नेपाल की जनता वहां की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था से तंग आ चुकी है। सबको उम्मीद थी कि नेपाल में राजशाही खत्म होने के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था में नेपाल विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर होगा। लेकिन इसका नतीजा ठीक उल्टा हुआ है। नेपाल दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र था। लोकतांत्रिक व्यवस्था होने के बाद हिंदू राष्ट्र का दर्जा खत्म हो गया। कम्युनिस्ट आंदोलन के बाद नेपाल में लोकतांत्रिक तरीके से सरकार का गठन हुआ। लेकिन निर्वाचित सरकारें भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी रही जिससे वहां की जनता का मोह भंग हो गया है। नेपाल में लगातार राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है, जिससे कोई काम नहीं हो रहा है। नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार चीन के कर्ज जाल में फंसी हुई है। जिससे वहां की जनता में काफी नाराजगी है। पिछले कुछ दिनों से नेपाल की जनता राजशाही को फिर से बहाल करने तथा नेपाल को हिंदू राष्ट्र का दर्जा देने की मांग कर रही है। नेपाल की जनता पिछले तीस मार्च को सड़कों पर उतर चुकी थी जिसको नियंत्रित करने के लिए सरकार को सेना को उतारना पड़ा। अब तक वर्तमान आंदोलन में एक टीवी पत्रकार सहित दो की मौत हो चुकी है जबकि सैकड़ों लोग गिरफ्तार किए गए हैं। वर्ष 2008 में नेपाल में कम्युनिस्ट शासन की शुरुआत हुई थी। वहां के तत्कालीन राजा ज्ञानेंद्र शाह को सत्ता से हटना पड़ा था। लेकिन बार फिर वहां की जनता ने राजा ज्ञानेंद्र की अपील पर केपी शर्मा ओली सरकार के खिलाफ आंदोलन करने पर उतर आई है। प्रधानमंत्री ओली ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है। नेपाल की प्रतिनिधि सभा को संबोधित करते हुए ओली ने कहा कि सरकार ज्ञानेंद्र शाह को दी जा रही सभी सुविधाएं बंद करेगी। सड़कों पर हुए विरोध प्रदर्शन पत्थरबाजी एवं तोड़फोड़ की घटना ने नेपाल सरकार को चिंता में डाल दिया है। ऐसी खबर है कि राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने इस आंदोलन को हवा दी है। राजतंत्र के वक्त नेपाल में इस पार्टी का दबदबा हुआ करता था, किंतु कम्युनिस्ट शासन के बाद इस पार्टी की अहमियत खत्म हो गई थी। आंदोलनकारियों ने ओली सरकार को सात दिन का अल्टीमेटम दे रखा है। फिलहाल नेपाल में राजशाही व्यवस्था को बहाल करने के मुद्दे पर सरकार तथा आंदोलनकारी एक-दूसरे के सामने खड़े हो गए हैं। स्थिति की गंभीरता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि सरकार को स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पूर्वी काठमांडू में कर्फ्यू लगाना पड़ा था। आंदोलनकारियों का अल्टीमेटम खत्म होने के बाद आगे स्थिति क्या होगी यह देखना बाकी है। नेपाल की ओली सरकार नेपाल को चीन के हाथों गिरवी बन गई है। कम्युनिस्ट सरकार के शासन के बाद नेपाल में चीन का दखल बढ़ा है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है। नेपाल में चल रहे हिंसा के दौर को देखते हुए भारत को पैनी नजर रखनी होगी। भारत ने नेपाल से सटी सीमा पर सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ा दी है ताकि समाजविरोधी तत्व स्थिति का गलत फायदा नहीं उठा सकें। 1950 में हुए भारत-नेपाल शांति समझौते के तहत लगभग 80 लाख नेपाली लोग भारत में नौकरी करते हैं। दोनों देशों की सीमा खुली हुई है। नेपाल में राजशाही की स्थापना से भारत को लाभ होगा। अगर नेपाल फिर से हिंंदू राष्ट्र घोषित होता है तो इससे भारत और नेपाल के बीच संबंध और प्रगाढ़ होंगे। दोनों देशों के बीच बेटी-रोटी का संबंध चला आ रहा है। लेकिन वहां की कम्युनिस्ट सरकार चीन के इशारे पर समय-समय पर भारत विरोधी भावनाएं भड़काती रहती है। वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भारत विरोधी तथा चीन के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। अब नेपाल की राजशाही समर्थक जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सहायता देने की गुहार कर रही है। कुल मिलाकर ओली सरकार के सामने आगे कठिन चुनौती आने वाली है।
नेपाल में हिंदू राष्ट्र की मांग
