पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। पाकिस्तानी सेना से दुश्मनी मोल लेने के बाद उनको अपनी गद्दी गंवानी पड़ी। हालांकि सत्ता से अलग होने के बावजूद पाकिस्तान में उनकी लोकप्रियता कम नहीं हो रही है। नवंबर तक पाकिस्तान में चुनाव होने जा रहे हैं। वहां की सेना तथा सरकार चाहती है कि इमरान खान को चुनाव लडऩे से रोका जाए। पाकिस्तान की जिला सत्र न्यायालय ने तोशाखाना मामले में इमरान खान को दोषी मानते हुए पिछले 5 अगस्त को तीन साल की कारावास तथा एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। अगर वे एक लाख रुपए का जुर्माना नहीं दे पाते हैं तो उन्हें और छह महीने जेल में रहना पड़ेगा। अभी उनके पास ऊपरी अदालत में जाने का विकल्प खुला हुआ है।
अदालत ने सजा देने के साथ-साथ अगले पांच साल चुनाव लडऩे पर भी रोक लगा दी है। पिछले मई में इमरान खान के गिरफ्तार किये जाने के बाद उनकी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के समर्थकों ने काफी हंगामा किया था। पीटीआई के समर्थकों ने सेना मुख्यालय तक को भी नहीं छोड़ा था। उनकी लोकप्रियता को देखते हुए सेना तथा शहबाज सरकार नहीं चाहती है कि इमरान चुनाव लड़े। उनकी अनुपस्थिति में उनकी पार्टी पीटीआई के प्रदर्शन कैसा रहेगा वह देखने की बात होगी। फिलहाल तोशाखाना फर्जी बिल के मामले में उनको सजा मिली है। उन पर आरोप है कि देश-विदेश से प्रधानमंत्री को मिले महंगे सरकारी उपहार को कम दाम में खरीदकर इमरान ने ज्यादा दाम में बेच दिया है।
शहबाज सरकार को भय है कि जेल में रहने पर इमरान को मतदाताओं की सहानुभूति मिल सकती है। शासन में रहते हुए इमरान ने अमरीका पर आरोप लगाया था कि वह उनकी सरकार को अस्थिर करने के लिए पाकिस्तान की सेना के साथ मिलकर षड्यंत्र किया है। मालूम हो कि पाकिस्तान अभी आॢथक बदहाली एवं राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने के कगार पर है। वहां आवश्यक खाद्य वस्तुओं की कमी हो गई है जिससे जनता हायतौबा मचा रही है। शहबाज शरीफ सरकार तमाशबीन बनी हुई है, क्योंकि कोई भी देश तथा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान कर्ज देने को तैयार नहीं है। आतंकी गतिविधियां लगातार बढ़ती जा रही है।
तहरीक-ए-तालिबान-पाकिस्तान (टीटीपी) ने पाकिस्तानी सरकार और सेना के नाक में दम कर रखा है। हाल ही में पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्र में हुए आतंकी हमले में डेढ़ सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे। आॢथक तंगी के बावजूद पाकिस्तान भारत के जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ कराने से बाज नहीं आ रहा है। भारतीय सेना पाकिस्तान से सटी सीमा पर पूरी तरह अलर्ट है। सेना किसी भी चुनौती का करारा जवाब देने के लिए तैयार है। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद भारत में मुश्किलें बढ़ेगी, लेकिन तालिबान ने पाकिस्तान के निर्देश पर चलने से साफ मना कर दिया तथा वह भारत के साथ मिलकर काम करना चाहता है। पाकिस्तानी सेना चाहती है कि वहां फिर से शहबाज शरीफ गठबंधन की सरकार सत्ता में लौटे जो उसके इशारे पर काम कर सके। भारत को पाकिस्तान में बदल रहे राजनीतिक परिवेश पर बराबर नजर रखने की जरुरत है। भारत को पाकिस्तान की ओर से दी गई वार्ता की पेशकश के झांसे में नहीं आना चाहिए। पाकिस्तान चीन के इशारे पर हमेशा भारत विरोधी गतिविधियों में लगा रहता है।