धरती कांपी, लहरें उठीं और मानवता फिर एक बार सतर्क हो गई। रूस के सुदूर पूर्व में स्थित कामचटका प्रायद्वीप में बुधवार तड़के आए रिक्टर पैमाने पर 8.0 तीव्रता के शक्तिशाली भूकंप ने न केवल रूस को हिलाकर रख दिया, बल्कि इसने पूरे प्रशांत क्षेत्र को एक बार फिर प्राकृृतिक आपदा की भयावह संभावना के सामने लाकर खड़ा कर दिया। भूकंप का केंद्र जमीन के 74 किलोमीटर भीतर था-यानी यह एक गंभीर गहराई वाला भूकंप था, जिसकी कंपन सतह पर कहीं अधिक व्यापक प्रभाव डालने में सक्षम थी। इस भूकंप के तत्काल बाद सुनामी की चेतावनी जारी की गई, जिसमें न केवल रूस के पूर्वी तटीय क्षेत्र, बल्कि जापान, अमरीका के हवाई द्वीप, और प्रशांत महासागर के अन्य तटीय इलाके शामिल थे। शुरुआती विश्लेषणों के आधार पर चेतावनी को कुछ क्षेत्रों में परामर्श स्तर तक कम कर दिया गया, लेकिन यह किसी भी तरह से खतरे के पूरी तरह टल जाने का संकेत नहीं था। हवाई राज्य के रक्षा विभाग ने चेताया कि इस चेतावनी को परामर्श में बदलने का अर्थ यह नहीं है कि खतरा खत्म हो गया है। इसके उलट, अब भी समुद्री तटों और बंदरगाहों पर तेज प्रवाह, खतरनाक लहरें और स्थानीय बाढ़ जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। यही कारण है कि प्राधिकारियों ने लोगों से आग्रह किया कि वे समुद्र के किनारों से दूर रहें। रूस के इस शक्तिशाली भूकंप से कुछ ही समय पहले ग्वाटेमाला में भी 5.6 तीव्रता का भूकंप आया, जिससे स्थानीय स्तर पर इमारतों को नुकसान हुआ। भले ही ये घटनाएं भौगोलिक रूप से हजारों किलोमीटर दूर हुईं, परंतु इन दोनों घटनाओं ने एक समान संकेत दिया। पृथ्वी की परतों में अस्थिरता बढ़ रही है और इसका असर वैश्विक पैमाने पर देखा जा रहा है। भूगर्भीय वैज्ञानिक लंबे समय से इस बात की चेतावनी देते आ रहे हैं कि पृथ्वी के भीतर जटिल प्लेट गतियों और ऊर्जा के संचयन से भविष्य में और भी शक्तिशाली भूकंप हो सकते हैं। यह घटना उसी परिप्रेक्ष्य का हिस्सा मानी जा सकती है। रूस में किसी बड़ी क्षति या जानमाल की हानि की खबर अब तक सामने नहीं आई है, यह राहत की बात है। लेकिन यह एक गंभीर प्रश्न उठाती है: क्या दूसरे देश इतनी सौभाग्यशाली होंगे? क्या हम आपदा के लिए तैयार हैं या केवल उसके बाद की प्रतिक्रिया में विश्वास रखते हैं? जापान और हवाई जैसे देशों ने दिखाया है कि वर्षों की तैयारी, सतर्कता और सटीक चेतावनी प्रणालियां कितनी निर्णायक साबित हो सकती हैं। उनकी प्रणाली ने न केवल संभावित जान-माल की हानि को टालने में मदद की, बल्कि पूरे क्षेत्र को समय रहते सतर्क कर दिया। परंतु ऐसे अनेक देश और क्षेत्र हैं जहाँ भूकंप और सुनामी चेतावनी प्रणालियां या तो अपर्याप्त हैं या पूरी तरह से नदारद। वहां एक छोटा झटका भी बड़ी तबाही का कारण बन सकता है। यही वह बिंदु है जहां हमें वैश्विक सहयोग और तकनीकी साझेदारी की जरूरत है। हम अलग-अलग देशों में रह सकते हैं, लेकिन हम सब एक ही पृथ्वी की सतह पर, एक ही प्लेटों पर खड़े हैं। प्रकृृति की चेतावनियां सीमाओं को नहीं पहचानतीं। इसलिए हमारी तैयारियां भी सीमाओं से ऊपर उठकर होनी चाहिए। कभी-कभार प्रकृति हमें चेताती है कि मनुष्य अपने अनुसंधान और विज्ञान के बल पर न इतराए क्योंकि प्रकृति जब विध्वंस की दिशा में आगे बढ़ती है तो सबकुछ नेस्ता-नाबूद कर देती है। रूस में आए भूकंप ने बता दिया कि प्रकृति के सामने मनुष्य सदैव बौना रहा है और भविष्य में उसकी स्थिति ऐसी ही रहने वाली है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अभी भी प्रकृति के उतार-चढ़ाव पर बहुत सारे अनुसंधान करने की जरूरत है। अभी तक भूकंप को कैसे रोका जाए इसके उपाय सामने नहीं आए है। परंतु इससे कैसे बचा जाए इसको लेकर काफी तकनीकें विकसित की गई हैं। यदि भूकंप के समय हम उन तकनीकों का उपयोग करे तो हताहत होने से बच सकते हैं। इसलिए भूकंप से कैसे बचें इसको लेकर विशेष प्रशिक्षण की जरूरत है।
प्रकृृति की चेतावनी
