प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए तथा अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ बनाए रखने के लिए पेड़-पौधे लगाना बहुत जरूरी है। पेड़-पौधों के माध्यम से प्रकृति सभी प्राणियों पर अनंत उपकार करती है। पेड़ ना सिर्फ देखने में सुंदर और प्रभावशाली होते हैं बल्कि वे निर्माण कार्य के लिए लकड़ी, सांस लेने के लिए ऑक्सीजन और वन्य जीवों को आवास देते हैं। इन सब के अलावा वे कार्बन डाईऑक्साइड को जमा और अवशोषित भी करते हैं। यह गैस जीवाश्म ईंधनों के जलने से निकलती है और वातावरण को गर्म करती है,यही वजह है कि पेड़ों को जलवायु संकट से निपटने के समाधानों में से एक माना जाता है। दुनिया के जंगलों में हर साल लगभग 16 अरब मीट्रिक टन कार्बन डाईऑक्साइड जमा होता है, जो कि यूरोपीय देशों के सालाना उत्सर्जन से तीन गुना अधिक है। अब ये जंगल तेजी से सिकुड़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृृषि संगठन के अनुसार हर साल लगभग 10 मिलियन हेक्टेयर जंगल खेती के लिए जमीन तैयार करने की वजह से नष्ट हो रहे हैं। साथ ही जब पेड़ों को काटा जाता है तो वहां जमा कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण में शामिल हो जाता है। इस नुकसान की भरपाई के लिए हाल के दशकों में दर्जनों कार्यक्रमों की शुरुआत की गई है ताकि अरबों की संख्या में पेड़ लगाए जा सकें और वे वातावरण में मौजूद कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित कर सकें। दुनिया भर की सरकारों के साथ-साथ माइक्रोसॉफ्ट और नेस्ले जैसी कंपनियों ने जंगली क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए पौधारोपण का संकल्प लिया है। इन कार्यक्रमों ने वाकई में आम लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। यह अच्छी बात है कि इसने लोगों को इस बारे में सोचने के लिए प्रेरित किया, लेकिन इस संदेश ने समस्या की गंभीरता को कम कर दिया है। फिर से जंगल लगाना समाधान का एक हिस्सा है,लेकिन सिर्फ पेड़ लगाने पर ही ध्यान केंद्रित करने से समस्या पूरी तरह हल नहीं हो सकती। अपने जीवन काल के दौरान पेड़ प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिए कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और इसे अपनी पत्तियों, जड़ों, शाखाओं और मिट्टी में जमा कर देते हैं। हालांकि, वैज्ञानिकों के बीच इस बात को लेकर बहस जारी है कि आखिर लाखों अतिरिक्त पेड़ लगाकर वातावरण से कितना कार्बन डाईआक्साइड को कम किया जा सकता है। हर साल जीवाश्म ईंधन जलाने और भूमि के इस्तेमाल में बदलाव से औसतन 40 अरब मीट्रिक टन  कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन होता है। शोध से यह अनुमान लगाया गया है कि नए जंगल लगाने और मौजूदा जंगलों को फिर से स्थापित करने से 40 से 100 अरब टन कार्बन डाईआक्साइड अवशोषित किया जा सकता है। हालांकि यह तभी संभव है जब नए पेड़ पूरी तरह तैयार हो जाएं, जिसमें दशकों लगते हैं। दुनिया की अलग-अलग जगहों के मुताबिक कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता में सौ गुना से अधिक का फर्क है। वह कहती हैं कि जंगलों को फिर से स्थापित करना वाकई में असरदार विकल्प है,लेकिन इसके लिए आपको वह जगह ढूंढ़नी होगी जहां लोग पेड़ लगाना चाहते हैं। समय के साथ इनकी निगरानी भी करनी होगी ताकि ये पूरी तरह तैयार हो सकें। अगर पौधारोपण परियोजनाओं के लिए बेहतर योजना नहीं बनाई जाएगी, तो लंबे समय में वे सफल नहीं होंगे। इसका नतीजा यह होगा कि संसाधनों की काफी ज्यादा बर्बादी होगी। उष्णकटिबंधीय जंगलों को बचाना ज्यादा जरूरी है क्योंकि वो बाकियों की तुलना में ज्यादा कार्बन सोखते हैं। दूसरी ओर सिर्फ काफी ज्यादा संख्या में पेड़ लगाने पर ही ध्यान नहीं होना चाहिए, बल्कि प्राकृतिक निवास को भी फिर से बहाल करने पर ध्यान देना चाहिए। आखिर, घास के मैदान और दल-दल भी काफी ज्यादा मात्रा में कार्बन को अवशोषित करते हैं, लेकिन आमतौर पर वहां पेड़ नहीं होते हैं। किसी परियोजना की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि सही जगह पर सही पेड़ लगाए जाएं, अन्यथा नतीजे नुकसान पहुंचाने वाले हो सकते हैं।