रेलू हिंसा या फिर महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को लेकर न सिर्फ अक्सर बातें होती हैं, बल्कि कठोर कानून भी बने हैं, बावजूद इसके इनमें कोई कमी नहीं दिखती। लेकिन इस घरेलू हिंसा का एक पक्ष यह भी है कि घरेलू हिंसा के पीड़ितों में महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी हैं, लेकिन उनकी आवाज इतनी धीमी है कि वह न तो समाज को और न ही कानून को सुनाई पड़ती है। पारिवारिक मसलों को सुलझाने के मकसद से चलाए जा रहे तमाम परामर्श केंद्रों की मानें तो घरेलू हिंसा से संबंधित शिकायतों में करीब चालीस फीसद शिकायतें पुरुषों से संबंधित होती हैं यानी इनमें पुरुष घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं और उत्पीड़न करने वाली महिलाएं होती हैं। हाल ही में पुरुषों के साथ हो रही घरेलू हिंसा की घटना अखबारों की सुर्खियां बनी हुई है। यह घटना उत्तर प्रदेश के मेरठ की है। यहां पर मुस्कान नाम की महिला ने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर अपने पति सौरभ की हत्या कर दी। इसके बाद शव के कई टुकड़े करके नीले रंग के ड्रम में रखकर सीमेंट डाल दिया। पति का मर्डर करने के बाद मुस्कान ने लोगों को बताया कि उसका पति घूमने गया है। वारदात को अंजाम देने के बाद मुस्कान अपने प्रेमी साहिल के साथ हिमाचल प्रदेश के शिमला घूमने चले गई। यही नहीं मुस्कान अपने पति का फोन भी लेकर साथ गई और उसने उसके सोशल मीडिया अकाउंट पर हिमाचल के वीडियो भी डाले, ताकि लोगों को लगे कि सौरभ हिमाचल घूमने गया है। मेरठ से ही एक और ऐसा मामला सामने आया है जहां पति-पत्नी के झगड़े में पत्नी ने पति को ऐसी ही भयानक हत्या की धमकी दे डाली। शख्स की पत्नी ने उससे कहा कि अगर हरकतों से बाज नहीं आया तो वह उसके टुकड़े कर ड्रम में भर देगी। आरोप है कि पत्नी ने सोते समय पति के सर पर ईंट मारकर उसे घायल भी कर दिया था। घायल हालत में पति का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो मामला सामने आया है। गोंडा में पत्नी अपने पति को मेरठ हत्याकांड जैसी धमकी दे रही है। पति ने अवैध संबंधों का विरोध किया तो पत्नी ने सरेआम पीटा। धमकी दी- गोंडा वाले सौरभ की तरह काटकर ड्रम में भर दूंगी। वैसे भारत में अभी तक ऐसा कोई सरकारी अध्ययन या सर्वेक्षण नहीं हुआ है जिससे इस बात का पता लग सके कि घरेलू हिंसा में शिकार पुरुषों की तादाद कितनी है, लेकिन कुछ गैर सरकारी संस्थान इस दिशा में जरूर काम कर रहे हैं। 'सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन' और 'माई नेशन' नाम की गैर सरकारी संस्थाओं के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि भारत में नब्बे फीसद से ज्यादा पति तीन साल की रिलेशनशिप में कम से कम एक बार घरेलू हिंसा का सामना कर चुके होते हैं। इस रिपोर्ट में यह भी गया है कि पुरुषों ने जब इस तरह की शिकायतें पुलिस में या फिर किसी अन्य प्लेटफॉर्म पर करनी चाही तो लोगों ने इस पर विश्वास नहीं किया और शिकायत करने वाले पुरुषों को हंसी का पात्र बना दिया गया। लखनऊ में पीड़ित पुरुषों की समस्याओं पर काम करने वाली एक संस्था के संचालक देवेश कुमार बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान ऐसी समस्याओं के बारे में और ज्यादा जानकारी मिली थी, क्योंकि इस दौरान ज्यादातर पति-पत्नी साथ रहे हैं। देवेश कुमार बताते हैं कि लोग कई तरह की समस्याएं लेकर आते थे । मसलन, एक युवक इस बात से परेशान था कि उसकी पत्नी के किसी अन्य व्यक्ति से अवैध संबंध थे। मना करने के बावजूद संबंध जारी रहे। लॉकडाउन के दौरान ही उसे ये बातें पता चलीं। दोनों में विवाद हुआ और लड़की के घर वालों ने युवक को यह कहते हुए धमकाया कि यदि उसने कुछ करने की कोशिश की तो दहेज प्रताड़ना के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया जाएगा। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, देश में पुरुषों की आत्महत्या की दर महिलाओं की तुलना में दो गुने से भी ज्यादा है। इसके पीछे तमाम कारणों में पुरुषों का घरेलू हिंसा का शिकार होना भी बताया जाता है, जिसकी शिकायत वो किसी फोरम पर कर भी नहीं पाते हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि पुरुषों के खिलाफ हिंसा की किसी को जानकारी नहीं है या फिर इसके खिलाफ आवाज नहीं उठती है, लेकिन यह आवाज एक तो उठती ही बहुत धीमी है और उसके बाद खामोश भी बहुत जल्दी हो जाती है। कुछ समय पहले यूपी में भारतीय जनता पार्टी के कुछ सांसदों ने यह मांग उठाई थी कि राष्ट्रीय महिला आयोग की तर्ज पर राष्ट्रीय पुरुष आयोग जैसी भी एक संवैधानिक संस्था बननी चाहिए। इन सांसदों ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा था। पत्र लिखने वाले एक सांसद हरिनारायण राजभर ने उस वक्त यह दावा किया था कि पत्नी प्रताड़ित कई पुरुष जेलों में बंद हैं, लेकिन कानून के एकतरफा रुख और समाज में हंसी के डर से वे खुद के ऊपर होने वाले घरेलू अत्याचारों के खिलाफ आवाज नहीं उठा रहे हैं। पुरुष आयोग की मांग के समर्थन में जो तर्क दिए जाते हैं, उनमें सबसे बड़ा तर्क यह है कि महिलाओं को सुरक्षा देने के जो कानून बने हैं, उनके दुरुपयोग से पुरुषों को प्रताड़ित किया जाता रहा है। इन कानूनों में दहेज कानून यानी धारा 498-ए सबसे प्रमुख है। सुप्रीम कोर्ट में वकील दिलीप कुमार दुबे कहते हैं कि अमरीका के जिस कानून से प्रेरित होकर यह कानून बनाया गया, वह अमरीकी कानून जेंडर निरपेक्ष है और उसमें पुरुषों की प्रताड़ना के मामले भी देखे जाते हैं। लेकिन हमारे यहां यह एकतरफा हो गया है। जबकि दहेज प्रताड़ना से संबंधित ज्यादातर मामले खुद अदालत की निगाह में गलत पाए गए हैं। लैंगिक न्याय के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए पुरुषों के अधिकारों को समान ईमानदारी से संबोधित करने की आवश्यकता है। लैंगिक-तटस्थ कानून, मानसिक स्वास्थ्य सहायता में वृद्धि और सामाजिक रूढ़ियों को ख़त्म करने के लिए जागरूकता अभियान महत्वपूर्ण कदम हैं। जैसा कि मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा था- किसी भी जगह अन्याय हर जगह न्याय के लिए खतरा है। एक सही मायने में समावेशी प्रणाली सभी लिंगों को ऊपर उठाती है, समाज में निष्पक्षता और सद्भाव को बढ़ावा देती है।
महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी हो रहे घरेलू हिंसा के शिकार
