अमरीका की प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद अमरीका एवं चीन के बीच तनाव काफी बढ़ गया है। चीन की तमाम धमकी के बावजूद पेलोसी ताइवान की यात्रा पर पहुंचीं। ताइवान में उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया। चीन की तरफ से खतरे को देखते हुए पेलोसी के विमान की सुरक्षा के लिए 20 अमरीकी फाइटर विमान उनको कवर दे रहे थे। इसके अलावा दक्षिण चीन सागर में अमरीका के चार वार शिप हाई अलर्ट पर थे। एफ-16 एवं एफ-35 विमान एवं रीपर ड्रोन लगातार निगरानी कर रहे थे। पूरे विश्व की नजर नैंसी की ताइवान यात्रा पर टिकी हुई थी। हालांकि वे सिंगापुर, मलेशिया, दक्षिण कोरिया आदि देशों का भी दौरा कर रही हैं, किंतु कूटनीतिक एवं सामरिक दृष्टिकोण से ताइवान की यात्रा काफी अहम रही। ताइवान पहुंच कर उन्होंने कहा कि दुनिया में लोकतंत्र एवं निरंकुशता के बीच संघर्ष चल रहा है। अमरीका ताइवान के साथ पूरी तरह खड़ा है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ताइवान के जीवंत लोकतंत्र का समर्थन करने के लिए अमरीका पूरी तरह प्रतिबद्ध है। अमरीका में राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के बाद प्रतिनिधि सभा के स्पीकर का स्थान है, जो अमरीकी कांग्रेस के निचली सदन की स्पीकर हैं। उनकी यात्रा से ताइवान का मनोबल निश्चित रूप से बढ़ेगा। ताइवान की राष्ट्रपति ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के दौरान यह कहा कि उनका देश अपनी संप्रभुता एवं रक्षा-रेखा को बचाने के लिए पूरी तरह कटिबद्ध है। यूक्रेन में अपनी इज्जत गंवाने के बाद अमरीका ताइवान के मामले में कोई कसर छोड़ना नहीं चाहता है। चीन की ओर से लगातार मिल रही धमकी के मद्देनजर अगर पेलोसी की यात्रा रद्द हो जाती तो इसका दुनिया भर में गलत संदेश जाता। अपने सुपर पावर की साख बचाने के लिए अमरीका ने जोखिम उठाया है। 25 वर्षों के बाद अमरीका का कोई बड़ा नेता ताइवान पहुंचा है। इससे पहले 1997 में तत्कालीन अमरीकी प्रतिनिधि सभा के स्पीकर गिंगरिक ने ताइवान का दौरा किया था। उसी समय से ताइवान के मुद्दे पर अमरीका और चीन के बीच टकराव शुरू हो गया था। वर्ष 2010 में बराक ओबामा के शासन में अमरीका ने ताइवान को 6.4 अरब डॉलर के हथियार एवं रक्षा उपकरण देने के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। उस वक्त भी चीन ने इसका कड़ा विरोध किया था। चीन के तट से 100 मील की दूरी पर स्थित ताइवान आज दुनिया के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है। विश्व की दो महाशक्तियां अमरीका और चीन ताइवान के मुद्दे पर टकराने को तैयार हैं। जहां रूस चीन का समर्थन कर रहा है वहीं जर्मनी, जापान, ब्रिटेन और दक्षिण-पूर्व एशियाई देश अमरीका के साथ खड़े हैं। भारत हालांकि इस पूरे मामले में चुप्पी साधे हुए है, किंतु वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कभी भी चीन का समर्थन नहीं करेगा। एलएसी पर लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने खड़ी हैं। एलएसी पर दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ है। भारत भले ही रूस का समर्थन कर रहा है, किंतु चीन के मामले में भारत अमरीका के साथ खड़ा होगा। चीन जैसे कुटिल पड़ोसी पर कभी भी विश्वास नहीं किया जा सकता है। ताइवान के साथ भी भारत का व्यापार चलता है। ताइवान का स्वतंत्र अस्तित्व रहना भारत के हित में है। अगर ताइवान चीन के कब्जे में जाता है तो इससे चीन की शक्ति बढ़ेगी जो भारत के हित में नहीं है। अपनी साख बचाने के लिए चीन ताइवान की सीमा पर फायर ड्रिल एवं टार्गेटेड मिलिट्री ऑपरेशन शुरू किया है। इसके अलावा चीन ने अपने 21 लड़ाकू विमानों को भेजकर ताइवान की सीमा का उल्लंघन किया है। ताइवान दुनिया के देशों में मोबाइल फोन, लैपटॉप, घड़ी एवं कार के लिए चिप की आपूर्ति करता है। कुल निर्यात में लगभग 50 प्रतिशत ताइवान का हिस्सा है। अगर यह व्यापार चीन के पास चला गया तो दुनिया के लिए और मुसीबत होगी। अगला कुछ दिन हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए काफी महत्वपूर्ण होगा।
अमरीका-चीन में टकराव
