इन दिनों पूरे देश में महिला और पुरुष मिल-जुलकर कार्य कर रहे हैं, परंतु कभी-कभार महिलाएं यौन उत्पीड़न का शिकार हो जाती हैं, इससे कई तरह की समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। ऐसी परिस्थिति में कभी-कभार सवाल उठता है कि क्या महिला और पुरुष को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए। कई बार यह भी कहा जाता है कि महिला और पुरुष को बैठने और कार्य करने की बिल्कुल अलग व्यवस्था होनी चाहिए? इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाए गए महिला पॉश अधिनियम को पूरे देश में एक समान रूप से लागू करने की चुनौतियों के मद्देनजर इस कानून को मजबूत बनाने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि पॉश अधिनियम को पूरे देश में समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। इसी के तहत सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 31 दिसंबर, 2024 तक हर जिले में एक अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया। यह अधिकारी 31 जनवरी, 2025 तक स्थानीय शिकायत समिति का गठन करेगा और तालुका स्तर पर नोडल अधिकारी नियुक्त करेगा। कोर्ट ने कहा कि पॉश अधिनियम का पूरेदेश में पालन हो। कोर्ट ने देशभर के सभी सरकारी विभागों और उपक्रमों में अधिनियम के तहत इंटरनल कंप्लेंट कमेटी (आईसीसी) गठित करने का आदेश दिया। इसी के साथ कोर्ट ने उपायुक्तों- जिला मजिस्ट्रेटों को निर्देश दिया कि वे पॉश अधिनियम की धारा 26 के तहत आईसीसी के अनुपालन के लिए सार्वजनिक और निजी संगठनों का सर्वेक्षण करें और मार्च, 2025 तक रिपोर्ट पेश करें। अपने 18 महीने पुराने फैसले के कार्यान्वयन की निगरानी करते हुए जिसमें सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, संरक्षण और निवारण) अधिनियम, 2013 या पॉश अधिनियम के तहत आईसीसी या स्थानीय समिति की स्थापना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने जिले के भीतर प्रत्येक क्षेत्र या तालुका के लिए नोडल अधिकारियों के माध्यम से कानून को लागू करने के प्रयासों के समन्वय के लिए जिला अधिकारियों को नियुक्त करने का निर्देश दिया। जस्टिस बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस कानून को पूरे देश में लागू किया जाना है। हम तीन महीने के भीतर सर्वेक्षण करने और 31 मार्च, 2025 तक रिपोर्ट जमा करने के लिए समय दे रहे हैं। यह निर्देश अदालत के मई 2023 के आदेश के कार्यान्वयन से संबंधित याचिका पर आया, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को यह सत्यापित करने के लिए समयबद्ध अभ्यास करने का निर्देश दिया गया था कि क्या सभी मंत्रालयों और विभागों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए पैनल गठित किए गए थे। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी किए थे। कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न के खिलाफ साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ निर्देश जारी किए थे। सुप्रीम कोर्ट के इन निर्देशों को ही विशाखा गाइडलाइंस के रूप में जाना जाता है। पॉश अधिनियम की धारा 26 में किसी भी नियोक्ता पर 50,000 रुपए तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है, जो समिति का गठन करने या अधिनियम के अन्य प्रावधानों का पालन करने में विफल रहता है।
यौन उत्पीड़न
