अमरीका में करीब 10 साल बाद पोलियो का एक मामला सामने आया है। देश ने प्राकृतिक रूप से होने वाले पोलियो संक्रमण से तो 1979 में ही मुक्ति पा ली थी। मैनहैटन से करीब 48 किलोमीटर दूर रॉकलैंड काउंटी में एक व्यक्ति पोलियो से संक्रमित पाया गया है। यह मामला पोलियो का ओरल टीका ले चुके एक व्यक्ति से संक्रमण की चेन का मामला लग रहा है। अमरीका में ओरल टीका 2000 में ही बंद कर दिया गया था। माना जा रहा है कि वायरस अमरीका से बाहर किसी जगह से आया होगा जहां यह टीका दिया जाता है, क्योंकि निष्कि्रय किए हुए टीकों से वायरस की पुरानी नस्लें नहीं निकल सकती हैं। अमरीका में आखिरी बार पोलियो का कोई मामला 2013 में सामने आया था। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने उस इलाके के स्वास्थ्य कर्मियों से कहा है कि वे इस तलाश में लग जाएं कि कहीं वहां और मामले तो नहीं हैं, जो कभी घातक थे। अधिकारियों ने उस इलाके में रहने वालों को भी कहा है कि वहां अगर कोई ऐसा है जिसने टीका नहीं लिया है तो वो ले ले। पोलियो अशक्त कर देने वाली एक ऐसी बीमारी है जो जानलेवा भी साबित हो सकती है। यह मुख्य रूप से पांच साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करती है। 1998 तक पोलियो 125 देशों में एंडेमिक था। उस साल पूरी दुनिया में इसके 3,50,000 मामले सामने आए। हाल के दशकों में इसे जड़ से मिटाने के लिए एक बड़ी वैश्विक कोशिश की गई है जो काफी सफल भी हुई है। पूरी दुनिया में पोलियो के मामले अब 99 प्रतिशत घट चुके हैं। अमरीका में वैक्सीन के विकसित किए जाने के बाद 1950 और 1960 के दशकों में पोलियो के मामलों में नाटकीय गिरावट आई। अमरीका में आखिरी बार प्राकृतिक रूप से होने वाले पोलियो संक्रमण के मामले 1979 में सामने आए थे। ओरल टीका का निष्कि्रय वायरस अंतड़ियों में फैलता है और मल से संक्रमित पानी के जरिए दूसरों को संक्रमित कर सकता है। इससे टीका ले चुके बच्चे को तो संक्रमण नहीं होगा लेकिन कम सफाई और कम टीकाकरण वाले इलाकों में दूसरे लोगों को हो सकता है। प्राकृतिक रूप से फैलने वाला पोलियो वायरस अब सिर्फ अफगानिस्तान और पाकिस्तान में मौजूद है। यह वाली नस्ल उस वायरस से कमजोर है लेकिन जिन बच्चों ने टीका नहीं लिया उनमें इसकी वजह से गंभीर बीमारी और लकवा भी हो सकता है। पिछले महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन और ब्रिटेन के स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया था कि वैक्सीन से निकला एक तरह का पोलियो वायरस लंदन में सीवेज के सैंपलों में मिला है। उल्लेखनीय है कि पहला प्रभावी पोलियो वैक्सीन पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में 1952 में जोनास सॉल्क द्वारा विकसित किया गया था, लेकिन इसको वर्षों के परीक्षण की आवश्यकता थी। सॉल्क ने 26 मार्च 1953 को रेडियो सीबीएस पर वयस्कों और बच्चों के एक छोटे से समूह पर सफल परीक्षण किए जाने की घोषणा की, दो दिन बाद उस परिक्षण के नतीजे जामा में प्रकाशित किए गए। इंजेक्शन सॉल्क वैक्सीन आईजीजी के माध्यम से रक्तप्रवाह में प्रतिरक्षा प्रदान करता है, जो कि पोलियो के संक्रमण को बढ़कर विषाणुरक्ता में बदलने से रोकता है और मोटर नुरोंस की रक्षा करता है और इस प्रकार कंदाकार पोलियो एवं पोस्ट पोलियो सिंड्रोम के जोखिम को खत्म कर देता है। सॉल्क वैक्सीन को 1955 में लाइसेंस दिए जाने के बाद जल्द ही बचों का टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया गया। नवंबर 1987 में अमरीका में एक अधिक प्रबल आइपीवी को लाइसेंस दिया गया और वर्तमान में वह संयुक्त राज्य अमरीका का चुनिन्दा विकल्प है। पोलियो टीके की पहली खुराक जन्म के बाद शीघ्र ही, आमतौर पर 1 से 2 महीने के उम्र के बीच और एक दूसरी खुराक 4 महीने की उम्र में दी जाती है। तीसरी खुराक का समय टीका निरूपण पर निर्भर करता है,लेकिन यह 6 से 18 महीने की उम्र के बीच दे देना चाहिए। भारत में पोलियो अभियान समय-समय पर शुरू किया जाता है और इस अभियान से एक भी बच्चा वंचित नहीं रह जाए, इस पर जोर होता है।
पोलियो की वापसी
