पांच राज्यों का चुनाव परिणाम भाजपा के लिए उत्साहवर्द्धक रहा जबकि विपक्षी पार्टियों के गठबंधन के लिए बड़ा झटका साबित हुआ। इस चुनाव को लोकसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल माना जा रहा था। अगर विपक्षी पार्टी कांग्रेस राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में जीत जाती तो विपक्षी गठबंधन इंडिया में कांग्रेस पार्टी का कद बहुत बढ़ जाता। हिंदी बेल्ट के तीनों राज्यों में जीत के प्रति कांग्रेस का अति आत्मविश्वास खतरनाक साबित हुआ। कांग्रेस ने यहां अपने सहयोगी घटक दलों को नजरअंदाज करके सभी सीटों से चुनाव लड़ने का फैसला किया था। समाजवादी पार्टी मध्यप्रदेश से छह सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी, लेकिन कांग्रेस ने उसे कोई तवज्जो नहीं दी। इसका नतीजा यह हुआ कि समाजवादी पार्टी भी मैदान में कूद गई जिसका खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ा है। नीतीश की पार्टी जदयू भी इन चुनावों में अपना भाग्य आजमाना चाहती थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। विपक्षी दलों को यह उम्मीद नहीं थी कि भाजपा राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में ऐसा दमदार प्रदर्शन करेगी। भाजपा इस चुनाव में मुख्यमंत्री पद के चेहरे के बगैर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर दांव लगाई थी। भाजपा ने पांचों राज्यों में मुख्यमंत्री पद के लिए कोई भी उम्मीदवार घोषित नहीं किया था। मतदाताओं के सामने प्रधानमंत्री का चेहरा और चुनाव चिन्ह कमल ही था। भाजपा इस चुनाव में जनता की नाराजगी कम करने के लिए ऐसा कदम उठाई थी। विपक्षी पार्टियों ने भी मतदाताओं को रिझाने के लिए कई तरह की रेवड़ियां बांटीं, किंतु जनता को प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी पर ज्यादा भरोसा हुआ।

अब भाजपा में राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए मंथन शुरू हो चुका है। राजस्थान में भाजपा के सामने सबसे बड़ा चेहरा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे है। लेकिन पार्टी हाई कमान वसुंधरा को मुख्यमंत्री बनाना नहीं चाहती। यही कारण है कि वसुंधरा ने अपने समर्थक विधायकों के साथ लंबी बैठक कर पार्टी हाई कमान पर दबाव डालने की कोशिश की है। गृह मंत्री अमित शाह के बुलावे पर दिल्ली पहुंच चुकी है, जहां उनकी मुलाकात शाह से होने वाली है। पार्टी हाई कमान वसंुधरा को दूसरी जगह महत्वपूर्ण पद देकर शांत करना चाहती है। राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के लिए वसुंधरा के अलावा गजेन्द्र सिंह शेखावत, बाबा बालकनाथ एवं दीया कुमारी जैसे चेहरे उपलब्ध है। इसी तरह मध्यप्रदेश में भी बदलाव की उम्मीद की जा रही है। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बनने के लिए कोशिश में हैं। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में निर्वाचित अपने सभी सांसदों को इस्तीफा देने को कहा है। अभी तक दस सांसद लोकसभा से इस्तीफा दे चुके हैं। नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल, राकेश सिंह, उदय प्रताप सिंह, किरोड़ीलाल मीणा, अरुण साव, रीटा पाठक, राजवर्द्धन सिंह राठौड़, दीया कुमारी एवं गोमती साय जैसे सांसद इस्तीफा सौंप चुके हैं। इन दस सांसदों में से नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल एवं रेणु सिंह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हैं।

भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर सामाजिक समीकरण बनाने में जुटी हुई है। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम को लेकर विपक्षी पार्टियों में हलचल तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियां अपने राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करने में जुट गई हैं। तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति का हाल देखकर ममता भी सतर्क हो गई है। विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के रवैये से भी कुछ पार्टियां नाराज हैं। यही कारण है कि पिछले 6 दिसंबर को कांग्रेस द्वारा बुलाई बैठक से अखिलेश यादव, नीतीश कुमार एवं ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने दूरी बना ली थी। अब अगली बैठक 17 दिसंबर को होने की उम्मीद है। राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि विपक्षी पार्टियों का गठबंधन भाजपा को कड़ी चुनौती नहीं दे पाएगा, क्योंकि लोकसभा चुनाव के लिए अब कुछ ही समय बचे हैं। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी भाजपा ऐसे नेता को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है जिसका प्रभाव लोकसभा चुनाव पर भी पड़े। तेलंगाना की तरह मिजोरम में भी सत्ताधारी मिजो नेशनल फ्रंट को धक्का लगा है। कुल मिलाकर पांच राज्यों का चुनाव परिणाम भाजपा के लिए शुभ संकेत है।