पिछले आठ दिनों से संसद के दोनों सदनों का कामकाज ठप हो रहा है। वर्तमान सत्र सरकार एवं विपक्ष के टकराव की भेंट चढ़ रहा है। इस कारण संसद में ज्वलंत मुद्दों पर कोई सार्थक चर्चा नहीं हो पा रही है। विपक्ष महंगाई, जीएसटी एवं अग्निवीर के मुद्दे पर तुरंत बहस कराने की मांग कर रहा है। सरकार की तरफ से कहना है कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण कोरोना संक्रमित हैं, इसलिए बहस बाद में कराई जाएगी। इसका नतीजा यह हो रहा है कि संसद में बवाल मचा हुआ है। विपक्षी सांसद सदन चलने नहीं दे रहे हैं। अब तक लोकसभा के चार सदस्यों को मानसून के वर्तमान सत्र से निलंबित कर दिया गया है, जबकि राज्यसभा के 20 सांसदों को एक सप्ताह के लिए वर्तमान सत्र में भाग लेने से रोक दिया गया है। लोकसभा के सभी चार सांसद कांग्रेस से हैं, जबकि राज्यसभा के निलंबित सांसदों में सात तृणमूल कांग्रेस से, छह डीएमके से, तीन टीआरएस से, दो माकपा से, एक भाकपा से तथा एक आम आदमी पार्टी से हैं। इन सदस्यों पर आरोप है कि ये लोग सदन के वेल में आकर हंगामा कर रहे थे तथा तख्तियों पर सरकार विरोध नारे लेकर प्रदर्शित कर रहे थे। मालूम हो कि सदन के सत्र के दौरान प्रति घंटे डेढ़ करोड़ रुपए खर्च होता है। रोजाना संसद का कार्यकाल कम से कम सात घंटा चलना चाहिए। अब पिछले आठ दिनों के दौरान 56 घंटा बर्बाद हो चुका है। इसका मतलब यह है कि देश का 84 करोड़ रुपए  सरकार और विपक्ष के टकराव की भेंट चढ़ चुका है। सदन चलाने की जिम्मेवारी सरकार और विपक्ष दोनों की है। विपक्ष को ज्वलंत एवं गंभीर मुद्दों को उठाने का अवसर मिलना चाहिए। सरकार को भी इस दिशा में सकारात्मक रुख अपनाना चाहिए। संसद तभी सुचारू रूप से चलेगा जब सरकार और विपक्ष सच्चे दिल से आगे आएं। पिछले कुछ वर्षों से ऐसे देखा गया है कि जो भी पार्टी विपक्ष में होती है वह मुद्दों पर चर्चा करने के बजाए सदन में हंगामा करने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करती है। लोकसभा के स्पीकर तथा राज्यसभा के सभापति को यह अधिकार मिला है कि अगर कोई सदस्य सदन की कार्यवाही में बाधा डालता है तो उसके खिलाफ एक्शन ले सकता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। दुनिया में भारत के लोकतंत्र की चर्चा की जाती है। ऐसी स्थिति में हमारे देश के सांसदों एवं विधायकों का यह कर्तव्य है कि वह लोकतंत्र की रक्षा करे। भारत में 15 मार्च 1989 को सबसे ज्यादा 63 सांसद एक बार निलंबित किए गए थे। स्व. राजीव गांधी के शासनकाल में ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट सार्वजनिक करने के लिए विपक्षी सदस्यों ने काफी हंगामा किया था। उसके बाद जनवरी 2019 में लोकसभा की तत्कालीन स्पीकर सुमित्रा महाजन ने दो दिनों में 45 सांसदों को सत्र से निलंबित किया था। किसान आंदोलन के दौरान 26 जुलाई 2022 को राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने 19 सांसदों को निलंबित किया था। यह सही है कि महंगाई से आम जनता परेशान है। सरकार द्वारा आवश्यक खाद्य सामग्रियों पर जीएसटी लगाने से महंगाई और बढ़ गई है। ऐसे ज्वलंत मुद्दों पर सरकार को चर्चा कराने के लिए आगे आना चाहिए। साथ में विपक्षी दलों को संसद चलाने में सहयोग देना चाहिए। यही भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है।