भारतीय सनातन परम्परा के हिन्दू धर्मशासात्रों में हर माह के विशिष्ट तिथि की विशेष महिमा है। द्वादश मास के समस्त तिथियों में एकादशी तिथि की अपनी खास पहचान है। फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि के दिन आमलकी/रंगभरी एकादशी मनाई जाती है। मान्यता है कि आमलकी एकादशी के व्रत से द्वादश मास के समस्त एकादशी के व्रत का पुण्यफल मिलता है, साथ ही जीवन के समस्त पापों का शमन भी होता है। एकादशी तिथि के दिन स्नान-दान व्रत से सहस्र गोदान के समान शुभफल की प्राप्ति बतलाई गई है। इस दिन स्ïनान-दान व व्रत से भगवान् श्रीहरि यानि श्रीविष्णु जी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्त्व है। 

प्रख्यात ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि फाल्गुन शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 9 मार्च, रविवार को प्रात: 7 बजकर 46 मिनट पर लग रही है जो 10 मार्च, सोमवार को प्रात: 7 बजकर 45 मिनट तक रहेगी। पुष्य नक्षत्र 9 मार्च, रविवार को रात्रि 11 बजकर 56 मिनट पर लग रही है जो 10 मार्च, सोमवार को अर्द्धरात्रि 12 बजकर 52 मिनट तक रहेगा। 10 मार्च, सोमवार को उदया तिथि के रूप में एकादशी तिथि होने से आमलकी/रंगभरी एकादशी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा। इस बार आमलकी/रंगभरी एकादशी पर पुष्य नक्षत्र का संयोग विशेष फलदाई। आज के दिन काशी में श्रीकाशी विश्वनाथ जी का प्रतिष्ठा महोत्सव व शृंगार दिवस भी मनाया जाता है। रंगभरी एकादशी के दिन काशी में शिवजी के भक्त बहुत धूम-धाम इस त्योहार को मनाते हैं। इस दिन भोलेनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी लाए थे। इसलिए इस दिन काशी में मां पार्वती का भव्य स्वागत किया जाता है, और इसी खुशी में रंग-गुलाल उड़ाने की धार्मिक मान्यता है।

आंवला के वृक्ष की भी होती है पूजा—रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव के साथ-साथ आंवले के वृक्ष की भी पूजा की जाती है। इसलिए रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी के भी नाम से जाना जाता है। इस दिन पूजा पाठ करने से व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति बतलाई गई है। इतना ही नहीं, इस दिन मां अन्नपूर्णा की सोने या चांदी की मूर्ति के दर्शन करने की परम्परा है।

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