भारत में दो विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर हैं। एक है देश के पूर्वी छोर पर उड़ीसा राज्य में स्थित प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर। और दूसरा है देश के पश्चिमी छोर पर गुजरात राज्य में, पाटन से 30 की.मी. दक्षिण में स्थित, मोढ़ेरा सूर्य मंदिर।

अहमदाबाद से तकरीबन सौ किलोमीटर की दूरी पर पुष्पावती नदी के किनार पर मोढ़ेरा का विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर स्थित है। इस मंदिर को कुछ इस तरह बनाया गया है कि सूर्योदय होने पर पहली किरण सीधे गर्भगृह तक पहुंच सके। इस मंदिर के गर्भगृह की दीवार पर लगे शिलालेख से पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण सम्राट भीमदेव सोलंकी प्रथम ने करवाया था। वो सूर्य को कुल देवता के रूप में पूजते थे। इसीलिए उन्होंने अपने आद्य देवता की पूजा के लिए इस भव्य सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था।

ये सूर्य मंदिर 11वीं सदी में बना है। शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण देने वाले इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि पूरे मंदिर के निर्माण में जुड़ाई के लिए कहीं भी चूने का उपयोग नहीं किया गया है। हर साल संक्रांति के अवसर पर यानी सूर्य के राशि बदलने पर इस जगह से सूर्य के दर्शन किए जाते हैं।

सूर्यकुंड : मोढ़ेरा के सूर्य मंदिर परिसर के पूर्वी छोर पर, सभा मंडप के समक्ष सूर्यकुंड अर्थात् बावड़ी की संरचना की गई है। बावड़ी का भीतरी भाग सीडिय़ों द्वारा शुण्डाकार में बनाया गया है। सीडिय़ां अनोखे ज्यामितीय आकार में बनाई गई हैं। यह बावड़ी, अन्य मंदिरों के बावडिय़ों से किंचित भिन्न है, क्योंकि इसकी सीडिय़ों पर कई छोटे बड़े मंदिरों की स्थापना की गई है। इनमें कई मंदिर भगवान् गणेश एवं भगवान् शिव को समर्पित हैं। सूर्य मंदिर के ठीक सामने की सीडिय़ों पर शेषशैय्या पर विराजमान भगवान् विष्णु का मंदिर है। एक मंदिर चेचक की देवी शीतला माता की भी है। एक हस्त में झाड़ू एवं एक हस्त में नीम की पत्तियां धारण किए शीतला माता का वाहन गर्दभ है। अन्य मंदिर भंगित अवस्था में होते हुए भी अब भी बहुत सुंदर हैं।

बना हुआ है विशाल कुंड : ईरानी शैली में के इस मंदिर को भीमदेव ने दो हिस्सों में बनवाया था। पहला हिस्सा गर्भगृह का और दूसरा सभामंडप का है। मंदिर के सभामंडप में कुल 52 स्तंभ हैं। इन पर बेहतरीन कारीगरी से विभिन्न देवी-देवताओं के चित्रों और रामायण तथा महाभारत के प्रसंग को उकेरे गए हैं। इन स्तंभों को नीचे की ओर देखने पर वे अष्टकोणाकार तथा ऊपर की ओर देखने पर वे गोल दिखाई देते हैं। सभामंडप के आगे एक विशाल कुंड बना है जिसे, सूर्यकुंड या रामकुंड भी कहा जाता है।

आत्मशुद्धि के लिए आए थे श्रीराम : मोढ़ेरा मंदिर के बारे में स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि प्राचीन काल में मोढ़ेरा के आसपास का पूरा क्षेत्र धर्मरण्य के नाम से जाना जाता था। भगवान श्रीराम ने रावण के संहार के बाद गुरु वशिष्ठ से ऐसा स्थान बताने के लिए कहा था जहां वह आत्मशुद्धि कर ब्रह्म हत्या के पाप से भी मुक्ति पा सकें। तब गुरु वशिष्ठ ने श्रीराम को यहीं आने की सलाह दी थी। विदेशी हमलावारों ने इस मंदिर को बहुत नुकसान पहुंचाया है। इसलिए इसे खंडित माना जाता है और पूजा नहीं की जाती है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग यहां दर्शन करने आते हैं। मोढ़ेरा का सूर्य मंदिर उन कुछ पुरातात्विक स्थलों में से एक है जिसका रख-रखाव भारतीय पुरातात्विक विभाग सर्वोत्तम रूप से कर रहा है।