भारत और चीन के बीच काफी अंतराल के बाद पिछले 17 जुलाई को कमांडर स्तर की वार्ता लगभग 12 घंटे तक चली। पहले की तरह ही इस वार्ता के दौरान कोई नतीजा सामने नहीं आया। भारत की मांग है कि चीनी सेना अप्रैल 2020 के ठिकाने पर वापस लौटे तभी आगे वार्ता होगी। चीन घुसपैठ वाली जगह से पीछे हटने को तैयार नहीं है। चीन वार्ता की आड़ में अपनी तैयारी में जुटा हुआ है। बातचीत के बीच चीन ने मल्टी रॉकेट लांचर का परीक्षण किया और वार्ता के 24 घंटे बाद ही चीन ने लद्दाख के पास चल रहे वार एक्सरसाइज का वीडियो भी जारी कर दिया है। इन दोनों घटनाओं से यह साबित होता है कि चीन वार्ता के प्रति गंभीर नहीं है। ऐसी खबर है कि कमांडर स्तर की वार्ता से पहले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शिजियांग प्रांत का दौरा कर वहां तैनात सेना के अधिकारियों एवं जवानों के साथ बैठक कर युद्ध की तैयारियों का जायजा लिया। अगर चीन वास्तव में बातचीत के जरिए सीमा समस्या का समाधान चाहता है तो उसे वार्ता से पहले युद्ध की तैयारियों का जायजा लेने की जरूरत नहीं थी। ऐसा लगता है कि चीन भारत को वार्ता में उलझा कर अपनी तैयारियों को और मजबूत करना चाहता है। शुरू से ही चीन की यह नीति रही है कि वह किसी देश से वार्ता से पहले अपना शक्ति प्रदर्शन करता है। लंबी वार्ता के बाद दोनों पक्षों के बीच सुरक्षा एवं स्थिरता बनाए रखने पर सहमति बनी है। दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी तरफ से एक-दूसरे के समक्ष अपनी मांगें रखी। भारत भी चीन की दगाबाजी से पूरी तरह वाकिफ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नौसेना के अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा है कि भारत पूरी तैयारी के साथ सीमा पर डटा रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि हम अपने अधिकारियों एवं जवानों को ऐसे हथियार उपलब्ध कराएंगे जिसके बारे में दुश्मन देश सोच नहीं सकते। उन्होंने विश्व में आ रही चुनौतियों के प्रति नौसेना को सावधान किया तथा कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भारत ने रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए काफी कदम उठाए हैं, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। पिछले चार वर्षों के दौरान रक्षा के क्षेत्र में होने वाले आयात में 21 प्रतिशत की कमी आई है। इसी तरह भारत ने रक्षा के क्षेत्र में पिछले वर्ष 13 हजार करोड़ के साजो-सामान का निर्यात किया है। चीन देपसांग जैसे क्षेत्र को छोडऩा नहीं चाहता, क्योंकि यह क्षेत्र रणनीतिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है। जून 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन की सेना के बीच मुठभेड़ हुई थी जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे। भारत के जवानों ने भी चीन के 40 से ज्यादा जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन बातचीत से समस्या का हल करने का दावा करता है, किंतु वह वास्तव में मामले को उलझा कर रखना चाहता है। चीन की चाल को देखते हुए भारत भी क्वाड में शामिल होकर चीन को घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है। अमरीका, भारत, जापान और आस्ट्रेलिया को लेकर गठित क्वाड की हाल ही में उच्च स्तरीय बैठक हुई थी जिसमें चीन को हर मोर्चे पर जवाब देने के लिए रणनीति बनाई गई है। क्वाड के सक्रिय होने से चीन बौखला गया है। अब तो पश्चिम एशिया में भी क्वाड की तर्ज पर आई2यू2 नामक एक नए संगठन का गठन हुआ है जो चीन की दादागिरी एवं विस्तारवादी नीति पर अंकुश लगाने के लिए काम करेगा। इस संगठन में भारत और अमरीका के अलावा इजरायल एवं संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं। वैसे तो इसका गठन व्यापार सहित विभिन्न मुद्दों पर एक-दूसरे से सहयोग बढ़ाने के लिए किया गया है, किंतु इसका असली मकसद चीन को घेरना भी है। इस संगठन से रूस को उतरा खतरा नहीं है, क्योंकि भारत, इजरायल एवं संयुक्त अरब अमीरात के साथ रूस के सामान्य संबंध हैं। चीन को जवाब देने के लिए भारत ने भी अब तिब्बत के धार्मिक गुरु दलाई को भी महत्व देना शुरू कर दिया है। दलाई लाम की वर्तमान लद्दाख यात्रा को इसी रूप में देखा जा रहा है। अगर चीन भारत के साथ दगाबाजी करता है तो भारत भी ताईवान के मुद्दे पर चीन को घेरने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगा। ताईवान पर चीन के लगातार घुसपैठ को देखते हुए अब अमरीका ने भी अपना सातवां बेड़ा दक्षिण चीन सागर में तैनात कर दिया है। अगर चीन भारत से पंगा लेता हो तो उसको भी करारा जवाब मिलेगा। भारत को चीन के किसी भी झांसे में आए बिना अपनी सामरिक तैयारी को जारी रखनी चाहिए।
चीन की फिर दगाबाजी
