भारत ने पाकिस्तान को अब तक हुए ऑपरेशन सिंदूर से पहले के सभी चार युद्धों में न केवल पराजित किया बल्कि जीत का परचम लहरा कर विश्व समुदाय को अपनी क्षमता का एहसास कराया था। ऑपरेशन सिंदूर ने भी पाकिस्तान को न केवल उसकी औकात दिखाई बल्कि उसके 9 आतंकी अड्डों और 11 एयरबेस को क्षति पहुंचा कर पहलगाम आतंकी हमले का बदला लिया। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह आतंकवाद के विरुद्ध है और इसके खात्मे के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है। भारत ने दुनिया को यह भी बता दिया कि वह किसी को छेड़ता नहीं और किसी के छेड़ने पर उसे छोड़ता नहीं। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के ऑपरेशन सिंदूर से पाक फौज को वैश्विक स्तर पर जो शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है उसका किसी भी देश के सैन्य इतिहास में शायद ही कोई उदाहरण मिले। जिस देश की सेना का चीफ ही मौत के डर से बंकर में जाकर बैठ जाए उसकी फौज कितनी जांबाज होगी यह सोचने वाली बात है। भारत ने जिस दिलेरी से ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान को चारों खाने चित किया वह इतिहास में सदियों तक याद किया जाएगा। इस संघर्ष में भारतीय सेना ने रफाल जैसे घातक लड़ाकू विमानों और एस-400 तथा स्वदेशी आकाश तीर जैसे डिफेंस सिस्टम के साथ आकाश, शस्त्र और ब्रह्मोस जैसी स्वदेशी घातक मिसाइलों तथा सक्षम ड्रोन से पाकिस्तान को गंभीर क्षति पहुंचाई जिनके सामने पाकिस्तान की मिसाइलें, तुर्की के ड्रोन या चीन में बने डिफेंस सिस्टम और लड़ाकू विमान और उसकी खुद की बनी मिसाइलें पूरी तरह से नकारा साबित हुईं। वहीं नियंत्रण रेखा पर आर्मी ने पाक रेंजरों पर गोलीबारी कर पाक सेना के जवानों को पीठ दिखाकर भागने को मजबूर कर दिया। जहां एक ओर भारत के पास सक्षम सैन्य संचालन और उच्च बौद्धिक क्षमता वाले सैन्य अधिकारी हैं वहीं पाकिस्तान में घटिया सैन्य अधिकारियों की फौज है। इतनी मार खाने के बाद भी यदि वहां का प्रधानमंत्री डींग हांक कर यह कहे कि उसकी सेना ने भारत के आदमपुर एयरबेस को क्षति पहुंचाई या कहे कि भारत ने सैन्य कार्रवाई को बंद करने की पेशकश की तो यह दुनिया का सबसे बड़ा मजाक ही माना जाएगा। जो भी हो इस संघर्ष में भारत-पाकिस्तान का कोई मुकाबला ही नहीं था। भारत रण के हर क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ रहा। निश्चित ही ऐसी स्थिति में भारत की रक्षा और आक्रमण क्षमता से विश्व समुदाय परिचित हुआ है। वहीं वह भारत में बनी लक्ष्य भेदी मिसाइलों की मारक क्षमता तथा डीआरडीओ के बनाए रक्षा उपकरणों से भी परिचित हुआ है जिसका लाभ भारत को रक्षा उपकरण निर्यात में मिल सकता है।

अब बात उस मुद्दे की जिसके बारे में भारत के संघर्ष रोकने के फैसले पर उंगली उठाई जा रही है। विपक्ष सरकार के जिम्मेदार मंत्रियों अमित शाह और राजनाथ सिंह के बयानों को टारगेट कर रहा है। यह सब विपक्ष द्वारा जहां एक ओर राजनीतिक बढ़त पाने की इच्छा से किया जा रहा है तो वहीं सत्ता पक्ष को विचलित करने की कोशिश के तहत भी किया जा रहा है। विपक्ष देश के गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान को जिसमें उन्होंने संसद में कहा था कि पाकिस्तान अधिकृृत कश्मीर के लिए हम अपनी जान भी दे देंगे तो वहीं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के उस बयान को जिसमें उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान अधिकृृत कश्मीर भारत का है और हम उसे लेकर रहेंगे को ढाल बनाकर प्रचारित कर रहा है कि जब भारत जीत के मुहाने पर खड़ा था तो उसने पाक अधिकृृत कश्मीर पर कब्जा क्यों नहीं किया। ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि अचानक संघर्ष विराम का निर्णय किया गया जिसकी पहली सूचना भी अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने सोशल मीडिया पर दी। विपक्ष पूछ रहा है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ट्रंप के सामने नतमस्तक क्यों हुए। जबकि सच्चाई यह है कि ना तो भारत और ना उसके प्रधानमंत्री ट्रंप के सामने नतमस्तक हुए और ना ही आगे रहकर संघर्ष विराम के लिए ट्रंप से सलाह ही मांगी। वस्तुत: ट्रंप एक बड़बोले राजनेता हैं जिन्होंने अपने एक्स अकाउंट पर संघर्ष विराम की सूचना देते हुए यह भी कहा कि उन्होंने ही युद्ध विराम करवाया है। इसी के साथ यह भी कहा कि 1000 साल से चली आ रही कश्मीर की समस्या पर दोनों देश किसी तीसरे तटस्थ देश में बात करेंगे। सच्चाई यह है कि ना तो ट्रंप ने मध्यस्थता ही की और ना ही कश्मीर विवाद पर उन्हें कोई विशेष जानकारी है। अगर जानकारी होती तो वे समस्या को 1000 साल पुरानी नहीं बताते। यही कारण था कि कांग्रेस के मनीष तिवारी ने ट्रंप के कश्मीर विवाद को 1000 साल की समस्या कहने पर कहा कि यह 1000 साल पुराना संघर्ष नहीं बल्कि 78 साल पहले शुरू हुआ विवाद है। सच तो यह है कि ट्रंप ने ऐसा कहकर अपने बड़बोलेपन को खुद ही उजागर कर दिया। यही नहीं उन्होंने स्वयं को मध्यस्थ बताकर अपने को महिमा मंडित करने की कोशिश भी की। किंतु सच्चाई इसके विपरीत थी। संघर्ष रोकने पर भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ के बीच बातचीत में पाकिस्तान की ओर से पहल कर निवेदन किया गया कि अब भारत संघर्ष को विराम दे, क्योंकि पाक आगे और सैन्य कार्रवाई करने की स्थिति में नहीं है। उस निवेदन को भारत ने स्वीकार किया लेकिन इसकी घोषणा दोनों देश कर पाएं उसके कुछ मिनट पहले ही ट्रंप ने लपक कर अपनी मध्यस्थता से संघर्ष विराम की सूचना प्रसारित कर दी। भारत एक संवेदनशील देश ही नहीं विश्व समुदाय के नेताओं का सम्मान करना भी जानता है सो उसने राष्ट्रपति ट्रंप के सम्मान को अक्षुण्ण रखते हुए विदेश मंत्री के माध्यम से कहा कि भारत दोनों देशों के बीच किसी की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता। पाकिस्तान से द्विपक्षीय वार्ता हो सकती है लेकिन वह भी केवल आतंकवाद और पाक अधिकृृत कश्मीर पर। जब ट्रंप समझ गए कि उनके बयान से विश्व समुदाय में उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा तो उन्होंने यू टर्न लेते हुए कहा कि मैंने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता नहीं की लेकिन मैंने मदद की। मैं यह नहीं कहता कि मैंने यह (युद्ध विराम) किया किंतु यह पक्का है कि मैंने सेटल करने में मदद की क्योंकि दोनों देशों के बीच और भी भयावह हमले हो सकते थे। इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया कि ट्रंप ने जो किया वह अपनी चौधराहट स्थापित करने के लिए किया। लेकिन भारत का विपक्ष इस बात का दुष्प्रचार करता दिखाई दे रहा है कि भारत अमरीका के सामने झुक गया। निश्चित ही पहलगाम हमले के विरुद्ध की गई भारतीय सेना की कार्रवाई से सत्ता पक्ष ने बढ़त प्राप्त कर ली है जिससे विपक्ष घबराया हुआ प्रतीत हो रहा है।