संसद के मानसून सत्र में नरेंद्र मोदी सरकार को घेरने के लिए विपक्ष पूरी तरह कमर कस चुका है। विपक्ष चाहता है कि मणिपुर के मुद्दे पर संसद में बहस हो। सत्ताधारी दल भाजपा भी बहस को तैयार है लेकिन भाजपा मणिपुर के साथ-साथ राजस्थान, छत्तीसगढ़ एवं पश्चिम बंगाल में महिलाओं के साथ हुए दुव्र्यवहार को भी बहस का मुद्दा बनाएगी। विपक्ष चाहता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में आकर मणिपुर के मुद्दे पर बयान दें। मालूम हो कि पिछले मई माह में मणिपुर की दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया गया था, जिसका वीडियो हाल में वायरल हुआ है। 26 विपक्षी दलों के गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इनक्लूसिव एलायंस (इंडिया) की तरफ से लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है, जिसे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने स्वीकार कर लिया है।
चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने भी लोकसभा अध्यक्ष को अलग से अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है। अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए कम से कम उस नोटिस पर 50 सांसदों के हस्ताक्षर होना जरूरी है। अब इस अविश्वास प्रस्ताव पर अगले कुछ दिन में चर्चा होगी। यह सबको मालूम है कि भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के पास 330 से ज्यादा सांसदों का समर्थन प्राप्त है, जिसमें अकेले भाजपा के 301 सांसद हैं। विपक्ष के पास लोकसभा में कुल 142 तथा राज्यसभा में 96 सांसद हैं। विपक्ष को मालूम है कि लेाकसभा में सत्ताधारी एनडीए को भारी बहुमत है। ऐसी अवस्था में सरकार गिरने का कोई भय नहीं है।
किंतु विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव पर होने वाली चर्चा के दौरान मोदी सरकार की कमियों को उजागर करने का प्रयास करेगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री ने अभी तक मणिपुर के मुद्दे पर संसद में कोई बयान नहीं दिया है। विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से प्रधानमंत्री को संसद में बयान देने के लिए मजबूर करने का प्रयास किया है। प्रधानमंत्री ने संसद के बाहर मणिपुर के मुद्दे पर जरूर बयान दिया है, जिसमें उन्होंने इस घटना की कड़ी ङ्क्षनदा करते हुए देश को सख्त कार्रवाई करने का भरोसा दिलाया है। मोदी सरकार के खिलाफ यह दूसरा अविश्वास प्रस्ताव है। इससे पहले 20 जुलाई 2018 को तेलगू देशम पार्टी ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जो भारी बहुमत से निरस्त हो गया।
आजादी के बाद वर्तमान अविश्वास प्रस्ताव को छोड़कर अब तक कुल 27 अविश्वास प्रस्ताव विभिन्न प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में पेश हो चुके हैं, जिसमें सबसे ज्यादा स्व. इंदिरा गांधी के कार्यकाल में कुल 15 अविश्वास प्रस्ताव पेश हुए थे। बेंगलुरू में टीम इंडिया के गठन के बाद विपक्ष अचानक सक्रिय हो गया है। संसद के मानसून सत्र में भी विपक्ष की सक्रियता देखने को मिल रही है। पटना के अधिवेशन में राहुल गांधी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का दबदबा था। लेकिन बेंगलुरू अधिवेशन को कांग्रेस ने हाईजैक कर लिया। राहुल गांधी के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े एवं लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी के एक साथ उस बैठक में भाग लेने से स्थिति बदल गई। विपक्ष के उस बैठक में सोनिया गांधी चर्चा के केंद्र में आ गई। 15 अगस्त के बाद इंडिया की होने वाली अगली बैठक में विपक्षी दलों के भविष्य की दिशा और दशा तय होगी।
उस बैठक में इंडिया के अध्यक्ष एवं संयोजक का चुनाव भी हो सकता है। वैसे कांग्रेस चाहती है कि बड़ी पार्टी होने के नाते सोनिया गांधी को इसका अध्यक्ष बनाया जाए। सोनिया गांधी की विपक्षी नेताओं के बीच अच्छी पैठ है। संसद के वर्तमान सत्र के दौरान भी खडग़े और सोनिया गांधी की सक्रियता देखी जा रही है। खडग़े लगातार विपक्षी दलों के साथ बैठक कर संसद में अपनाई जाने वाली रणनीति तय कर रहे हैं, जबकि सोनिया गांधी भी लोकसभा में सक्रिय हो गई हैं। भाजपा भी विपक्ष की मुहिम से अनजान नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए सांसदों के साथ बैठक में सभी को निर्देश दिया है कि वे लोकसभा तथा राज्यसभा में विपक्ष के आरोपों का करारा जवाब दें। भाजपा भी राजस्थान, छत्तीसगढ़ एवं पश्चिम बंगाल के मुद्दे को प्रमुखता से उठाने के लिए होमवर्क कर चुकी है। गृह मंत्री अमित शाह पहले ही इस मुद्दे पर बयान देकर भाजपा के इरादों को स्पष्ट कर चुके हैं। अगले साल लोकसभा चुनाव को देखते हुए पक्ष और विपक्ष दोनों आक्रामक मुद्रा में हैं। कौन पक्ष कितना लाभ उठाता है, यह तो बहस के बाद ही पता चलेगा। अब देशवासियों की नजर अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सत्ताधारी व विपक्ष के बीच होने वाली जोर आजमाइश पर टिकी हुई है।