वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी समस्या है। दूसरी ओर वातावरण में घुलती ग्रीन हाउस की उत्सर्जित गैसों ने पूरी दुनिया के सामने बड़ी समस्या खड़ी कर दी है,इस समस्या के समाधान के लिए विकसित देशों को आगे आना चाहिए और ग्रीन हाउस की गैसों केउत्सर्जन को कम करना चाहिए, परंतु ये देश भारत के पीछे पड़े हुए हैं। उनका कहना है कि समस्या के समाधान के लिए भारत कोयला आधारित ऊर्जा के उत्पादन को बंद करे और ऊर्जा के लिए अतिरिक्त उपायों पर अमल करे। उल्लेखनीय है कि भारत में बिजली के उत्पादन के लिए कोयले का इस्तेमाल पूरी दुनिया के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है। कोयले पर निर्भरता को घटाने के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली बनाने की जरूरत है, लेकिन भारत जैसे ऊर्जा के भूखे देशों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। दुबई में होने वाले संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन कॉप-28 में भारत की स्थिति पर चर्चा होगी।

कुछ रिपोर्टों के मुताबिक भारत से उम्मीद की जा रही है कि वह अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली बनाने की अपनी क्षमता को 2030 तक तीन गुना बढ़ाने की घोषणा करे, लेकिन ब्रिटेन स्थित एक निजी संस्था एम्बर की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत के लिए  सिर्फ इतना कर पाना भी बहुत बड़ी चुनौती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने के लिए भारत को करीब 24,440 अरब रुपयों के निवेश की जरूरत होगी, लेकिन सिर्फ इतना करना भी शायद काफी ना हो। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने अक्तूबर, 2023 में अपनी नेट जीरो रोडमैप रिपोर्ट जारी की थी जिसमें नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के तरीके की बात की गई थी। इस रिपोर्ट ने सुझाव दिया था कि तीन गुना के लक्ष्य में भारत का सही योगदान तब ही होगा जब उसकी करीब 32 प्रतिशत बिजली सौर ऊर्जा से बनेगी और 10 प्रतिशत पवन ऊर्जा से तैयार  किया जाएगा। इस लक्ष्य को 2030 तक हासिल करना होगा, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2023 में भारत में बनी कुल बिजली में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी सिर्फ छह प्रतिशत थी।

पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी करीब चार प्रतिशत थी यानी मौजूदा स्थिति और लक्ष्य में काफी फासला है। भारत की राष्ट्रीय बिजली नीति 2014 (एनईपी14) में भी अक्षय ऊर्जा के कुछ लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं, लेकिन ये आईर्ईए के नेट जीरो लक्ष्यों के मुकाबले कम हैं। एम्बर की रिपोर्ट के मुताबिक आईईए के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भारत को सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के उत्पादन को पांच गुना बढ़ाना होगा। भारत को सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा में भारी निवेश की जरूरत है। इतना ही नहीं, उसे यह काम 2027 तक कर लेना होगा, इसमें मुख्य चुनौती निवेश की है। एम्बर के मुताबिक सिर्फ एनईपी14 के ही लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को 2023 से 2030 के बीच 24,440 अरब रुपयों के निवेश की जरूरत होगी, लेकिन आईईए के लक्ष्य को हासिल करने के लिए 8,413 अरब रुपयों की अतिरिक्त फंडिंग की जरूरत होगी। इसमें उत्पादन क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ भंडारण क्षमता और वितरण को भी बढ़ाने का खर्च शामिल है।

अब ऐसे में भारत के सामने चुनौती यह होगी कि वह इस निवेश को कहां से लाएगा ? रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग की जरूरत पड़ेगी। देखना होगा कि कॉप 28 में इस तरह के किसी निवेश की घोषणा होती है या नहीं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि दुबई में आयोजित होने वाली बैठक में इन सारी समस्या पर जानकार विस्तृत रूप में चर्चा करेंगे और पर्यावरणीय संतुलन को कैसे बनाया रखा जाए, इस पर विचार करेंगे। दूसरी ओर भारत को भी घरेलू स्तर पर इस  समस्या के समाधान के लिए कार्य करना चाहिए। कारण कि विभिन्न कार्यों से यहां का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है, उनमें राष्ट्रीय राजधानी  दिल्ली सबसे आगे है,  जो निहायत चिंता का विषय है।