फिलहाल इजरायल-हमास के बीच युद्ध विराम चल रहा है। इस बीच दोनों ओर से युद्धबंदी एक दूसरे को सौंपे जा रहे हैं। इसका कतई मतलब नहीं कि गाजा से मुसीबतें टल गई हैं और गाजावासियों   पर अब इजरायल के बम नहीं बरसेंगे। कहा जा रहा कि हमास अंतर्राष्ट्रीय दबाव में आकर युद्ध विराम को तैयार हुआ है और उस पर ऐसा करने के लिए कतर का दबाव था जहां उसके बड़े- बड़े नेता आश्रय लिए हुए हैं। वैसे पूरी दुनिया ने इजरायल और हमास के बीच चार दिवसीय संघर्ष विराम का स्वागत किया है लेकिन ऐसा लगता नहीं कि यह दोनों पक्षों के बीच छिड़ी लड़ाई से गाजापट्टी के लोगों को मुक्ति मिलेगी। दूसरी ओर हमास नेतृत्व पहले ही स्पष्ट कर चुका है किवह युद्ध विराम पर सहमत है लेकिन 'उसका हाथ बंदूक के ट्रिगर पर बना रहेगा। इस समय बड़ी संख्या में  इजरायली बंधक हमास के कब्जे में हैं। बताते चलें कि 7 अक्तूबर के पहले इजरायल ने 5,200 फिलिस्तीनियों को जेल में डाल दिया था और उसके बाद उसने 3,000 अन्य लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें 145 बच्चे और 90 महिलाएं भी शामिल हैं। इस बात की संभावना है कि हर 10 अतिरिक्त बंधकों की रिहाई के साथ युद्ध विराम को एक-एक दिन के लिए बढ़ाया जाए। इस मामले में इजरायल ने 300 फिलिस्तीनी कैदियों की सूची जारी की है।

यह समझौता कतर और मिस्र की मदद से हुआ है और यह गाजा में मानवीय त्रासदी को कुछ हद तक कम कर सकता है लेकिन अमरीका का समर्थन प्राप्त इजरायल ने लंबी अवधि के युद्ध विराम से इनकार किया है और इसलिए वहां लंबी शांति की उम्मीदों को झटका लगा है। इजरायल ने कहा है कि अगर वह ऐसा करेगा तो हमास को दोबारा हथियारबंद होने का समय मिल जाएगा। इन हालात में इस 75 वर्ष पुराने संकट को लेकर किसी दीर्घकालिक हल पर पहुंचने से जुड़ी कोई भी चर्चा दूर की कौड़ी है। इस लड़ाई में अनिवार्य रूप से कूटनीतिक खामियों का विस्तार हो रहा है। यह बात संयुक्त राष्ट्र में मतदान के रुझान से भी स्पष्ट है। बुधवार को ब्रिक्स ने गाजा में चल रही लड़ाई को लेकर विशेष आभासी बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों के बीच के आपसी मतभेदों पर भी चर्चा की गई। बैठक में मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब, अर्जेन्टीना और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश भी शामिल हुए जिन्हें अगले वर्ष इस समूह में शामिल होने का आमंत्रण दिया गया है। इन देशों ने एक संयुक्त वक्तव्य में 'फिलिस्तीनियों को उनकी जमीन से जबरन हटाने की किसी भी व्यक्तिगत या सामूहिक कोशिश की की निंदा की।

यह कठोर कूटनीतिक भाषा है जो बताती है कि कई विकासशील देश इजरायल के समर्थन में खास विकसित देशों से दूरी बनाए हुए हैं। सबसे कठोर आलोचना दक्षिण अफ्रीका ने की और उसने फिलिस्तीनी नागरिकों के खिलाफ इजरायल की कार्रवाई को युद्ध अपराध करार देते हुए गत सप्ताह इजरायल का हवाला अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय में भी दिया। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने गाजा के लोगों को दिए जा रहे सामूहिक दंड को समाप्त करने की मांग की तथा ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा ने इस युद्ध को मानवीय त्रासदी करार दिया। विदेश मंत्री एस जयशंकर के प्रतिनिधित्व में भारत मुख्यत:  खामोश रहा तथा उसने नागरिकों की मौत और हमास के आतंकवाद दोनों का विरोध किया, परंतु इस दौरान इजरायल पर कोई आरोप नहीं लगाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले दिन उम्मीद जताई कि इजरायल-हमास जंग का असर पूरे क्षेत्र पर नहीं होगा लेकिन हालात को देखते हुए यह आशावादी नजरिया लगता है, परंतु अभी बहुत कुछ भविष्य के गर्भ में है और इस समस्या का समाधान आसानी से हो जाएगा, इसकी दूर तक संभावना नहीं है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इस लड़ाई को खत्म करने के लिए अमरीका को ईमानदारी के साथ महती भूमिका निभानी होगी।