अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र  की जो परिभाषा दी थी,वह सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। उन्होंने कहा था- लोकतंत्र में जनता की सरकार होती है, जो जनता द्वारा संचालित और जनता के लिए होती है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि लोकतंत्र में जनता और सरकार के बीच कोई विभाज्य रेखा नहीं होती,परंतु जब कोई सरकार  इसमें विभाज्य रेखा खींचती है तो लोकतंत्र प्रभावित होता  है और इन  दिनों ऐसी शिकायतें विश्व के कई कोने से आ रही हैं। शक्ति का विभाजन लोकतांत्रिक व्यवस्था का आधार है। विभिन्न संवैधानिक संस्थाएं लोकतंत्र को मजबूती देने वाले चार स्तंभ की तरह हैं। हर किसी की अपनी जिम्मेदारी है, लेकिन कोई भी दूसरे को कमजोर कर अकेला बोझ नहीं उठा सकता। इसलिए एक दूसरे को मजबूत करना कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका तीनों की ही जिम्मेदारी  है। दूसरी ओर मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बनकर उभरा है, उसकी अब तक संवैधानिक भूमिका नहीं है, इसलिए उसे जिम्मेदार और मजबूत बनाना और ज्यादा जरूरी है। भारत पर नजर रखने वाला कोई भी प्रेक्षक बिना ज्यादा सोचे समझे कह सकता हंै कि वहां संस्थाओं के बीच होड़-सी चल रही है। सभी अपना हक और दावा साबित करने में लगे हैं और इस प्रक्रिया में खुद अपने को और दूसरे संस्थानों को कमजोर कर रहे हैं। गौरतलब  है कि केंद्र के अधिकारी भी राज्यों से ही आते हैं। यदि राजनीतिक दल एक दूसरे का सम्मान नहीं करेंगे तो वे संविधान की रक्षा कैसे करेंगे, जिसकी जिम्मेदारी उन्हीं पर है। वर्तमान समय में नेता और अधिकारी समझ बैठे हैं कि वे ही मालिक हैं, परंतु उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र में जनता ही मालिक है और बाकी सब नौकर हैं।अगर संस्थानों के अधिकारों की स्पष्ट व्याख्या हो और सही-गलत का फैसला ताकत के बल पर करने के बदले आपसी सहमति से हो या इसका अधिकार अदालतों के पास हो तो बहुत सारा हस्तक्षेप यूं भी खत्म हो जाएगा। इसके लिए पुलिस जांच और अदालतों की प्रक्रियाओं को भी आसान बनाना होगा ताकि उससे नागरिकों को डर नहीं लगे,वह सामान्य नागरिक प्रक्रिया का हिस्सा  है। नागरिक सार्वभौम है। वह मालिक है, अधिकारी उसके मालिक नहीं हैं, उसके सेवक हैं। इस बात का ध्यान थाने के अधिकारी से लेकर हर दफ्तर, हर यूनिवर्सिटी और हर मंत्रालय को रखना होगा। लोकतंत्र की ताकत जनता से आती है। जनता आत्मनिर्भर होगी तभी लोकतंत्र मजबूत होगा और बना रहेगा। इसी बीच इंटरनेशनल आईडिया की हालिया  रिपोर्ट लोकतंत्र और लोकशाही में विश्वास करने वालों को निराश करती दिखती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के आधे से ज्यादा लोकतांत्रिक देशों में लोकतांत्रिक मूल्य क्षरण की ओर हैं।  लोकतंत्र के लिए अब अप्रत्याशित मुश्किलें दिख रही हैं। राजनीतिक और आर्थिक संकटों ने इन मुश्किलों को और गहरा दिया है। महामारी और यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुए आर्थिक संकट ने इन मुश्किलों को जन्म दिया। संगठन का कहना है कि  हो सकता है कि चुनावों के विश्वसनीयता को चुनौती मिल रही हो।  हो सकता है कि कानून का राज खतरे मे हो। यह भी हो सकता है कि नागरिकों की आवाजों के लिए जगह कम हो रही हो। आइडिया ने उन देशों की सूची जारी की है जहां लोकतंत्र सबसे ज्यादा नुकसान झेल रहा है।  इन देशों को पीछे की ओर खिसक रहे देश कहा गया है।  पिछले साल इनकी संख्या छह थी और पहली बार अमरीका को इनमें शामिल किया गया था। इस बार यह संख्या बढ़कर सात हो गई है और अल सल्वाडोर को भी इस सूची में जोड़ गया है। अन्य देशों हैः ब्राजील, हंगरी, भारत, मॉरीशस और पोलैंड। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में लोकतंत्र का कमजोर होना ठीक नहीं है, इस पर हमारे राजनेताओं को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।