यूक्रेन और रूस के बीच चल रहा युद्ध न केवल दोनों देशों के लिए विनाशकारी सिद्ध हो रहा है, बल्कि वैश्विक स्थिरता को भी खतरे में डाल रहा है। फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण की शुरुआत ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप में सबसे भीषण मानवीय संकट को जन्म दिया। इसके परिणामस्वरूप हजारों निर्दोष नागरिक मारे गए, लाखों लोग विस्थापित हुए, और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। वहीं ताजा घटना में रूस द्वारा यूक्रेन में रविवार रात को किए ड्रोन हमलों में कम से कम सात लोगों की मौत हो गई है। यूक्रेन के स्थानीय अधिकारियों और आपातकालीन सेवाओं ने यह जानकारी दी। यूक्रेन की राजधानी कीव पर यह हमला ऐसे समय में हुआ है, जब सऊदी अरब में दोनों देशों के बीच युद्ध खत्म करने के लिए वार्ता चल रही है। हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई टेलिफोन बातचीत उस कदर कामयाब भले न हुई हो जैसी उम्मीद की जा रही थी, फिर भी सीमित युद्धविराम पर सहमति शांति की दिशा में एक कदम जरूर है। अमरीका की ओर से एक बड़ी कोशिश की जा रही है कि जल्द से जल्द संघर्षविराम का कोई समाधान निकले। तीन वर्षों से मचे कत्लेआम और अरबों की संपदा के नुकसान के बाद अब अमरीकी मध्यस्थता के बाद दोनों देशों के प्रमुख सीजफायर पर हांमी भर चुके हैं। अमरीक राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले यूक्रेन फिर रूस को सीजफायर के लिए मनाने का प्रयास किया। यूक्रेन सीजफायर की एवज पर अमरीका को अपना खनीज भंडारण देने को तैयार है, बदले में वह युद्ध से आजादी चाहता है। वहीं, दूसरी ओर अमरीका से बातचीत के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि हम निश्चित रूप से सीजफायर के विचार का समर्थन करते हैं, लेकिन इसमें कुछ मुद्दे हैं जिन पर चर्चा की जानी चाहिए। हमें अपने अमरीकी सहयोगियों और साझेदारों के साथ इस पर काम करना होगा। हाल ही में एक महीने के अस्थायी युद्धविराम पर यूक्रेन की सहमति मिलने के बाद कई हलकों में माना जा रहा था कि शांति अब ज्यादा दूर नहीं है। इस लिहाज से रूसी राष्ट्रपति पुतिन का यह कड़ा रुख पहली नजर में बहुतों को अप्रत्याशित लग सकता है। लेकिन यूक्रेन युद्ध में दोनों पक्षों का जितना कुछ दांव पर लगा है, उसे देखते हुए उनका फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना अस्वाभाविक नहीं है। सीमित युद्धविराम पर सहमति के बाद शांति की बढ़ी हुई उम्मीदों के बीच दोनों ही पक्ष अपना रुख और कड़ा करते हुए दिख रहे हैं। जहां रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने स्थायी युद्धविराम के लिए यूक्रेन को मिलने वाली हर तरह की बाहरी सहायता पर पूर्ण रोक और उसे नाटो सदस्यता न देने की प्रतिबद्धता जैसी शर्तें रखी हैं, वहीं यूक्रेन कह रहा है कि वह अपनी संप्रभुता को लेकर कोई सौदेबाजी नहीं करेगा और रूस को उसकी कब्जा की गई जमीन वापस करनी होगी। वहीं यूरोपीय देश यूक्रेन के पलड़े का वजन बढ़ाने की कोशिश में अभी भी लगे हैं। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टॉर्मर ने अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप से बातचीत में यह बात दोहराई कि स्थायी और न्यायपूर्ण शांति सुनिश्चित करने के लिए यूक्रेन की स्थिति को अधिकाधिक मजबूती देने की जरूरत है। निश्चित रूप से पूर्ण युद्धविराम की ओर ले जाने वाली आगे की राह मुश्किलों से भरी है। यूक्रेन की कुल भूमि का करीब पांचवां हिस्सा रूस के कब्जे में है। क्या रूस यह जमीन लौटा देगा? न लौटाने पर क्या यूक्रेन इस जमीन पर अपना दावा छोड़ देगा? दोनों में से कोई विकल्प आसान नहीं, लेकिन याद रखना होगा कि विश्व बैंक के मुताबिक तीन साल से चल रहे इस युद्ध में अकेले यूक्रेन को 152 बिलियन डॉलर यानी करीब 13 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। यूक्रेन-रूस संघर्ष में न केवल दोनों देशों को अपार क्षति हुई है, बल्कि वैश्विक शांति और समृद्धि भी प्रभावित हुई है। अब समय आ गया है कि दोनों पक्ष कूटनीतिक समाधान की ओर बढ़ें और संघर्ष विराम पर सहमति बनाएं। अगर यह युद्ध जारी रहा, तो न केवल पूर्वी यूरोप, बल्कि पूरी दुनिया को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।