श्रीलंका की सरकार ने हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन के अनुसंधान जहाज  यूआन वांग-5 को 16 से 22 अगस्त तक ठहरने की अनुमति देकर भारत के साथ विश्वासघात किया है। चीन का यह जहाज आधुनिक निगरानी प्रणाली से लैस है जो दक्षिण भारत के भारतीय रक्षा प्रतिष्ठानों की जासूसी कर सकता है। इस जहाज में ऐसे-ऐसे आधुनिक यंत्र लगे हैं जो बैलेस्टिक मिसाइल एवं उपग्रह का डाटा भी एकत्र कर सकते हैं। यह जहाज 750 किलोमीटर के दायरे के भीतर की जासूसी कर सकता है। भारत ने श्रीलंका सरकार से इस जासूसी जहाज  को आने से रोकने के लिए अनुरोध किया था, किंतु श्रीलंका सरकार ने अंततः भारत के अनुरोध के विपरीत इस जहाज को रुकने की अनुमति दे दी है। इससे पहले वर्ष 2014 में चीन की परमाणु पनडुब्बी श्रीलंका के बंदरगाह पर रुकी थी। आश्चर्य की बात यह है कि जब श्रीलंका आर्थिक एवं राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था उस वक्त चीन समेत किसी भी देश ने उसकी मदद नहीं की। भारत ने उस विकट समय में तेल एवं अन्य खाद्य पदार्थ समेत हर तरह से श्रीलंका की मदद की। श्रीलंका की जनता ने भी इस मदद के लिए भारत की सराहना की है। श्रीलंका के इस संकट के लिए पूरी तरह चीन जिम्मेदार है क्योंकि उसने इस छोटे-से देश को कर्ज जाल में फंसाकर उसकी आर्थिक व्यवस्था को बर्बाद कर दिया है। श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति गोटावाया राजपक्षे एवं उनके बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने चीन से भारी कर्ज लेकर श्रीलंका को दिवालिया होने की स्थिति तक पहुंचा दिया। भारत ने जिस तरह श्रीलंका की सहायता की उससे ऐसा लगा कि अब श्रीलंका चीन के चंगुल में नहीं फंसेगा, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से पैकेज लेने के लालच ने श्रीलंका को चीन की गोद में बैठने को मजबूर कर दिया। ऐसी खबर है कि राजपक्षे ने श्रीलंका से पलायन करने से पहले चीन के जासूसी जहाज को हंबनटोटा बंदरगाह पर ठहरने की इजाजत दे दी थी। भारत सरकार को अब श्रीलंका के मुद्दे पर फिर से विचार करने की जरूरत है। श्रीलंका के काम से स्पष्ट हो गया है कि यह मुल्क भरोसे के काबिल नहीं है। भारत सरकार इस मामले की जांच कर रही है। अगर श्रीलंका की दगाबाजी सामने आती है तो भारत को उसको सहायता करने के मुद्दे पर नए सिरे से विचार करना होगा। यह सबको मालूम है कि चीन भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश एवं म्यामां को कर्ज के जाल में फंसाकर भारत के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहता है। नेपाल फिर से चीन के कर्जजाल में फंसता नजर आ रहा है। नेपाल में अब जनता चीन की विश्वासघात नीति का विरोध कर रही है। लेकिन वहां की सरकार कर्ज जाल से बाहर निकलने के लिए दूसरे जाल में फंसने की ओर अग्रसर है। बांग्लादेश ने समय रहते चीन की चाल को समझ लिया है। यही कारण है कि बांग्लादेश ने पाकिस्तान के युद्धपोत को चटगांव बंदरगाह पर रुकने की इजाजत नहीं दी है। बांग्लादेश पर भी अभी 13 हजार करोड़ का कर्ज है। इसको चुकाने के लिए अब बांग्लादेश को भी अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से सहायता की जरूरत है। चीन बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह को भी स्मार्ट बंदरगाह के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव दिया है, किंतु बांग्लादेश इसके लिए राजी नहीं है। चीन भारत के पड़ोसियों को लालच देकर अपनी पैठ मजबूत करने में लगा हुआ है। भारत और अमरीका चीन की इस साजिश को नाकाम करने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र एवं हिंद महासागर में मिलकर काम कर रहे हैं। भारत भी चीन के पड़ोसियों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाकर चीन को माकूल जवाब देने की कोशिश कर रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए गठित क्वाड इसी रणनीति का एक हिस्सा है। दुनिया के देश अब धीरे-धीरे चीन की साजिश को समझने लगे हैं। यही कारण है कि अब अफ्रीकी देशों में भी चीन के खिलाफ आवाज उठने लगी है। बदलते समीकरण के साथ भारत को भी श्रीलंका के मामले में सजग रहकर आगे बढ़ने की जरूरत है। श्रीलंका भारत के लिए सामरिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है। भारत को अपनी सामरिक तैयारी पर ध्यान केंद्रित करना होगा।