संसद के दोनों सदनों लोकसभा एवं राज्यसभा में दिल्ली सर्विस बिल पारित हो गया है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही यह विधेयक कानून बन जाएगा। लोकसभा में नरेन्द्र मोदी सरकार के पास भारी बहुमत होने के कारण इस विधेयक के पारित होने में कोई संदेह नहीं था। पिछले 3 अगस्त को लोकसभा में भारी बहुमत से इसे पारित कर दिया था। सरकार के सामने मुख्य चुनौती इस विधेयक को राज्यसभा से पारित करवाने की थी। 7 अगस्त को राज्यसभा में इस विधेयक पर पूरे दिन चर्चा के बाद सदन ने इसे पारित कर दिया। राज्यसभा में वर्तमान में कुल 238 सांसद हैं जिसमें आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया। ऐसी स्थिति में राज्यसभा में बहुमत के लिए सरकार को 119 सांसदों के समर्थन की जरुरत थी। मतदान के दौरान विधेयक के पक्ष में 131 वोट पड़े, जबकि विपक्ष में केवल 102। नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) के पास 102 सांसद हैं।

बीजू जनता दल के 9 तथा वाईएसआर कांग्रेस के 9 सांसदों के सहयोग से केंद्र सरकार ने अपना नंबर 131 तक पहुंचा दिया। राज्यसभा से दिल्ली सर्विस बिल का पारित होना दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तथा विपक्षी गठबंधन इंडिया के लिए बहुत बड़ा धक्का है। मालूम हो कि पिछले 11 मई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली सरकार के तहत कार्यरत अधिकारियों के ट्रांसफर एवं पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली के उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र से हटाकर मुख्यमंत्री को दे दिया गया था। इसके बाद केंद्र सरकार ने दो दिनों के बाद ही अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। केंद्र का मानना है दिल्ली देश की राजधानी है, इसलिए महत्वपूर्ण अधिकार केंद्र सरकार के पास रहना चाहिए। इस विधेयक पर हुए बहस के दौरान सत्तापक्ष के सदस्यों ने अपने पक्ष में कई देशों की राजधानियों का जिक्र किया जहां राजधानी से संबंधित महत्वपूर्ण अधिकार केंद्र सरकार के पास है। आम आदमी पार्टी सहित विपक्ष के नेताओं ने इस विधेयक को गुलामी का प्रतीक बताया। विपक्षी सदस्यों ने कहा कि केंद्र सरकार दिल्ली सरकार के अधिकारों को अपने हाथ में लेकर लोकतंत्र का गला घोंटना चाहती है।

विधेयक पर जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि केजरीवाल सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आनन-फानन में विजिलेंस विभाग के फाइल को अपने कब्जे में लेना चाहती थी ताकि उनके खिलाफ चल रही जांच को कमजोर किया जा सके। मालूम हो कि आबकारी नीति घोटाले में पहले ही दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जेल में हैं। मुख्यमंत्री आवास निर्माण के मामले में हुई अनियमितता की भी जांच होने वाली है। ऐसी स्थिति में अगर विजिलेंस विभाग राज्य सरकार के मातहत आता है तो जांच प्रभावित हो सकती है। आम आदमी पार्टी इसी मुद्दे पर गठबंधन में शामिल हुई थी कि कांग्रेस संसद के दोनों सदनों खासकर राज्यसभा में केंद्र सरकार का विरोध करेगी। बंगलुरू में हुई इंडिया की बैठक से पहले कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी में इस पर सहमति बनी थी। लेकिन केंद्र सरकार की रणनीति विपक्ष पर भारी पड़ गई। विपक्षी पार्टियां इसे मोदी सरकार के खिलाफ सेमीफाइनल मानकर चल रही थी। लेकिन वाईएसआर कांग्रेस तथा बीजू जनता दल ने विपक्ष की सारी रणनीति को विफल कर दिया। इस विधेयक के पारित होने से मुख्यमंत्री केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं।