवं भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) का अपने-अपने राज्यों में अच्छा प्रभाव है। तीनों पार्टियां सत्ता में हैं तथा तीनों के कुल 65 सांसद हैं। वाईएसआर कांग्रेस का आंध्र प्रदेश में दबदबा है, जबकि बीआरएस का तेलंगाना में।

बीजू जनता दल पिछले कई वर्षों से ओडिसा में शासन में है। कई बार बीजू जनता दल के सांसदों ने संसद के फ्लोर पर महत्वपूर्ण मुद्दों पर भाजपा का साथ भी दिया है। तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), शिरोमणि अकाली दल (एसएडीए), शिरोमणी आकाली दल (मान), जनता दल (एस), राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, ओवैसी की नेतृत्व वाली एआईएमआईएम, एआईयूडीएफ जैसी पार्टियां तटस्थ रुख अपनाए हुए हैं। बहुजन समाज पार्टी का अभी भी उत्तर प्रदेश में दलित मतदाताओं पर अच्छी पकड़ है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने हाल ही में घोषणा की है कि वह राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश एवं तेलंगाना विधानसभा के चुनाव में अकेले लड़ेगी। इसका मतलब है कि विपक्षी दलों के वोटों में बंटवारा होना निश्चित है। इसी तरह जनता दल (सेक्युलर) का कर्नाटक में तथा शिरोमणी अकाली दल (एसएडी) का पंजाब में अच्छी पकड़ है। एआईएमआईएम का हैदराबाद, तेलंगाना तथा बिहार उत्तर प्रदेश एवं कुछ अन्य राज्यों में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव है। कुल मिलाकर विपक्षी एकता में जो दरार है उसका फायदा भाजपा को निश्चित रूप से मिलेगा।

बीजू जनता दल भले ही किसी भी गुट में नहीं हो, किंतु समय आने पर भाजपा का समर्थन करती रही है। दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से निकलता है। उसको देखते हुए भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए लगातार पहल कर रही है। अपनी योजना के मुताबिक भाजपा उत्तर प्रदेश की सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों के नेताओं को अपने साथ जोड़ने का अभियान चला रही है। भाजपा ने इसका नाम मिशन दोस्ती रखा है। इसके तहत भाजपा उत्तर प्रदेश के सभी छोटे और बड़े सियासी दलों में सेंध लगानी शुरू कर दी है ताकि 2024 की मजबूत टीम बन सके। पार्टी ने समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी एवं कुछ स्थानीय पार्टियों के नेताओं को अपने साथ जोड़ लिया है। बसपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य राजपाल सैनी, सपा सरकार में मंत्री रहे साहब सिंह सैनी व जगदीश सोनकर, पूर्व विधायक सुषमा पटेल, अंशुल वर्मा सहित कई नेता भाजपा के खेमे में पहुंच चुके हैं।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का कहना है कि सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस के और कई नेता भाजपा में शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि केवल ऐसे नेताओं को शामिल किया जा रहा है जो हमारे विचारधारा से मेल खाते हैं। ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भी भाजपा से हाथ मिला लिया है। इन पार्टियों का छोटे-छोटे क्षेत्रों पर अच्छा प्रभाव है जिसका लाभ भाजपा को अगले चुनाव में मिल सकता है। भारतीय जनता पार्टी अपने इस अभियान को सियासी समीकरण से जोड़कर देख रही है तथा आगे बढ़ा रही है। पश्चिमी यूपी में सैनी समाज का बड़ा वोट बैंक है जो साहब सिंह सैनी एवं राजपाल सिंह सैनी के आने से मजबूत होगा। सुषमा पटेल पूर्वांचल में कुर्मी समाज में भाजपा का जनाधार बढ़ाने में सहायक होंगी। इसी तरह सोलकर समाज में जगदीश सोलकर की अच्छी पकड़ है। कुल मिलाकर भाजपा उत्तर प्रदेश में हर तरह से अपने को मजबूत करने में जुट गई है।