रूस-यूक्रेन युद्ध 24 मार्च को 29वें दिन में प्रवेश कर गया है। पहले सबको उम्मीद थी कि यूक्रेन इस युद्ध में रूस के सामने ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाएगा, किंतु अमरीका एवं पश्चिमी देशों द्वारा दी जा रही सैन्य मदद के बल पर यूक्रेन रूस को कड़ी चुनौती दे रहा है। हालांकि रूसी सैनिकों के हमले में यूक्रेन पूरी तरह तबाह हो गया है। अमरीका एवं उसके नाटो सहयोगी रूस पर ताबड़तोड़ प्रतिबंध लगा रहे हैं, किंतु रूसी राष्ट्रपति पुतिन पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। रूस चाहता है कि उसका पड़ोसी देश यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं बने तथा परमाणु अस्त्र का निर्माण नहीं करे। युद्ध से पहले रूस ने यूक्रेन के दो प्रांतों को मिलाकर एक स्वतंत्र देश बनाकर उसको मान्यता दे दी है। रूस चाहता है कि यूक्रेन भी उसे मान्यता दे दे। अगर दो देशों के बीच युद्ध होता तो शायद अब तक खत्म हो जाता। यह वास्तव में रूस और अमरीका के बीच वर्चस्व की लड़ाई है। जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे खतरनाक रूप लेता जा रहा है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए खतरनाक मिसाइलों एवं बमों का प्रयोग करने लगे हैं। रूसी हमले में आम लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। बड़ी संख्या में लोगों की जानें भी गई हैं। अब जरूरत इस बात की है कि इस युद्ध को बंद कराने के लिए पहल की जाए। इसके लिए रूस तथा यूक्रेन दोनों को व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने नाटो के सदस्यों के साथ बैठक कर यूक्रेन को और सहायता देने की योजना बनाई है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की चाहते हैं कि अमरीका और नाटो के देश और ज्यादा सैनिक सहायता दें। यूक्रेन युद्ध को लेकर अमरीका एवं रूस के बीच बढ़ती तल्खी दुनिया को विश्वयुद्ध की ओर धकेल रही है। अब तो रूस ने परमाणु हमले की धमकी भी दे दी है। भारत इस पूरे मामले में तटस्थ रुख अपनाए हुए है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के विभिन्न मंचों पर हुई चर्चा के दौरान भारत ने बातचीत के द्वारा कूटनीतिक प्रयास से समस्या को सुलझाने की सलाह दी है। भारत विभिन्न मंचों पर वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रहा है। रूस के खिलाफ आए प्रस्ताव के दौरान अनुपस्थित रहकर भारत ने एक तरह से रूस का समर्थन ही किया है। यह सबको मालूम है कि भारत के रूस और अमरीका दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं। भारत का 60 से 70 प्रतिशत हथियारों एवं अन्य सैन्य उपकरणों का आयात रूस से होता है। रूस भारत का विश्वसनीय साझीदार है, जिसने हर संकट के मौके पर साथ दिया है। चीन की ओर से बढ़ती चुनौती को देखते हुए भारत को अमरीका से सहयोग की भी जरूरत है। चीन पर अंकुश रखने के लिए अमरीका के नेतृत्व में क्वाड संगठन का भी गठन हुआ है, जिसमें भारत के अलावा जापान एवं आस्ट्रेलिया भी शामिल हैं। अमरीका चाहता था कि क्वाड की बैठक में रूस के खिलाफ चर्चा हो, किंतु भारत ने ऐसा नहीं होने दिया। अपने कूटनीतिक प्रयास से भारत अमरीका और रूस के बीच संतुलन बनाए रखने के प्रयास में है। युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है। विश्व शक्तियों को इस क्षेत्र में आगे आना चाहिए, ताकि युद्ध पर तत्काल विराम लग सके। रूस और यूक्रेन को भी समझदारी दिखानी चाहिए।
विश्वयुद्ध का बढ़ता खतरा
