महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं। महाराष्ट्र में भाजपा नेतृत्व वाली महायुति की प्रखंड जीत ने राजनीति के पंडितों को चौंका दिया तो दूसरी ओर झारखंड में जेएमएम नेतृत्व वाले गठबंधन की जीत ने साबित कर दिया है कि आदिवासी स्वाभिमान के आगे भावनात्मक नारों का कोई महत्व नहीं है। उधर उपचुनाव के परिणाम मिले-जुले रहे। यूपी के परिणाम योगी सरकार को आक्सीजन देने वाले हैं तो बिहार ने एक बार फिर नीतीश कुमार के नेतृत्व को सलाम किया है। वायनाड से प्रियंका की जीत ने उन्हें संसदीय राजनीति में शामिल कर लिया है। ममता दीदी ने साबित कर दिया कि पश्चिम बंगाल में उनके आगे कोई नहीं है। कर्नाटक और अन्य राज्यों के परिणाम भी मिले-जुले रहे। असम में भाजपा ने सामागुड़ी सीट कांग्रेस से छीन ली है और सीएम हिमंत ने अपने पुराने मित्र रकिबुल हुसैन को जोर का झटका दिया है, यानी उनकी दूसरी पीढ़ी यानी उनके बेटे तंजिल हुसैन को विधानसभा जाने से रोक दिया है। इस सीट पर भाजपा ने जीत हासिल की है। यह रकिबुल हुसैन की परंपरागत सीट रही है। इस सीट पर रकिबुल हुसैन के पिता चुनाव जीतते थे, उसके बाद रकिबुल हुसैन लगातार चुनाव जीतते रहे। अब जब रकिबुल हुसैन धुबड़ी से सांसद हैं तो इस सीट से उनके बेटे तंजिल हुसैन को कांग्रेस से उम्मीदवार बनाया गया। इस पर सीएम हिमंत ने तंज कसते हुए कांग्रेस पर वंशवाद की राजनीति करने का आरोप लगाया था। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में सभी अनुमानों को ध्वस्त करते हुए महायुति ने प्रचंड जीत हासिल करने में सफलता पाई। महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन की इस जबर्दस्त जीत ने विश्लेषकों को चौंका दिया है। सबसे पहले योगी ने यूपी में बंटेंगे तो कटेंगे का नारा दिया था। इस नारे को बाद में मोदी ने अपने तरीके से एक हैं तो सेफ हैं का नारा दिया। इस नारे को आगे बढ़ाने का मूल उद्देश्य था कि इससे माध्यम से हिन्दू वोटों का धुव्रीकरण किया जाए। पिछले लोकसभा परिणामों के बाद से ही भाजपा को इस बात का अच्छी तरह से अहसास हो गया था कि मुस्लिम वोट उनके पक्ष में नहीं आएंगे, बल्कि वे एकमुश्त भाजपा विरोधी पार्टियों के पक्ष में पोलराइज होंगे। काफी मंथन के बाद इस बार भाजपा ने पूरी तरह से जोर हिन्दू वोटर्स को एक करने पर जोर दिया। मोदी-योगी की सभाओं के माध्यम से हिन्दुत्व के पक्ष में माहौल बनाया, परिणाम बता रहे हैं कि इसका सीधा फायदा भाजपा को मिला। इसके अलावा कांग्रेस का जाति गणना वाला दांव या आरक्षण वाला कार्ड भी बहुत प्रभावी नहीं दिखा। ऐसा दिखाई देता है कि विरोधी पार्टियों की रणनीति के खिलाफ भाजपा की हिन्दुत्व काट बहुत सफल रही। मराठा प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए भाजपा ने ओबीसी वोटों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया। इस रणनीति में विभिन्न ओबीसी समुदायों को एकजुट करने के लिए ऐतिहासिक माधव फॉर्मूले का लाभ उठाना भी शामिल था। पिछले विधानसभा चुनावों से ही भाजपा महिला वोटर्स पर बहुत फोकस करती रही है। उनके लिए अलग तरह की योजनाएं लाती रही है। विशेषकर मप्र-छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में लाड़ली बहन-महतारी योजना की वजह से महिलाओं ने भाजपा के पक्ष में बंपर मतदान किया था। महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन को समय रहते विरोधियों की बढ़त और अपनी कमजोरियों की जानकारी मिल गई, इससे काउंटर करने के लिए उन्होंने तत्काल सीएम लाड़की बहीण योजना लॉन्च की, बल्कि दो महीने तक महिलाओं को इसकी किस्त का पैमेंट भी किया गया। ऐसा मानने में कोई गुरेज नहीं है कि महायुति ने डैमेज कंट्रोल किया। अपने पक्ष में महिलाओं की सहानुभूति पैदा कर ली। दूसरी ओर महायुति की इस जीते पीछे महाविकास अधाड़ी का ओवर कॉन्फिडेंस भी किसी हद तक जिम्मेदार है। नेता आपस में लड़ते रहे। मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान करते रहे। आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते रहे, जिस तरह से महायुति अपनी गलतियों से सबक लेकर कोर्स करेक्शन कर रही थी,उस तरह का जज्बा महाविकास अघाड़ी में दिखाई नहीं दिया। दूसरी ओर झारखंड में वोटरों पर माटी और बेटी का नारा काम नहीं आया और वहां जेएमएम ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है। झारखंड में भाजपा की हार से असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्वशर्मा जरूर दुखी होंगे, जिन्होंने भाजपा को जिताने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी।
आया जनादेश
