1577: मुगल सम्राट जहांगीर की पत्नी नूरजहां का जन्म।  नूरजहाँ का जन्म मेहर-उन-निसा के नाम से हुआ था, जो अकबर के एक महान वज़ीर की बेटी थी। 31 मई 1577 को, कंधार (वर्तमान अफगानिस्तान) में उनका जन्म हुआ था

1727: फ्रांस, ब्रिटेन और नीदरलैंड ने पेरिस संधि पर हस्ताक्षर किए। यह संधि मुख्य रूप से यूरोपीय और अमेरिकी इतिहास के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं का हिस्सा थी। 

1759: अमेरिका के उत्तर पूर्वी प्रांत पेंसिलवेनिया में थियेटर के सभी कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाया गया। यह प्रतिबंध धार्मिक और नैतिक कारणों से लगाया गया था, क्योंकि कुछ लोग थियेटर को अनुचित और पापी मानते थे. 

1878: जर्मनी का युद्धपोत एसएमएस ग्रोसर करफर्स्ट के डूबने से 284 लोगों की मौत।

1889: 1889 में, अमेरिका के पेंसिल्वेनिया राज्य के जांसटाउन शहर में भयानक बाढ़ आई थी, जिससे 2200 से अधिक लोगों की जान चली गई थी। यह घटना उस समय की सबसे बड़ी तबाही वाली बाढ़ में से एक थी। 

1900: लार्ड राबर्टस के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों ने जोहान्सबर्ग पर कब्जा किया।

1907: अमेरिका के न्यूयार्क शहर में पहली टैक्सी सेवा शुरू।



1921: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे को अंगीकार किया गया।

1935: पाकिस्तान के क्वेटा शहर में भीषण भूकंप से 50 हजार से अधिक लोगों की मौत।

1959: बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा को तिब्बत से निर्वासन के बाद भारत में शरण दी गई। उन्होंने तिब्बत से भागकर 31 मार्च, 1959 को भारत में प्रवेश किया था। वह तब से भारत में रह रहे हैं, और उन्होंने धर्मशाला में एक निर्वासित तिब्बती सरकार की स्थापना की है. 

1964: बंबई में इलेक्ट्रिक ट्राम अंतिम बार चली। मुंबई में ट्राम सेवा का अंत: 31 मार्च 1964 को, मुंबई में ट्राम का संचालन बंद कर दिया गया, जो 90 वर्षों से शहर के लोगों को परिवहन प्रदान कर रही थी
यह एक दुखद विदाई थी: आखिरी ट्राम बोरीबंदर से दादर के लिए चली, जो लोगों से भरी हुई थी और लोगों ने इस पुरानी परिवहन सेवा को विदाई दी ट्रामों के बंद होने के बाद, BEST (Bombay Electric Supply and Transport) ने अपनी मोटर चालित बस सेवा 15 जुलाई 1926 से शुरू की, जो मुंबई में ट्राम के इतिहास बनने से बहुत पहले की बात है

1966: दक्षिणी वियतनाम के शासन के विरोध में ह्यू शहर में वियतनाम की बौद्ध युवती ने खुद को आग लगाकर जान दे दी। आग की लपटों से घिरी युवती की तस्वीर ने दुनियाभर में तहलका मचा दिया।

1977: भारतीय सेना के एक दल ने पहली बार विश्व के तीसरे सबसे ऊंचे पर्वत शिखर कंचनजंगा पर चढ़ाई की।  यह चढ़ाई दो अलग-अलग मार्गों से हुई थी: एक जर्मन मार्ग पर, और दूसरा उत्तरी रिज पर. 24 मई 1977 को, दल एन.ई. स्पर (1931 मार्ग) से होकर उत्तरी रिज पर पहुंचा। उनका सबसे ऊंचा शिविर 7990 मीटर की ऊँचाई पर रिज पर था. 30 मई को, मेजर प्रेम चंद और नाइक एन.डी. शेरपा ने 7990 मीटर की ऊँचाई पर एक ऊंचा पड़ाव बनाया, और अगले दिन शिखर पर पहुंचने का प्रयास किया, लेकिन शिखर से कुछ ही पहले रुक गए. डग स्कॉट और उनकी टीम ने उत्तरी रिज मार्ग से चढ़ाई की, और टीमों ने कंचनजंगा की अन्य चोटियों पर भी चढ़ाई की