पिछले 20 जुलाई से संसद का मानसून सत्र चल रहा है। मणिपुर के मुद्दे को लेकर पिछले करीब दस दिनों से संसद के दोनों सदनों लोकसभा एवं राज्यसभा में कोई कामकाज नहीं हो रहा है। सत्तापक्ष एवं विपक्ष के बीच चल रही तनातनी की भेंट चढ़ रहा है संसद का वर्तमान सत्र। पक्ष एवं विपक्ष के सदस्यों के व्यवहार से आहत होकर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने आज लोकसभा की कार्यवाही का संचालन नहीं किया। उन्होंने कहा कि संसद की मर्यादा एवं गरिमा बचाने की जिम्मेवारी सभी की है। उन्होंने कहा कि जब तक सभी सदस्य इस दिशा में आगे नहीं बढ़ेंगे तब तक वे लोकसभा की कार्यवाही का संचालन नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि लोकसभा के कुछ सदस्यों का व्यवहार लोकतंत्र के अनुरूप नहीं है। कुछ सांसदों का अमर्यादित व्यवहार पूरा देश देख रहा है। इसके बावजूद सदस्यों पर लोकसभा अध्यक्ष की अपील का कोई असर नहीं दिख रहा है।
2 अगस्त को जैसे ही लोकसभा के पीठासीन अधिकारी ने सदन की कार्यवाही शुरू की उस समय विपक्षी सदस्य पीठासीन अधिकारी के आसन के नजदीक पहुंच गए तथा नारेबाजी करने लगे। विपक्षी पाॢटयों के सदस्य नियम 267 के तहत चर्चा कराने की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार इस नियम के तहत चर्चा को तैयार नहीं है। केंद्र सरकार दूसरे नियम के तहत चर्चा करवाना चाहती है जो विपक्ष को स्वीकार नहीं है। विपक्षी पार्टी के नेता मणिपुर के मुद्दे पर संसद में प्रधानमंत्री से बयान देने की मांग कर रहे हैं। इस बारे में विपक्षी नेताओं ने 2 अगस्त को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से भेंटकर मणिपुर की वर्तमान स्थिति से अवगत कराया एवं प्रधानमंत्री से संसद में आकर बयान देने के लिए सलाह देने की मांग की। ऐसी ही मांग उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनकड़ से की गई है।
भाजपा मणिपुर के मुद्दे के साथ-साथ पश्चिम बंगाल एवं राजस्थान के मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाना चाहती है। अगर संसद में मणिपुर पर बहस शुरू हुई तो निश्चित रूप से पश्चिम बंगाल एवं राजस्थान का मुद्दा भी उठेगा। लोकतंत्र में संसद के सत्र का काफी महत्व है। संसद में देश के प्रमुख मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए ताकि समस्या का हल निकाला जा सके। देश के जनप्रतिनिधियों को जनता की गाढ़ी कमाई को बर्बाद करने का कोई अधिकार नहीं है। देश के प्रत्येक सांसद को वेतन, भत्ता, कार्यालय एवं सचिवालय खर्च आदि मिलाकर एक महीने में 1,40,000 रुपए मिलते हैं। प्रत्येक सांसद को 34 हवाई यात्रा नि:शुल्क मिलती है। संसद सत्र के दौरान प्रत्येक सांसद को 8 हवाई यात्रा नि:शुल्क मिलती है। ट्रेन यात्रा की तो कोई सीमा ही नहीं है।
इसके अलावा बहुत सारी सुविधाएं भी मिलती हैं। ऐसी स्थिति में सांसदों को हंगामा मचाकर जनता के पैसे को बर्बाद करने का कोई अधिकार नहीं है। संसद का सत्र नहीं चलने के कारण प्रतिदिन देश को 10.5 करोड़ का नुकसान हो रहा है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लगभग दस दिनों के दौरान देश को कितना घाटा हुआ है। हमारे जनप्रतिनिधियों को लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करना होगा, चाहे वो सत्तापक्ष के हों या विपक्ष के। राजनीतिक पाॢटयां कहीं सत्ता में हैं तो कहीं विपक्ष में। देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बचाने के लिए सभी राजनीतिक पाॢटयों को सकारात्मक सोच के साथ आगे आना होगा। सत्तापक्ष एवं विपक्ष दोनों ही लोकतंत्र के दो मजबूत धुरी हैं। केवल राजनीतिक स्वार्थ के लिए संसद के वर्तमान सत्र की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती।