पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा शहर गुवाहाटी स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल है, इसकी घोषणा पिछले आठ साल पहले की गई थी, परंतु फिलवक्त शहर को देखकर ऐसा नहीं लग रहा कि इसमें कुछ स्मार्टनेस आई है। निस्संदेह महानगर गुवाहाटी को स्मार्ट बनाने के लिए कई फ्लाईओवर बनाए गए हैं और कुछ बन रहे हैं तो कुछ प्रस्तावित हैं। कई स्थानों पर आने-जाने की सुविधा के लिए आधुनिक फुटओवरब्रिज भी बनाए गए हैं, कुछ फुटओवरब्रिजों में स्वचालित एक्सीलेटर भी लगे हुए हैं, जो बिना चले ही यात्रियों को सड़क के इस पार से उस पार पहुंचा देते हैं। समय-समय पर फ्लाईओवरों और सड़कों के आस-पास के इलाकों का रंग-रोगन होता देख प्रतीत होता है कि शहर अभी पूरी तरह स्मार्ट भले ही नहीं हुआ है, परंतु इसको स्मार्ट बनाने की प्रक्रिया चल रही है। इसी बीच पेयजल के लिए पाइप लगाने का काम चल रहा है, जिसके लिए सड़कों को कई जगह खोदा गया है और इससे बनने वाले गड्डों ने  इसके स्मार्टनेस पर काली छाया  डाल दी है। दूसरी ओर इन गड्डों में गिरकर कई लोग घायल हो चुके हैं तो इसकी वजह से दो लोगों की मौत भी हो चुकी है।

इन दिनों पेयजल पाइप लाइन के फटने की घटना यकायक बढ़ गई है। यहां उल्लेखनीय है कि केंद्र और राज्य सरकार गुवाहाटी को हरा-भरा और स्मार्ट बनाने के लिए कई परियोजनाओं पर कार्य कर रही है, परंतु आज तक पेयजल आपूर्ति की समस्या का समाधान नहीं हुआ है। यह समस्या घटने की जगह और बढ़ती जा रही है तथा वाटर माफिया रोज लाखों कमा रहे हैं। दूसरी ओर साफ-सफाई के  क्षेत्र में भी काफी कुछ किए जाने की जरूरत है। साथ ही महानगरवासी फुटपाथ की बदहाली और सड़क जाम से बहुत ही परेशान हैं। इस तरह देखा जाए तो गुवाहाटी भले ही स्मार्ट बनने की ओर अग्रसर है, परंतु स्मार्ट बनने से अभी कोसों दूर है।  उल्लेखनीय है कि भारत में स्मार्ट सिटीज मिशन की शुरुआत जून 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की थी।  इस मिशन के तहत देश भर के सौ शहरों को चुना गया ताकि उन्हें साफ और टिकाऊ वातावरण के साथ-साथ आधारभूत ढांचा प्रदान करके विकास किया जाए।

सरकार ने इस मिशन के लिए शुरुआती तौर पर 22 अरब डॉलर से ज्यादा की राशि निर्धारित की थी। सिटी प्लानर और वास्तुविद चेतावनी दे रहे हैं कि भारत के महानगरों पर प्रवासियों की भारी संख्या का पहले से ही भारी दबाव है और ये बड़ी आसानी से शहरी अराजकता के शिकार हो सकते हैं। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत देश भर में करीब 7,800 परियोजनाओं को शुरू किया गया जिनका लक्ष्य आर्थिक विकास के साथ-साथ जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना था, इनमें से करीब 73 फीसदी परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, लेकिन कुछ शहरों का इस मायने में प्रदर्शन अन्य की तुलना में बहुत खराब रहा है। वित्तीय जवाबदेही को मजबूत करने और उसे सुधारने के मकसद से काम करने वाली एक स्वतंत्र संस्था सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि परियोजना पूरी होने में यह देरी इसलिए हो रही है क्योंकि यह परियोजना देश भर के सौ अलग-अलग शहरों में फैली है।

कुछ शहरों का ट्रैक रिकॉर्ड तो अच्छा है, लेकिन अन्य शहरों का प्रदर्शन परियोजनाओं को लागू करने के लिहाज से खराब रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है, यह विषमता इन परियोजनाओं के लिए दिए गए धन के उपयोग की रफ्तार में भी देखी जा सकती है। कुछ शहरों में परियोजना पूरी होने का ट्रैक रिकॉर्ड तो अच्छा है लेकिन इनके लिए जिस तरह से पैसे खर्च किए गए, वह सही नहीं है। परियोजना में लगे लोगों को शुरुआत में स्मार्ट सिटी मिशन को 2020 तक पूरा कर लेने की उम्मीद थी, लेकिन उस साल कोविड महामारी की वजह से इसे पूरा करने का लक्ष्य 2023 तक बढ़ा दिया गया, लेकिन कई शहरों में अभी भी परियोजना पूरी होने में काफी समय है, इसलिए अधिकारियों ने इसकी डेडलाइन एक बार फिर से बढ़ाकर जून 2024 कर दी है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जब तक सरकार और अधिकारी ईमानदारी से शहरों को स्मार्ट बनाने का प्रयास नहीं करेंगे, तब तक समस्या का समाधान नहीं होगा।