रूस-यूक्रेन युद्ध को चलते हुए लगभग एक माह ज्यादा हो गया है। रूस वांछित नतीजा हासिल नहीं कर पाया है। जैसे-जैसे समय बीत रहा है, अधिक विनाश एवं विध्वंस की संभावनाएं बढ़ती जा रही है। यूक्रेन और रूस में शांति का उजाला करने, अभय का वातावरण, शुभ की कामना और मंगल का फैलाव करने के लिए भारत को शांति प्रयास करने चाहिए। एकमात्र भारत ही ऐसा देश है जो अपने आध्यात्मिक तेज एवं अहिंसा की शक्ति से मनुष्य के भयभीत मन को युद्ध की विभीषिका से मुक्ति दे सकता है। इन दोनों देशों को युद्ध विराम के लिए राजी करके विश्व को निर्भय बना सकता है। इन युद्ध एवं हिंसा के वातावरण में अहिंसा यात्रा एवं उसके प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण का संदेश कारगर हो सकता है। क्योंकि राष्ट्रसंत आचार्य श्री महाश्रमण कीर्तिधर यायावर संतपुरुष हैं, जिन्होंने अपनी अहिंसा यात्रा के माध्यम से न केवल संपूर्ण भारत की बल्कि पड़ोसी देश नेपाल, भूटान की पदयात्रा की है और अहिंसा एवं अयुद्ध का प्रभावी वातावरण निर्मित किया। गांव-गांव, नगर-नगर, प्रांत-प्रांत एवं निकट के देशों में घूमते हुए उन्होंने अहिंसा, अयुद्ध, सांप्रदायिक सौहार्द, मैत्री, समन्वय, राष्ट्रीय एकता, एवं सद्ïभ्राव की प्रतिष्ठा करने में अपूर्व एवं ऐतिहासिक योगदान दिया है तथा लाखों-लाखों लोगों से सीधा संपर्क स्थापित कर उन्हें अहिंसक बनने, सांप्रदायिक सौहार्द स्थापित करने एवं व्यसनमुक्त जीवन जीने की प्रेरणा दी। उनके इस चरैवेति-चरैवेति जीवनक्रम एवं संकल्प को देखकर सहसा वेदमंत्र -‘पश्य सूर्यस्य श्रेमाणं, यो न तन्द्रयते चरनं’ की स्मृति हो उठी है अर्थात् सूर्य चिरकाल से भ्रमण कर रहा है, पर कभी थकता नहीं, चलता ही जाता है।
बात केवल रूस-यूक्रेन युद्ध की ही नहीं है, बल्कि देश के भीतर घटित हिंसा के तांडव की भी है। जबकि अहिंसा सबसे ताकतवर हथियार है, बशर्ते कि इसमें पूरी ईमानदारी बरती जाए। लेकिन देश में किसान आंदोलन हो या ऐसे ही अन्य राजनैतिक आंदोलन, उनमें हिंसा का होना गहन चिंता का कारण बना है। हिंसा, नक्सलवाद और आतंकवाद की स्थितियों ने जीवन में अस्थिरता एवं भय व्याप्त कर रखा है। अहिंसा की इस पवित्र भारत भूमि में हिंसा का तांडव सोचनीय है। महावीर, बुद्ध, गांधी एवं आचार्य तुलसी के देश में हिंसा को अपने स्वार्थपूर्ति का हथियार बनाना गंभीर चिंता का विषय है। इस जटिल माहौल में आचार्य श्री महाश्रमण द्वारा अहिंसा यात्रा के विशेष उपक्रम के माध्यम से अहिंसक जीवनशैली और उसके प्रशिक्षण का उपक्रम और विभिन्न धर्म, जाति, वर्ग, संप्रदाय के लोगों के बीच संपर्क अभियान चलाकर उन्हें अहिंसक बनने को प्रेरित किया जाना न केवल प्रासंगिक रहा है, बल्कि राष्ट्रीय जीवन की बड़ी आवश्यकता थी। इन प्रयत्नों का विश्व की महाशक्तियों एवं उनकी हिंसक मानसिकता पर भी व्यापक प्रभाव देखने को मिला एवं असंख्य लोगों ने अहिंसक जीवन का संकल्प लिया, जिसका प्रभाव विश्वव्यापी हुआ।
आचार्य श्री महाश्रमण की अहिंसा यात्रा धर्म की यात्रा बनी, अहिंसा एवं अयुद्ध की यात्रा बनी, मैत्री यात्रा बनी, प्रेम एवं अपनत्व की यात्रा बनी, नशामुक्ति की यात्रा बनी, सांप्रदायिक सौहार्द की यात्रा बनी, समता एवं समन्वय की यात्रा बनी, जीवनमूल्यों की यात्रा बनी एवं सेवा-परोपकार की यात्रा बनी। भाषा, रंग, संप्रदाय एवं भौगोलिकता में बंटी मानव जाति की एकता को सुनिश्चित करना ही इस यात्रा का उद्देश्य रहा है। इंसानों को आपस में तोडऩे नहीं, बल्कि जोडऩे के लिए इस यात्रा ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई। विशेषत: अहिंसक शक्तियों को संगठित किया गया। क्योंकि अहिंसा ताकतवरों का हथियार है। दमनकारी के खिलाफ वही सिर उठाकर खड़ा हो सकता है, जिसे कोई डर न हो, जो अहिंसक हो एवं मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध हो।
आचार्य श्री महाश्रमण ने दिनांक 9 मार्च 2014 को राजधानी दिल्ली के लाल किला प्राचीर से अहिंसा यात्रा का शुभारंभ किया था और इसी दिल्ली में 27 मार्च 2022 को आठ वर्षीय इस ऐतिहासिक, अविस्मरणीय एवं विलक्षण यात्रा का समापन तालकटोरा स्टेडियम में होना एक सुखद संयोग है। उन्होंने 19 राज्यों एवं भारत सहित तीन पड़ोसी देशों की करीब 70 हजार कि.मी. की पदयात्रा करते हुए अहिंसा और शांति का पैगाम फैलाया। करीब एक करोड़ लोगों को नशामुक्ति का संकल्प दिलाया। नेपाल में भूकंप, कोरोना की विषम परिस्थितियों में इस यात्रा का नक्सलवादी एवं माओवादी क्षेत्रों में पहुंचना आचार्य महाश्रमण के दृढ़ संकल्प, मजबूत मनोबल एवं आत्मबल का परिचायक है।
हिंसा, युद्ध और आतंकवाद जैसी स्थितियां असंतुलित व्यक्ति के दिमाग से उत्पन्न होती है। व्यक्ति समाज और राष्ट्र में जीता है। समाज और राष्ट्र के प्रश्न पर युद्ध को नकारा नहीं जा सकता। राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु युद्ध अनिवार्य हो सकता है, एक सामाजिक प्राणी उससे विमुख नहीं हो सकता। पर युद्ध में होने वाली हिंसा को अहिंसा की कोटि में नहीं रखा जा सकता। अनिवार्य हिंसा भी अहिंसा नहीं बन सकती। आचार्य श्री महाश्रमण ने प्रेरणा दी है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में भी अहिंसा के लिए बड़ा क्षेत्र खुला है- जैसे स्वयं आक्रांता न बनें, निरपराध को न मारें, आबादी वाले स्थानों पर बमबारी न करें। अस्पताल, धर्मस्थान, स्कूल, कॉलेज आदि पर आक्रमण न करें। यदि हम इन नियमों को अपनाएं तो युद्ध में भी अहिंसा की प्रतिष्ठा संभव है। आज भी 98 प्रतिशत आदमी शांति, सहअस्तित्व एवं सहयोग के साथ रहते हैं, वे हिंसा नहीं चाहते। सिर्फ 2 प्रतिशत आदमी हिंसा में सम्मिलित हैं। इन दो प्रतिशत लोगों को उकसाने के लिए कितने षड्ïयंत्र रचे जाते हैं, हिंसा का प्रशिक्षण दिया जाता है, शस्त्रों की बिक्री के लिए हिंसा के बीज बोए जाते हैं। विडम्बना है कि देश और दुनिया में जितनी भी हिंसा हो रही है वह सब शांति के लिए है। यह हमारे मानसिक असंतुलन का ही एक कारण है कि बात चले विश्व शांति की और कार्य हो अशांति के तो शांति कैसे संभव हो?
हम विश्व समाज एवं राष्ट्र के सपनों को सच बनाने में सचेतन बनें, यही आचार्य महाश्रमण की प्रेरणा है और इसी प्रेरणा को जीवन-ध्येय बनाना हमारे लिए शुभ एवं श्रेयस्कर है। ठ्ठ
दिल्ली, मो : 9811051133