अमरीका ने विश्व के सबसे बड़े आतंकी एवं अलकायदा के सरगना अयमान-अल-जवाहिरी को पिछले शनिवार की रात अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के पास शेरपुर इलाके में मार गिराया। अमरीका ने इसके लिए कई महीनों से तैयारी की थी। पुख्ता रिपोर्ट मिलने के बाद ही अमरीकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने ड्रोन से हमला कर जवाहिरी को उस वक्त मार गिराया जब वह अपने घर की बालकनी में टहल रहा था। जवाहिरी पर हमले के लिए अमरीका ने हेलफायर मिसाइल का इस्तेमाल किया, जिसमें छह रेजर जैसे ब्लेड लगे होते हैं। इस घटना के साथ ही अमरीका ने ट्रेड सेंटर उड़ाने की घटना में शामिल जवाहिरी को मारकर बदला ले लिया है। मालूम हो कि मई 2011 में अमरीका ने पाकिस्तान के एबटाबाद में अलकायदा का तत्कालीन प्रमुख ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था। पाकिस्तान में ओसामा को अपने सबसे सुरक्षित क्षेत्र डिफेंस कॉलोनी में छिपाकर रखा था, जबकि जवाहिरी को हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख तथा अफगानिस्तान के गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी के करीबी के घर में रखा गया था। सिराजुद्दीन भी उसी इलाके में रहता है। जवाहिरी पर हमले की घटना ने एक बार फिर तालिबान-अलकायदा गठजोड़ की पोल खोलकर रख दी है। यह घटना भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है। जवाहिरी समय-समय पर भारत के खिलाफ जहर उगल रहा था। नुपूर शर्मा वाले मामले में भी जवाहिरी ने भारत को धमकी दी थी। दिल्ली, मुंबई एवं कुछ अन्य जगहों पर हुई सांप्रदायिक घटनाओं, कर्नाटक में हुए हिजाब विवाद सहित कई मामलों में भारत के खिलाफ बयान दिया था। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के वक्त भी जवाहिरी ने इसे वहां के लोगों के मुंह पर तमाचा बताया था। कुल मिलाकर जवाहिरी का खात्मा भारत के हित में है। यह सबको मालूम है कि अलकायदा भारत विरोधी जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों को प्रशिक्षण सहयोग एवं आश्रय देने में मदद करता रहा है। जवाहिरी के नहीं रहने से इस्लामिक स्टेट (आईएस) एवं उसके क्षेत्रीय सहयोगी संगठन इस्लामिक स्टेट खुरासान को अपना पैर पसारने का मौका मिल सकता है। हक्कानी नेटवर्क भी शुरू से ही भारत विरोधी रहा है। अफगानिस्तान स्थित भारतीय दूतावास पर दो बार हुए हमले में हक्कानी नेटवर्क का ही हाथ रहा है। वर्ष 1995 में पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी (आईएसआई) ने हक्कानी नेटवर्क एवं तालिबान के बीच समझौता कराया था। वर्ष 2015 में जलालुद्दीन की मौत के बाद उसका बेटा सिराजुद्दीन इस संगठन को संभाल रहा है। अमरीका ने काफी गुप्त तरीके से इस ऑपरेशन को अंजाम दिया है। इसी वर्ष जनवरी में यह पता चला कि जवाहिरी का परिवार काबुल में रहता है। अप्रैल में सीआईए को यह भी पता चला कि जवाहिरी भी अपने परिवार के साथ हक्कानी नेटवर्क की छत्रछाया में रहता है। इस घटना की पूरी जानकारी अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को दी गई। 25 जुलाई को हुई अंतिम बैठक में राष्ट्रपति बाइडेन ने इस ऑपरेशन को हरी झंडी दे दी। उसी के बाद सीआईए ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। यह ऑपरेशन कितना महत्वपूर्ण था जिसकी घोषणा करने में अमरीका को 48 घंटे लगे। अमरीकी राष्ट्रपति अंतिम घोषणा करने से पहले पूरी तरह आश्वस्त होना चाहते थे कि मारा गया व्यक्ति जवाहिरी ही है। इसके अलावा अमरीका अफगानिस्तान की प्रतिक्रिया भी देखना चाहता था। जवाहिरी की मौत से अलकायदा को बड़ा धक्का लगा है। अब भारत को भी इस मामले पर सजग रहना होगा। अलकायदा भारत के लिए हमेशा से खतरा रहा है। दुनिया के देशों को तालिबान पर यह दबाव डालना चाहिए कि वह अपनी भूमि को आतंकियों के लिए पनाहगार नहीं बनने दे। इस पूरे मामले में चीन की प्रतिक्रिया हास्यास्पद है। किसी देश की संप्रभुता का सम्मान करने के नाम पर आतंकियों को छोड़ा नहीं जा सकता। वैसे भी चीन का दोहरा मापदंड जगजाहिर है। मौलाना मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने की भारत की मांग पर चीन हमेशा अड़ंगा लगा रहा था। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारी दबाव के बाद बाध्य होकर चीन को भारत का प्रस्ताव मानना पड़ा। कुल मिलाकर जवाहिरी का खात्मा आतंकवाद पर एक बड़ी चोट है।