जाने-माने उड़िया कवि और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी रमाकांत रथ का रविवार को भुवनेश्वर के खारवेल नगर स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। वह 90 वर्ष के थे। राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम हस्तियों ने उनके निधन पर शोक जताया। पद्म भूषण से सम्मानित रमाकांत रथ के परिवार में तीन बेटी और एक बेटा हैं। रथ की छोटी बेटी ने बताया कि उनके बेटे के विदेश से लौटने के बाद सोमवार को पुरी के स्वर्गद्वार में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि रमाकांत रथ जी ने एक प्रभावी प्रशासक और विद्वान के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनकी रचनाएं, विशेषकर कविताएं, समाज के सभी वर्गों में व्यापक रूप से लोकप्रिय हैं। दुख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं। ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने रथ के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि प्रशासनिक सेवा और साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने यह घोषणा भी कि रथ का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। रमाकांत रथ उड़िया साहित्य में सर्वाधिक प्रसिद्ध आधुनिकतावादी कवियों में से एक थे। टीएस एलियट और एज्रा पाउंड जैसे कवियों से काफी प्रभावित रथ ने शैली के साथ काफी प्रयोग किए। रहस्यवाद की खोज, जीवन और मृत्यु की पहेलियां, व्यक्तिगत आत्मा का आंतरिक एकांत और भौतिक आवश्यकताओं और कामुक इच्छाओं के प्रति अधीनता इस दार्शनिक-कवि के पसंदीदा विषयों में से हैं। उनकी कविताओं में निराशावाद के साथ-साथ प्रति-सौंदर्यवाद की भावना भी झलकती है और उन्होंने अच्छाई और पूर्ण सौंदर्य के उपदेशक का चोला पहनने से दृढ़तापूर्वक इनकार कर दिया। उनकी कविता उदासी से भरी है और मृत्यु की अनिवार्यता और उसके परिणामस्वरूप होने वाली व्यर्थता की भावना पर विलाप करती है। उनकी रचनाओं में पाई जाने वाली काव्यात्मक अभिव्यक्तियां जीवन की आध्यात्मिक और आध्यात्मिक सामग्री के लिए प्रतीकात्मक व्याख्याओं का एक अलग संकेत देती हैं। अक्सर सामान्य मानवीय क्षमताओं से परे जाकर कवि तीक्ष्ण बौद्धिकता के उच्च क्षेत्रों तक पहुंचता है। इसकी विषय-वस्तु प्राचीन संस्कृृत साहित्य की नायिका राधा की आधुनिक व्याख्या से लेकर श्री राधा कविता में मौजूद सदा-वर्तमान और मोहक मृत्यु-चेतना तक भिन्न-भिन्न है। रथ का जन्म कटक ,ओडिशा में हुआ था। उन्होंने ओडिशा के रेवेनशॉ कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में एमए किया । वह 1957 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए ,लेकिन उन्होंने अपना लेखन करियर जारी रखा। भारत सरकार के सचिव जैसे केंद्र सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद वे ओडिशा के मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्हें 1977 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1992 में सरस्वती सम्मान , 1990 में बिशुवा सम्मान और 2006 में भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म भूषण मिला। वे 1993 से 1998 तक भारतीय साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष और 1998 से 2003 तक नई दिल्ली में भारतीय साहित्य अकादमी के अध्यक्ष रहे । फरवरी 2009 में उन्हें केंद्रीय साहित्य अकादमी की ओर से साहित्य अकादमी फेलोशिप से सम्मानित किया गया, वे इस सम्मान से सम्मानित होने वाले पांचवें ओडिया लेखक थे। उनके निधन से साहित्य जगत को काफी नुकसान पहुंचा है, जिसकी भरपाई कर पाना संभव नहीं है। रमाकांत रथ की कई कविताओं का अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है । उनके प्रमुख रचनाओं केटे दिनारा (बहुत लंबे समय तक), 1962, अनेका कोठारी (कई कमरे), 1967, संदिग्धा मृगया (संदिग्ध शिकार), 1971, सप्तम ऋतु (सातवां सत्र)- 1977 सचित्रा अंधरा (सुरम्य अंधकार)- 1982, श्री राधा (श्री राधा), 1984 ( इस कविता के लिए 1992 में सरस्वती सम्मान जीता ), श्री पलाटक (मिस्टर एस्केपिस्ट), 1997 विशेष रुप से उल्लेखनीय है।
नहीें रहे रमाकांत रथ
