कहते हैं कि वक्त कीमती है और वक्त के साथ सबकुछ बदल जाता है। यह बात अफगानिस्तान में तालिबान सरकार पर पूरी तरह से लागू होती है। खबर है कि कभी बौद्ध मूर्तियों को बम से उड़ाने वाले तालिबान अब उनके संरक्षण की बात कर रहा है, लेकिन क्या सच में अफगान संस्कृृति के प्रति उनके नजरिए में बदलाव आया है या यह बस छवि सुधार की कोशिश है? मार्च 2001 में तालिबान ने अफगानिस्तान के बामियान में गौतम बुद्ध की विशाल मूर्तियों को बम से उड़ा दिया। वह भी केवल इसलिए क्योंकि वह गैर-इस्लामिक थी, लेकिन अब दो दशक बाद तालिबान फिर से सत्ता में है और इस बार खुद इस गैर-इस्लामिक धरोहर को दोबारा सहेजने की बात कर रहा है। हालांकि 2021 में सत्ता संभालने से पहले ही तालिबान ने सांस्कृृतिक विरासत की सुरक्षा की बात कह दी थी, लेकिन कई लोगों को इस दावे पर संदेह था। इसके बाद फरवरी 2025 में तालिबान प्रशासन ने एलान करते हुए कहा कि हम सबकी जिम्मेदारी है कि अफगानिस्तान की धरोहरों और ऐतिहासिक जगहों की रक्षा करें, उन पर निगरानी रखें और उनका संरक्षण करें। ये अफगानिस्तान की समृद्ध संस्कृृति, इतिहास और पहचान का हिस्सा हैं। दशकों चले युद्ध के खत्म होने के बाद बौद्ध धर्म से जुड़े कई अवशेष अब खुद तालिबान प्रशासन उजागर कर रहा है। दावा किया जा रहा कि यह खुदाई के दौरान प्राप्त हुए हैं। इसके अलावा पूर्वी अफगानिस्तान के लघमान प्रांत के गांव गौवर्जन में चट्टानों में बने खोखले हिस्सों को 2000 साल पुराने कुषाण साम्राज्य से जोड़ा जा रहा है। इन चट्टानी गड्ढों को कुषाण साम्राज्य का स्टोररूम बताया जा रहा है। यह साम्राज्य एक समय में गोबी रेगिस्तान से लेकर गंगा नदी तक फैला हुआ था। लघमान में पत्थरों पर ब्राह्मी लिपि में लिखे लेख और एक पत्थर की थाली भी मिली है, जिन्हें देखकर लगता है कि जैसे उसमें अंगूर पीसकर शराब बनाई जाती हो। कहा जाता है कि अफगानिस्तान का इतिहास 5000 साल पुराना है और यह अवशेष इसी बात का सबूत है। यहां जो लोग रहते थे, चाहे वह मुसलमान थे या नहीं थे, पर यहां पर एक साम्राज्य जरूर था। तालिबान इन जगहों की सुरक्षा को बहुत महत्व देता है। गजनी प्रांत में भी इसी धारणा का समर्थन किया गया। बामियान की बौद्ध मूर्तियों का संरक्षण करना चाहिए और इन्हें विरासत के रूप में आगे की पीढ़ियों को सौंपना चाहिए क्योंकि यह हमारे इतिहास का अहम हिस्सा है। हालांकि, अगर यह सांस्कृृतिक धरोहर तालिबान के पहले शासनकाल में सामने आई होती, जो कि 1996 से 2001 के बीच का समय था तो इनका अंजाम कुछ अलग हो सकता था। 2001 में तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर ने मूर्ति पूजन रोकने के लिए सभी बौद्ध मूर्तियों को नष्ट करने का आदेश दिया था और कुछ दिन के भीतर ही बामियान की 1500 साल पुरानी बुद्ध की विशाल प्रतिमाएं, अंतर्राष्ट्रीय विरोध के बावजूद बम से उड़ा दी गईं। जब तालिबान की वापसी हुई तो लोगों को लगा कि वह ऐतिहासिक धरोहर को पहले की तरह ही कोई महत्व नहीं देंगे, लेकिन असल में वे इसे काफी महत्व दे रहे हैं। दिसंबर 2021 में तालिबान ने अफगान राष्ट्रीय संग्रहालय को दोबारा खोला, जहां एक समय उन्होंने खुद गैर-इस्लामिक वस्तुओं को नुकसान पहुंचाया था। 2022 में उन्होंने ऐतिहासिक बौद्ध स्थल 'मेस आयनक' को संरक्षित करने के लिए आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर (एकेटीसी) से मदद भी मांगी। वहां एक तांबे की खदान भी है, जिसका ठेका एक चीनी समूह के पास है। बामियान में अब धरोहरों का महत्व बताने वाले बोर्ड भी दिखने लगे हैं। देश की असली धरोहर को नजरअंदाज किया जा रहा है। तालिबान को अब ये समझ में आ चुका है कि बामियान की बुद्ध मूर्तियों का विनाश उनकी छवि के लिए कितना नुकसानदायक था। उनका मानना है कि अब तालिबान हर तरह की भौतिक विरासत को संरक्षित करना चाहता है। हालांकि कुछ विशेषज्ञों ने उजागर किया कि तालिबान की यह रुचि सिर्फ मूर्तियों और इमारतों तक ही सीमित है। असल में वह इस्लाम में आज भी संगीत, नृत्य, लोक-कथाओं और महिलाओं से जुड़ी समस्याओं को आज भी नजरअंदाज कर रहा है। जैसे हेरत शहर के पुराने यहूदी पूजा स्थल को संरक्षित तो अवश्य कर दिया गया है, लेकिन शहर के प्राचीन यहूदी समुदाय का अब क्या हाल है, इसकी कोई खबर नहीं दी गई है। तालिबान के अपने पहले शासनकाल के बाद से अफगानिस्तान ने कई अंतर्राष्ट्रीय विरासत संधियों पर हस्ताक्षर किए। जैसे 2016 में, उस संधि के तहत देश की विरासत को नुकसान पहुंचाना युद्ध अपराध माना गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अब, जब तालिबान अंतर्राष्ट्रीय मान्यता पाने की कोशिश कर रहा है। तब यह विरासत संरक्षण उनके लिए पर्यटन और आर्थिक विकास, दोनों को हासिल करने का अहम मौका दे सकता है, लेकिन इसको हासिल करने से पहले तालिबान के सामने दो बड़ी मुश्किलें है। एक, पैसे की कमी तथा दूसरा पुरातत्व और विरासत के जानकार लोग अब देश छोड़कर जा चुके हैं। हालांकि, पर्यटकों की सुरक्षा भी एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि पिछले साल बामियान घूमने आए एक समूह पर आतंकवादी हमला हुआ था।
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