गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणाम आ चुके हैं। गुजरात में सत्ताधारी भाजपा ने इस बार रिकॉर्ड बहुमत हासिल की है। गुजरात के चुनावी इतिहास में भाजपा ने इस बार सबसे ज्यादा 150 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की है। इससे पहले 1985 में माधव ङ्क्षसह सोलंकी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 149 सीटों पर कब्जा किया था। उस वक्त कांग्रेस को 55.5 प्रतिशत मत हासिल हुए थे। इस बार भाजपा ने 53.5 प्रतिशत मत हासिल कर अपना पुराना रिकॉर्ड भी तोड़ दिया। 2017 के चुनाव में भाजपा को 50 प्रतिशत मत मिला था। भाजपा की इस जीत का सबसे बड़ा कारण प्रधानमंत्री की ताबड़ातोड़ रैलियां रही हैं। प्रधानमंत्री ने गुजरात चुनाव के दौरान 39 रैलियां कर 134 विधानसभा को कवर किया था। उनके द्वारा किया गया 50 किलोमीटर लंबा रोड शो ने गुजरात के मतदाताओं को काफी प्रभावित किया। गृह मंत्री अमित शाह ने 23 रैलियां कर 108 विधानसभा क्षेत्र तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस बार का गुजरात विधानसभा चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ था, क्योंकि गुजरात प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री दोनों का गृह राज्य है। शुरूआती दौर में आम आदमी पार्टी ने गुजरात पर काफी फोकस किया था। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए भाजपा ने गुजरात चुनाव पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित किया। इसी बीच भाजपा ने दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन का कई वीडियो जारी कर आप की छवि को बदनाम करने की पहल शुरू की। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरङ्क्षवद केजरीवाल ने आप की बिगड़ती छवि को ध्यान में रखकर तुरंत अपना ध्यान गुजरात से हटाकर दिल्ली की एमसीडी चुनाव पर केंद्रित किया। इसका लाभ उनको एमसीडी चुनाव में मिला । भाजपा गुजरात के लिए दिल्ली के चुनाव को नजरअंदाज किया। दिल्ली के चुनाव की बागडोर रक्षामंत्री राजनाथ ङ्क्षसह तथा दिल्ली के कुछ नेताओं के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया। भाजपा ने गुजरात में एंटी कंबेंसी फैक्टर को कम करने के लिए चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री सहित उनकी पूरी कैबिनेट को बदल दिया। इसके अलावा कई वर्तमान विधायकों के टिकट से वंचित कर दिया। इस पूरी रणनीति का भाजपा को फायदा मिला। लेकिन हिमाचल प्रदेश में भाजपा की रणनीति उल्टी पड़ गई। 68 सदस्यीय हिमाचल विधानसभा में कांग्रेस को 40 सीटें मिलने जा रही है जो साधारण बहुमत से 5 ज्यादा है। यहां भाजपा को केवल 25 सीटों पर ही संतोष करना पड़ेगा। हिमाचल चुनाव के लिए भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण बागी नेता हैं। टिकट नहीं मिलने के कारण भाजपा के 21 बागी नेताओं ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में प्रतिद्वंद्विता की थी। हिमाचल की जनता स्थानीय नेताओं तथा सरकार के कामकाज से भी नाराज थी जिसका खामियाजा पार्टी को चुनाव में भुगतना पड़ा। हिमाचल का पर्यटन आय का मुख्य स्रोत है। कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण पर्यटन उद्योग को काफी नुकसान पहुंचा था। महंगाई और बेरोजगारी के कारण जनता त्रस्त थी। ऐसी स्थिति में सरकार की तरफ से विशेष कदम उठाने की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। लेकिन जयराम ठाकुर सरकार जनता की इस आशा-आकांक्षा को पूरी करने में विफल रही है। आम आदमी पार्टी की तरह कांग्रेस ने भी हिमाचल प्रदेश में लोक लुभावन वायदे किए जिसमें 300 यूनिट तक बिजली का बिल माफ करने, पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने तथा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने की बात शामिल है। इसका असर हिमाचल के मतदाताओं पर पड़ा। हालांकि हिमाचल प्रदेश में कांग्रसे तथा बीजेपी के वोट प्रतिशत में कोई ज्यादा अंतर नहीं है ङ्क्षकतु इसका असर सीटों की संख्या पर पड़ा है। यही कारण है कि कांग्रेस बहुत हासिल कर चुकी है। हिमाचल प्रदेश के 11 मंत्रियों में से 9 मंत्रियों की हार यह बताने के लिए काफी है कि जनता कितनी नाराज थी। उत्तर प्रदेश में मैनपुरी लोकसभा सीट सपा उम्मीदवार ङ्क्षडपल यादव ने तीन लाख से ज्यादा मतों से जीत कर ली है ङ्क्षकतु रामपुर में भाजपा ने शानदार जीत दर्ज कर आजम खान को उनके गढ़ में चुनौती दे दी है। बिहार के कुढऩी विधानसभा सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज कर यह दर्शा दिया है कि लालू और नीतीश के साथ में आने के बावजूद भाजपा कमजोर नहीं हुई है। कुल मिलाकर गुजरात का चुनाव जहां भाजपा के लिए जोश बढ़ाने वाला है वहीं हिमाचल का चुनाव परिणाम कांग्रसे के लिए संजीवनी है।
गुजरात में भाजपा, हिमाचल में कांग्रेस
