भारत ने पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित दुनिया के उन सभी देशों में सक्रिय आतंकियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है, जो भारत के लिए खतरा बने हुए हैं। पश्चिमी देश आतंकवाद की निंदा तो करते है, किंतु वे आतंकवाद से निपटने के मुद्दे पर भेदभाव भी करते हैं। उसका उदाहरण यह है कि अमरीका, ब्रिटेन, कनाडा तथा न्यूजीलैंड में सक्रिय खालिस्तानियों के प्रति वहां   के  प्रशासन का नरम रुख रहा है। भारत ने उन सभी पश्चिमी देशों  को आईना दिखाया, जो आतंकवाद पर भेदभाव की नीति अपनाते हैं। नई दिल्ली के रायसीना हिल्स में आयोजित दुनिया के 20 से ज्यादा देशों के खुफिया प्रमुखों की बैठक में भारत ने आतंकवाद पर अपना रुख साफ किया। इस बैठक में अमरीका की खुफिया विभाग की निदेशक तुलसी गबार्ड तथा अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वाल्स भी शामिल हुए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की तुलसी गबार्ड के साथ अलग से बैठक हुई थी जिसमें सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) की गतिविधियों के बारे में भारत ने चिंता व्यक्त की। मालूम हो कि एसएफजे के सुप्रीमो गुरुपतवंत सिंह पन्नू अमरीका में वहां की नागरिकता को लेकर भारत विरोधी गतिविधियां चलाते रहता है। डोनाल्ड ट्रंप के अमरीका में सत्ता में आने के बाद आतंकवाद पर स्थिति बदली है। ट्रंप इस्लामिक आतंकवाद के कट्टर विरोधी रहे हैं। उन्होंने खुलेआम पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में सक्रिय इस्लामिक कट्टरपंथियों एवं आतंकियों गतिविधियों के खिलाफ दोनों देशों की सरकारों को कड़ी चेतावनी दी है। तुलसी गबार्ड ने भी भारत की धरती से इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ कड़ा बयान दिया है। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों की गतिविधियों में तेजी आई है। वहां रहने वाले अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं तथा उनके पूजा स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है। मोहम्मद यूनुस सरकार इस पूरे में मामले तमाशाबीन बनी हुई है। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमले पर गहरी चिंता जताई थी। तत्कालीन बाइडेन सरकार भारत के साथ दोस्ती का दावा तो करती थी किंतु साजिश रचने से बाज नहीं आती थी। उम्मीद है कि ट्रंप के शासन में ऐसा नहीं होगा। भारत और अमरीका के बीच रक्षा साझेदारी को मजबूत करने पर भी चर्चा हुई। भारत अमरीका से रक्षा तकनीक तथा खुफिया जानकारी लेने के पक्ष में है। अमरीका भारत को हथियारों की आपूर्ति करना चाहता है किंतु तकनीक देने में आनाकानी कर रहा है। भारत का विशाल बाजार अमरीका को आकर्षित कर रहा है। अमरीका हर हालात में भारत को अपने पाले में रखना चाहता है क्योंकि चीन से प्रतिस्पर्धा करने में भारत की जरूरत होगी। हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत को छोड़कर ऐसा कोई बड़ा देश नहीं है जो चीन के खिलाफ खड़ा हो सके। भारत अमरीका के कहने पर चीन से सीधे पंगा लेने के मूड में नहीं है। रूस-यूक्रेन युद्ध से सबक लेते हुए भारत पूरे मामले में सावधानीपूर्वक कदम उठा रहा है। ट्रंप के टैरिफ वार को देखते हुए भारत भी अपनी स्थिति मजबूत करने में लगा हुआ है। अगर ट्रंप ने भारत पर टैरिफ थोपने का प्रयास किया तो भारत चीन तथा यूरोपीय यूनियन की तरफ मुड़ सकता है। यही कारण है कि अमरीका के बड़े-बड़े अधिकारी लगातार भारत का दौरा कर रहे हैं। अमरीका के उप-राष्ट्रपति जेडी वैंस भी भारत का दौरा करने वाले हैं। कुल मिलाकर भारत आतंकवाद के मुद्दे पर पश्चिमी देशों को घेरने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहा है।