जलवायु किसी राष्ट्र विशेष के रहन-सहन, खान-पान और कृृषि अर्थव्यवस्था आदि के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में लगभग 60 प्रतिशत लोग अपनी आजीविका  के लिए कृृषि पर निर्भर हैं। वर्तमान में भारत सहित संपूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन की समस्या से जूझ रहा है। पर्यावरण में अनेक परिवर्तन हो रहे हैं यथा तापमान में बढ़ोत्तरी, वर्षा में कमी और हवाओं की दिशा में परितर्वन आदि का प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहे हैं। किसी स्थान विशेष के दीर्घकालीन मौसम संबंधी दशाओं के औसत को जलवायु कहते हैं यथा वायुमंडलीय दबाव, आद्र्रता और तापमान आदि पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है।

आमतौर पर  जलवायु सामान्यत: स्थिर रहती है, परंतु वर्तमान में स्थानीय एवं वैश्विक जलवायु में मानवीय एवं प्राकृृतिक कारणों से परिवर्तन देखने को मिल रहा है। जलवायु में दिखने वाले ये परिवर्तन लंबे समय का परिणाम हैं, जिसके न केवल क्षेत्रीय एवं वैश्विक प्रभाव देखने को मिल रहे हैं बल्कि संपूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रहा है।

उल्लेखनीय है कि बीसवीं शताब्दी के उत्तराद्र्ध में उत्तरी गोलाद्र्ध का औसत तापमान विगत 500 वर्षों की तुलना में काफी अधिक था। हिमांक मंडल लगातार सिकुड़ रहा है पिछले दशक में अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने की दर तीन गुना हो गई है। विगत शताब्दी में वैश्विक समुद्र स्तर में लगभग 8 इंच की वृद्धि देखी गई है। महासागरों का अम्लीकरण भी इसकी पुष्टि करता है। उल्लेखनीय है कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन यथा कार्बनडाई आक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फरडाई ऑक्साइड आदि के उत्सर्जन में वृद्धि पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि का एक प्रमुख कारण है। भूमि उपयोग में परिवर्तन भी इसके लिए जिम्मेदार है यथा इससे सतह के एल्बीडो में वृद्धि हुई है। इसके अलावा वनोन्मूलन, पशुपालन, कृषि में वृद्धि, नाइट्रोजन उर्वरकों का कृृषि में उपयोग आदि क्रियाएं भी जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं। कृृषि को जलवायु परिवर्तन ने व्यापक स्तर पर नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।

सर्वविदित है  कि भारत की अधिकांश कृृषि वर्षा आधारित है जिस पर मानसून की अनिश्चितता बनी रहती है। जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून और अधिक अनिश्चितता हुआ है। साथ ही वर्षा के असामान्य वितरण से कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा जैसी स्थितियां दृष्टिगोचर हो रही हैं। इसके अलावा पूर्वोत्तर भारत में बाढ़, पूर्वी तटीय क्षेत्रों में चक्रवात, उत्तर-पश्चिम में सूखा, मध्य व उत्तरी क्षेत्रों में गर्म लहरों की बारंबारता एवं तीव्रता में वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म लहरों की तीव्रता ने न केवल पशुओं की रोगों के प्रति सुभेद्यता बढ़ाई है बल्कि प्रजनन क्षमता व दुग्ध उत्पादन में भी कमी आई है। खाद्य एवं कृृषि संगठन के अनुसार भारत को  लगभग 125 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन का नुकसान हुआ है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2100 तक भारतीय ग्रीष्म मानसून की तीव्रता में 10 प्रतिशत तक ही वृद्धि  हुई है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार गेहूं के उत्पादन में 4-5 मिलियन टन  की कमी होती है। अत्यधिक गर्मी के कारण सिंधु-गंगा के मैदानी क्षेत्रों में होने वाली गेहूं की उपज में 51 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। जलवायु परिवर्तन के कारण परागणकारी कीटों यथा तितलियों, मधुमक्खियों की संख्या में कमी से कृृषि उत्पादन नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा है। कुल मिलाकर जो स्थिति सामने आ रही है,वह काफी भयावह है। जलवायु परिवर्तन के कारण एशिया और यूरोप  की जलवायु पूरी तरह से बदल गई है जहां कभी ठंड पड़ती थी, वहां अब गर्मी पड़ रही है।

भारत में किसी-किसी राज्य में नवंबर तक गर्मी पड़ रही है तो दूसरी ओर यूरोप में जहां जिस महीने में बर्फ पड़ती थी,वहां अब उस महीने में बर्फ का अता-पता नहीं है। मौसम को बदलते देर नहीं लगती, कब गर्मी और कब ठंड पडऩे लगेगी किसी को पता नहीं होता है, यह जो  कुछ हो रहा है, इसके लिए हम खुद जिम्मेवार हैं। इसलिए सभी देशों को मिलजुलकर इस समस्या के समाधान करने की जरूरत है। किसी एक या दो देशों पर दोषमरण कर समस्या का समाधान नहीं हो सकता, इस  पर विचार करने की जरूरत है।