फिलवक्त की गर्मियों के बीच वैश्विक राजनीति के क्षितिज पर एक बार फिर आशंका के बादल मंडराने लगे हैं। दो ताकतवर देशों- संयुक्त राज्य अमरीका और रूस के बीच बयानबाजी अब सैन्य सतर्कता की सीमाओं को छूने लगी है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से दो न्यूक्लियर सबमरीन तैनात करने का ऐलान और रूस के पूर्व राष्ट्रपति व वर्तमान सुरक्षा परिषद उपाध्यक्ष दिमित्री मेदवेदेव की भड़काऊ टिप्पणियां, एक ऐसे टकराव की आहट हैं, जो केवल दो नेताओं की ईगो तक सीमित नहीं है- यह वैश्विक स्थिरता के लिए गंभीर संकेत है। डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ सोशल पर ऐलान किया कि उन्होंने एहतियातन दो न्यूक्लियर सबमरीन रूस के करीब तैनात कर दी है। ट्रंप का यह कदम मेदवेदेव की एक धमकी भरी सोशल पोस्ट के जवाब में आया, जिसमें उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से परमाणु शक्ति के प्रयोग की ओर इशारा किया था। ट्रंप के शब्दों में जब आप न्यूक्लियर की बात करते हैं, तो हमें पूरी तरह तैयार रहना चाहिए। यह बयान न केवल एक सैन्य सतर्कता को दर्शाता है, बल्कि ट्रंप की रणनीति में आए उस निर्णायक बदलाव को भी रेखांकित करता है, जो लंबे समय तक रूस के प्रति नरमी दिखाने के बाद अब कड़े रुख में परिवर्तित हो रहा है। कभी एक उदारवादी राष्ट्रपति के रूप में पहचाने जाने वाले दिमित्री मेदवेदेव, अब रूस-यूक्रेन युद्ध के सबसे मुखर समर्थकों में हैं। उनकी भाषा में आए तीखेपन ने ट्रंप जैसे नेता को भी रक्षात्मक मुद्रा अपनाने पर मजबूर कर दिया है। उन्होंने 28 जुलाई को ट्रंप के अल्टीमेटम को बचकानी धमकी करार दिया और जवाबी चेतावनियों के साथ सोशल मीडिया पर शब्दों का युद्ध छेड़ दिया। पहले 50 दिन और अब सिर्फ 8 अगस्त तक का अल्टीमेटम कूटनीति की परंपरागत शैली से हटकर एक व्यावसायिक सौदेबाजी की तरह प्रतीत होती है। इस तरह की डेडलाइन डिप्लोमेसी यदि विफल होती है तो उसके बाद सैन्य और आर्थिक प्रतिक्रियाएं दुनिया को एक नए टकराव की दिशा में ले जा सकती हैं। ट्रंप के सबमरीन ऐलान के कुछ ही घंटों बाद, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हाईपरसोनिक ओरेश्निक मिसाइलों के उत्पादन और बेलारूस में संभावित तैनाती की घोषणा कर दी। यह महज संयोग नहीं है, बल्कि यह स्पष्ट संकेत है कि दोनों पक्ष अब कूटनीतिक संवाद से अधिक सामरिक प्रदर्शन की ओर बढ़ रहे हैं। यूक्रेन में जारी युद्ध की भयावहता दिन-ब-दिन बढ़ रही है। 31 जुलाई को कीव पर हुए रूसी ड्रोन हमले में 31 नागरिकों की मौत और सैकड़ों की जानें पिछले महीनों में जा चुकी हैं। अमरीका और रूस की यह प्रतिद्वंद्विता भले ही बड़े रणनीतिक मंच पर चल रही हो, लेकिन असली कीमत यूक्रेनी नागरिक चुका रहे हैं। इतिहास गवाह है कि जब भी परमाणु शब्द सार्वजनिक मंचों पर बार-बार उछाला गया है, तब दुनिया ने डर महसूस किया है। ट्रंप की ओर से की गई यह तैनाती चाहे प्रतीकात्मक हो या रणनीतिक, यह एक खतरनाक शुरुआत हो सकती है, यदि संवाद का रास्ता न अपनाया गया। अब सवाल यह नहीं है कि ट्रंप या मेदवेदेव क्या कह रहे हैं। असल सवाल यह है कि क्या ये महाशक्तियां इस बयानबाजी को वास्तविक कार्रवाई में बदलने की हद तक ले जाएंगी? और यदि ऐसा होता है, तो परिणाम केवल इन देशों तक सीमित नहीं रहेंगे। परमाणु हथियारों की धमकियां और सैन्य तैयारियां भले ही कूटनीतिक ताकत दिखाने का साधन हों, लेकिन इन्हें लंबे समय तक खींचना एक भयानक भूल हो सकती है। दुनिया को आज ट्रंप और मेदवेदेव जैसे नेताओं से जिम्मेदारी की उम्मीद है, प्रतिक्रिया की नहीं। संवाद, समझदारी और सामूहिक विवेक ही इस उबलती दुनिया को शांति की ओर ले जा सकते हैं। नहीं तो इतिहास फिर वही पूछेगा- क्या यह रोका जा सकता था? कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि वैश्विक सत्ता के शीर्ष पर बैठे दो प्रमुख सत्ताधीश ट्रंप और पुतिन ने समझदारी से कार्य नहीं किया तो दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध से नहीं बचाया जा सकता।
परमाणु प्रतिध्वनि
