झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम अप्रत्याशित रहे। यहां जीत के लिए बीजेपीने एड़ी-चोटी का जोर लगाया,परंतु वह कामयाब नहीं हो सकी। बीजेपी ने आदिवासी अस्मिता तथा घुसपैठियों के मुद्दे को काफी जोर-शोर से उछाला, लेकिन ये सारे प्रयास धरे के धरे रह गए। जेएमएम छोड़कर भाजपा में आए झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व कोल्हान टाइगर चंपई सोरेन भी बीजेपी के लिए खोटा सिक्का ही साबित हुए। वे सरायकेला सीट से चुनाव जीत गए, लेकिन उनके गढ़ कोल्हान में बीजेपी मात्र दो सीट ही जीत सकी। इंडिया गठबंधन अपने गढ़ संथाल परगना और कोल्हान को बचाने में कामयाब रहा। इस बार जेएमएम की अगुवाई में इंडिया गठबंधन को नौ सीटों के इजाफे के साथ 56 सीटें मिलीं तो वहीं बीजेपी नीत एनडीए को छह सीटों के नुकसान के साथ महज 24 सीट पर संतोष करना पड़ा। इस बार सात सीट के फायदे के साथ जेएमएम 34, तीन सीट के लाभ के साथ आरजेडी चार पर पहुंच गई,  जबकि कांग्रेस को दो के नुकसान के साथ 16 सीटें मिलीं। संथाल परगना प्रमंडल से भी बीजेपी का लगभग सफाया हो गया। जानकार बताते हैं कि झारखंड में हेमंत सोरेन के पक्ष में सिम्पैथी फैक्टर भी काफी प्रभावी रहा। हेमंत सोरेन अपने चुनाव प्रचार के दौरान लगातार यह संदेश देने की कोशिश करते रहे कि आदिवासी चेहरे को कुचलने के लिए किस तरह उन्हें गलत तरीके से जेल में डाला गया, इसमें वे कामयाब भी रहे। कई विधानसभा सीट पर 40 प्रतिशत से अधिक आदिवासी मतदाता हैं। वे एकजुट होकर उनके पक्ष में खड़े हो गए। हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उनकी पत्नी कल्पना सोरेन सामने आईं और जहां-जहां गईं, वहां उन्होंने पति के साथ ज्यादती की बात समझाने की कोशिश की। चुनाव प्रचार के दौरान मईयां सम्मान योजना की राशि दो हजार से बढ़ाकर प्रतिमाह 2,500 रुपए करने की चर्चा भी उन्होंने खूब कीं। कल्पना ने सरना धर्म कोड की भी बात की और यह भी कहा कि बीजेपी  के नेता बाहर के हैं, वे हमारी भाषा-संस्कृृति तक नहीं जानते। ये भला हमारे लिए क्या नीतियां बनाएंगे। अपने सहज व सरल अंदाज से खासकर महिलाओं को कनेक्ट करने में वे सफल रहीं। वे गांडेय सीट से चुनी गई हैं। महिलाओं की कल्याणकारी योजनाओं का भी असर जेएमएम के पक्ष में गया। बेरोजगार महिलाओं के लिए मासिक सहायता, स्कूली लड़कियों को मुफ्त साइकिल, अकेली महिलाओं को नकद सहायता जैसी योजनाओं ने आदिवासी और कमजोर वर्ग की महिलाओं को जेएमएम के पाले में लाने का काम तो किया ही, इसके साथ मईयां सम्मान योजना ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महिलाओं को सालाना 12,000 रुपए देने वाली इस योजना तथा सर्वजन पेंशन योजना ने हेमंत के पक्ष में संजीवनी का काम किया। फिलहाल झारखंड की करीब पचास लाख से अधिक महिलाओं को मईयां सम्मान योजना के तहत 2,000 रुपए प्रतिमाह की मदद दी जा रही है। चुनाव के पहले जेएमएम ने इस राशि को बढ़ाकर 2,500 रुपए कर दिया था, जबकि गोगो दीदी योजना के तहत बीजेपी ने 2,100 रुपए प्रतिमाह देने का वायदा किया था। चुनाव के ऐन मौके पर बिजली बिल माफ करना भी जेएमएम के लिए फायदेमंद साबित हुआ। सरकार बनने पर आरक्षण का दायरा बढ़ाने का भी वादा किया गया। बीजेपी की ओर से 2016 में सीएनटी एक्ट में किया गया बदलाव अभी भी उन पर भारी पड़ रहा। आदिवासी इसे लेकर उनसे आज तक बिदके हुए हैं। इस संशोधन के बाद जमीन के स्वरूप (नेचर) को बदला जा सकता था, इसे आदिवासियों ने उनकी जमीन छीनने का प्रयास माना, जबकि बीजेपी ने यह सोचकर ऐसा किया था कि इससे राज्य में उद्योग-धंधे लगाना आसान हो सकेगा। बीजेपी के कई धुरंधर नेताओं ने झारखंड में धुआंधार प्रचार किया। संथाल परगना क्षेत्र में घुसपैठ को लेकर बीजेपी काफी आक्रामक रही।  केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तो यहां तक कहा कि झारखंड में भाजपा (बीजेपी) की सरकार बनाइए, घुसपैठियों को उल्टा लटका देंगे। बीजेपी ने बंटोगे तो कटोगे का नारा देकर घुसपैठ की चर्चा करते हुए हिंदुत्व कार्ड खेला और वहीं जेएमएम ने अपनी योजनाओं की चर्चा के साथ आदिवासी कार्ड खेला। जेएमएम का आदिवासी कार्ड बीजेपी के कार्ड पर भारी पड़ गया।