कोरोना ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कड़ी चोट दी है और रुस-यूक्रेन ने उसे घाव में तब्दील कर दिया है। यदि यह युद्ध और लंबे समय तक जारी रहा तो स्थिति और भयावह हो सकती है। दूसरी ओर कोरोना के फिर से आगमन की आशंका ने आम आदमी की चिंता और बढ़ा दी है। वैसे आम आदमी का जीवन इस तरह प्रभावित हुआ है कि उसके सामने अपने खर्च में कटौती के सिवाय और कोई रास्ता शेष नहीं है। ऐसे में लोगों ने बाहर के खाने, ईंधन और यहां तक कि सब्जियों में भी कटौती शुरू कर दी है, क्योंकि महंगाई के कारण घर का खर्च बढ़ गया है। कोविड-19 से उबर रही अर्थव्यवस्था पर अब यूक्रेन युद्ध का असर दिखने लगा है और आवश्यक उपभोक्ता चीजों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, जिसका असर जन-जीवन पर नजर आने लगा है। भारत में कंपनियां बढ़ती लागत को अब आम उपभोक्ताओं से वसूल रही हैं। हाल ही में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में पांच महीनों में पहली बार वृद्धि हुई है। खाने के तेल के दाम भी आसमान छू रहे हैं। कोरोना संकट के कारण बहुत सारे लोगों की तनख्वाह आधी हो चुकी है। ऐसे में कई परिवार अब ज्यादातर उबला हुआ खाना खाते हैं ताकि खाने के तेल का खर्च बचाया जा सके। ऐसी ही छोटी-छोटी कटौतियों के लिए मजबूर हो रहे हैं। होटलों और रेस्तरांओं में लोगों का आगमन कम होने लगा है। ब्यूटी पार्लर और जिम में भी जाने वालों की संख्या घटी है। तेल की बढ़ी हुई कीमतों का असर मौजूदा रफ्तार पर पड़ेगा, क्योंकि इसके कारण महंगाई बढ़ रही है। दूध कंपनियां मदर डेयरी और अमूल भी दाम बढ़ा चुकी हैं। भारतीय कंपनियों ने दूध, नूडल, चिकन और अन्य सामानों के दाम पांच से 20 प्रतिशत तक बढ़ाए हैं। कोविड महामारी का असर भारत के लगभग 80 प्रतिशत परिवारों पर पड़ा था। करीब 1.4 अरब आबादी में से लगभग 80 करोड़ लोगों को महामारी के कारण सरकार से राशन मिल रहा है। अब कीमतों में मामूली वृद्धि भी इन परिवारों के बजट को प्रभावित कर सकती है। जानकार मानते हैं कि लगातार तीसरा साल ऐसा हो सकता है जब परिवारों का बजट तंग होगा। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने आयात पर निर्भर रहने वाले देशों को ईंधन की कीमतें बढ़ाने को मजबूर कर दिया है। भारत अपनी जरूरत का लगभग 85 प्रतिशत तेल आयात करता है और इस साल उसने ईंधन की कीमतें लगभग 50 प्रतिशत तक बढ़ाई हैं। भारत खाने के तेलों का भी दुनिया का सबसे बड़ा आयातक है। उसकी कुल जरूरत का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा विदेशों से आता है। भारत में पाम ऑयल सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला खाने का तेल है। इस साल उसकी कीमतें 45 प्रतिशत तक बढ़ चुकी हैं। यूक्रेन जिस सूरजमुखी के तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है, उसकी सप्लाई प्रभावित होने से भी बाजार पर असर पड़ा है। कुछ थोक व्यापारियों का कहना है कि पिछले एक महीने में दाम बढ़ने के साथ-साथ खाने के तेलों की बिक्री में लगभग एक चौथाई की कमी आ चुकी है। फरवरी में लगातार दूसरे महीने मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत से ऊपर रही है जबकि थोक मुद्रास्फीति 13 प्रतिशत से ज्यादा है। चूंकि उपभोग कम हो रहा है इसलिए मुद्रास्फीति में वृद्धि के लिए इससे बुरा समय नहीं हो सकता था। भारत के केंद्रीय बैंक ने कहा है कि वह उपभोक्तओं, वस्तुओं के दामों पर नजर बनाए हुए है। अगले महीने बैंक को अपनी नई मौद्रिक नीति तय करने के लिए बैठक करनी है। लेकिन बाजार को उम्मीद नहीं है कि रिजर्व बैंक दरों में कोई बदलाव करेगा। ऐसी परिस्थिति में देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने महंगाई के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने जा रही है। ऐसा करने से उपभोक्ताओं को कुछ राहत मिलेगी, फिलहाल यह भविष्य के गर्भ में है।
महंगाई की मार
