इन दिनों इजराइल हमास को खत्म करने को लेकर आतुर है। वह हमास को मटियामेट करने के लिए राष्ट्र संघ से पंगा ले लिया है और यूएनओ के महासचिव के इस्तीफे की मांग कर दी है, उसकी आतुरता का समर्थन अमरीका और उसके परस्त राष्ट्र दिल खोलकर कर रहे हैं। वैसे हमास का खात्मा भारत भी चाहता है, परंतु इस अभियान से आम फिलस्तीनी प्रभावित हों, ऐसा हम नहीं चाहते हैं। सच तो यह है कि पश्चिम एशिया में नए सिरे से उत्पन्न भू-राजनीतिक तनाव ने आर्थिक और नीतिगत जोखिम बढ़ा दिए हैं। हालांकि इस संकट से निपटने की कोशिश की गई है, लेकिन इजरायल और फिलिस्तीन के बीच छिड़ा मौजूदा संघर्ष में अन्य क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों के शामिल होने की आशंका से जोखिम इतना बढ़ सकता है, जिसके बारे में अभी हम अनुमान भी नहीं लगा सकते हैं। सबसे स्पष्ट जोखिम वैश्विक वृद्धि और कच्चे तेल की आपूर्ति से जुड़ा हुआ है। हालांकि कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा हुआ है और आंशिक तौर पर इसकी वजह बड़े उत्पादकों की ओर से लगाए गए प्रतिबंध भी हैं, लेकिन आपूर्ति का इस प्रकार बाधित होना कच्चे तेल की उपलब्धता और उसकी कीमत दोनों को प्रभावित कर सकता है।
भारत अपनी जरूरत के बड़े हिस्से के लिए तेल आयात पर निर्भर करता है, इसलिए आपूर्ति में कमी आर्थिक गतिविधियों पर असर डाल सकती है। हालांकि इस वर्ष अब तक वैश्विक वृद्धि मजबूत रही है, लेकिन आने वाली तिमाहियों में हालात बदल सकते हैं। अगर बढ़े केंद्रीय बैंकों खासकर अमरीकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत कदमों की बदौलत वित्तीय हालात तंग हुए और पश्चिम एशिया में संघर्ष और बढ़ा तो आर्थिक परिदृश्य तेजी से बदल सकता है। वित्त मंत्रालय में बैठे हमारे नीति निर्माता हालात पर सावधानीपूर्वक नजर रखे होंगे। उदाहरण के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस समाचार पत्र को बताया कि उन्हें व्यय योजना बनाने में समझदारी का परिचय देने की आवश्यकता है क्योंकि वैश्विक हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। अब तक सरकार को भरोसा है कि वह चालू वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 5.9 फीसदी के स्तर पर रखने का लक्ष्य हासिल कर लेगी, परंतु वर्ष की दूसरी छमाही के लिए बाजार उधारी योजना दिखाती है कि कुल उधारी बजट में उल्लेखित स्तर पर है। वित्त मंत्रालय की ताजा मासिक समीक्षा में कहा गया है कि अप्रैल से अगस्त 2023 तिमाही में प्रत्यक्ष कर संग्रह सालाना आधार पर 26.6 फीसदी बढ़ा। वस्तु एवं सेवा कर संग्रह में भी इस वर्ष अब तक 10 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। व्यय की बात करें तो पूंजीगत व्यय जो वृद्धि का अहम कारक रहा है, वह अप्रैल-अगस्त तिमाही में सालाना आधार पर 48 फीसदी अधिक रहा।
हाल के वर्षों में सरकार की ओर से उच्च पूंजीगत व्यय ने भी सरकारी व्यय की गुणवत्ता सुधारने में मदद की है। सरकार को यह यकीन होगा कि वह चालू वर्ष में बजट में उल्लेखित लक्ष्यों को हासिल कर लेगी, लेकिन आसन्न झटके से निपटने की योजना बनाना आसान नहीं होगा। मोटे तौर पर ऐसा इसलिए कि प्रस्थान बिंदु अपेक्षाकृृत कमजोर है। हालांकि सरकार ने राजकोषीय घाटे को कोविड के दौर के उच्चतम स्तर से कम करने में सफलता हासिल की है, लेकिन यह अभी भी अपेक्षाकृृत ऊंचे स्तर पर है और बाहरी आर्थिक झटके को लेकर शायद समुचित प्रतिक्रिया न दे पाए। पूंजीगत व्यय पर ध्यान केंद्रित करने से निश्चित रूप से आर्थिक गति को बरकरार रखने में मदद मिली है, लेकिन इससे राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया भी धीमी हुई है। बाहरी झटके को लेकर प्रतिक्रिया देने की सरकार की क्षमता उपलब्ध नीतिगत गुंजाइश पर निर्भर करती है और राजकोषीय नीति के संदर्भ में देखें तो फिलहाल यह काफी सीमित है। अब जबकि सरकार बजट पूर्व चर्चाओं में संलग्न है, यह बात समझदारी भरी लगती है कि व्यय को सीमित करने की संभावनाओं पर काम किया जाए और मौजूदा तथा आने वाले वर्ष में नीतिगत गुंजाइश तैयार की जाए। निश्चित तौर पर ऐसा करना आसान नहीं होगा क्योंकि बजट से कई तरह की मांग होंगी खासकर चुनावी वर्ष होने के नाते। बहरहाल, जैसे हालात हैं उनके मुताबिक तेज वृद्धि या जिंस कीमतों का झटका राजकोषीय घाटे में इजाफा कर सकता है तथा मध्यम अवधि का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल कर सकता है। निरंतर उच्च राजकोषीय घाटा सरकार की गुंजाइश कम करेगा और मध्यम अवधि में वृद्धि संभावनाओं को प्रभावित करेगा।