डिजिटल डेस्क: यह एक माता-पिता और एक नन्ही बच्ची की दिल को छू लेने वाली कहानी है। सोशल मीडिया पर साझा की गई एक पोस्ट ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। X पर प्रकाशित चार वर्षीय एक बच्ची और उसके माता-पिता के लगभग छह महीने बाद हुए पुनर्मिलन की यह कहानी इस समय विशेष चर्चा का विषय बनी है। मुंबई पुलिस के प्रयासों से 6 महीने से लापता यह बच्ची बाल दिवस के पावन अवसर पर फिर से अपने माता-पिता की गोद में लौट आई। X पर साझा की गई कहानी के अनुसार—20 मई 2025 को मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस रेलवे स्टेशन पर माँ की गोद से चार वर्षीय बच्ची 'आरोजी' अचानक गायब हो गई। पिता के इलाज के सिलसिले में मुंबई आए इस परिवार की ज़िंदगी उस पल बिखर गई, जब एक पल की थकान में माँ की गोद से गुलाबी फ्रॉक पहनी बच्ची ओझल हो गई। उस दिन के बाद से माता-पिता ने दिन–रात एक कर हर थाने, हर गली–कूचे में बच्ची की तलाश शुरू की। हाथ में बच्ची की तस्वीर लेकर वे मुंबई की गलियों में भटकते रहे। इन छह महीनों में उनके खाने–पीने, जीने का सारा सहारा लगभग खत्म हो गया था।
मुंबई पुलिस ने भी इस घटना को गंभीरता से लेते हुए पूरी कोशिश जारी रखी। बच्ची की तस्वीर वाले पोस्टर बनाकर हर रेलवे स्टेशन से लेकर घर–घर तक तलाश जारी रही और मीडिया से भी मदद ली गई। लेकिन टूट चुके माता-पिता के लिए छह महीने बहुत लंबा समय था—आशा लगभग बुझने लगी थी। लेकिन एक दिन उम्मीद की किरण बनकर एक पत्रकार देवदूत की तरह सामने आया। 13 नवंबर को वाराणसी के एक स्थानीय पत्रकार ने पोस्टर में लगी बच्ची की तस्वीर देखकर याद किया कि उसने उसी बच्ची को देखा था और उसके मुँह से अचानक “आई” (मराठी में माँ) शब्द सुना था। अगले सुबह मुंबई पुलिस की वीडियो कॉल पर स्क्रीन में वही गुलाबी फ्रॉक पहनी बच्ची दिखाई दी। जून महीने में वाराणसी के एक रेलवे स्टेशन से रोती हुई यह बच्ची मिली थी, और आश्रम के लोगों ने उसका नाम “काशी” रख दिया था। चार साल की यह बच्ची सब कुछ भूल चुकी थी, लेकिन कभी–कभी उसके मुँह से “आई” शब्द निकल जाता था। 14 नवंबर—बाल दिवस का दिन।
आरोजी का स्वागत करने के लिए उसके माता–पिता के साथ मुंबई क्राइम ब्रांच और मुंबई पुलिस तैयार थी। सभी उसके लिए रंग-बिरंगे गुब्बारे और एक नीली फ्रॉक लेकर आए। छोटे-छोटे कदमों से चलती हुई आरोजी जैसे ही सामने आई, उसने मासूम मुस्कान के साथ मुख्य पुलिस अधिकारी को गले लगा लिया। अधिकारी ने भावुक होकर उसे अपनी बाँहों में उठा लिया। उस पल वहाँ मौजूद कई पुलिसकर्मियों की आँखें भी भर आईं—यह वही लोग थे जो सबसे कठिन हालात में भी नहीं रोते। उधर आरोजी के माता–पिता—जो बस रो रहे थे। उनके कदम आँसू में डगमगा रहे थे। सभी ने आरोजी को उसकी माँ की बाहों में सौंप दिया। अपने जिगर के टुकड़े को वापस पाकर माँ–बाप ने उसे प्यार से चूम लिया और बच्ची उनके पैरों से लिपटकर रो पड़ी। सचमुच, मुंबई पुलिस और उस पत्रकार को करोड़ों प्रणाम। उन्हीं की बदौलत टूटे हुए माता-पिता अपने खोए हुए बच्चे से मिल पाए। आज फिर माँ लोरी गा रही है। पिता चेहरे पर मुस्कान लेकर शांत नींद सो पा रहे हैं। यह कहानी X पर मोहिनी महेश्वरी नाम की एक महिला ने साझा की है।
(यह कहानी केवल X पर प्रकाशित पोस्ट के आधार पर प्रचलित हुई है।)