दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव में भाजपा को करारा झटका लगा है। 250 सदस्यीय एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) ने 134 सीटों पर जीत दर्ज कर बहुमत हासिल कर लिया है। आप की यह कामयाबी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। मालूम हो कि पिछले 15 वर्षों से एमसीडी पर भाजपा का कब्जा था, लेकिन इस बार आप ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया है। पिछले चुनाव में भाजपा को 181 सीटों पर विजय हासिल हुई थी। जबकि इस बार केवल 104 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। कांग्रेस को 9 तथा निर्दलीय उम्मीदवारों को तीन सीटों पर जीत हासिल हुई है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बार के एमसीडी चुनाव में 30 वार्डों में हार-जीत का फैसला 500 से कम वोटों से ही हुआ है। चितरंजन पार्क, नंद नगरी एवं अलीपुर वार्ड का फैसला 100 वोट के भीतर में ही हुआ है। नौ वार्डों में फैसला 100-200 के बीच, पांच वार्डों में 200-300 के बीच, आठ वार्डों में 300-400 के बीच तथा पांच वार्डों में 400-500 के बीच हार-जीत का फैसला हुआ है। एग्जिट पोल में दिए गए आंकड़े से असली आंकड़ा थोड़ा भिन्न हुआ है, किंतु आम आदमी पार्टी को दिखाया गया बहुमत सही साबित हुआ है। मतगणना के शुरुआत में भाजपा और आप के बीच कांटे का टक्कर चल रहा था किंतु बाद में आप का नंबर लगातार बढ़ता गया। इस बार के चुनाव में हालांकि दिल्ली के मतदाताओं ने पिछले एमसीडी चुनाव के मुकाबले कम मतदान किया है। इस बार 50.47 प्रतिशत मतदान हुआ। चुनावी आंकड़ों के अनुसार आम आदमी पार्टी को 42.20 प्रतिशत, भाजपा को 39.02 प्रतिशत, कांग्रेस को 11.68 प्रतिशत तथा अन्य निर्दलीय को 3.42 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हैं। इसका अर्थ साफ है कि भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच वोट का अंतर केवल तीन प्रतिशत ही है, जिस कारण आप को भाजपा के मुकाबले 30 सीटें ज्यादा मिल गई हैं। एमसीडी में भाजपा की हार के पीछे 15 साल के एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर महत्वपूर्ण रहा है। आम आदमी पार्टी ने गंदगी एवं भ्रष्टाचार के मुद्दे को चुनाव में प्रमुखता से उठाया था, जिसका उचित जवाब देने में भाजपा विफल रही। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मुख्य योजना का फायदा पार्टी को मिला है। महंगाई की मार झेल रही दिल्ली की जनता को अरविंद केजरीवाल की रेवड़ी योजना में ज्यादा दिलचस्पी दिखी। चुनाव के वक्त भाजपा ने आप के नेताओं पर जो भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, उसको दिल्ली की जनता ने स्वीकार नहीं किया। अरविंद केजरीवाल भाजपा की इस कार्रवाई को परेशान करने वाला बता कर सहानुभूति बटोरने में सफल रहे। आंकड़ों पर गौर करने से यह भी पता चलता है कि दिल्ली के मुस्लिम मतदाता इस बार कांग्रेस की जगह आम आदमी पार्टी में विश्वास व्यक्त किया। इसका सीधा लाभ आम आदमी पार्टी को मिला है। केजरीवाल ने मुफ्त तीर्थ यात्रा कार्यक्रम शुरू कर हिंदू मतदाताओं को भी लुभाने का भरसक प्रयास किया। कुल मिलाकर अरविंद केजरीवाल का जादू चल गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल चुनाव के अंतिम चरण में गुजरात चुनाव से ध्यान हटाकर एमसीडी चुनाव पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया। इससे आम आदमी पार्टी के नेताओं एवं कार्यकताओं में नया जोश आ गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का ज्यादा जोर गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश के चुनाव पर रहा। एमसीडी का चुनाव भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तथा पार्टी के अन्य नेताओं पर निर्भर रहा। इसका भी पार्टी को खामियाजा उठाना पड़ा है। भाजपा की हार के पीछे एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने दिल्ली का ऐसा कोई भाजपा नेता भी नजर नहीं आया जिसकी तुलना केजरीवाल से की जा सके। कुल मिलाकर इस चुनाव परिणाम से राष्ट्रीय स्तर पर केजरीवाल की अहमियत बढ़ेगी। अगर गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश में भाजपा दोबारा बहुमत में आ जाती है तो राष्ट्रीय स्तर पर इसका ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। लेकिन अगर दोनों राज्यों का चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में नहीं जाता है तो पार्टी नेतृत्व को निश्चित रूप से आत्ममंथन करने की जरूरत पड़ेगी।