बिहार के कुढ़नी विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार केदारनाथ गुप्ता ने जदयू के उम्मीदवार मनोज कुशवाहा को 3645 वोट से हराकर महागठबंधन को करारा झटका दिया है। कुशवाहा बहुल क्षेत्र में कुशवाहा समाज के उम्मीदवार को हराकर भाजपा ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की सियासत में उसका दमखम कम नहीं हुआ है। कुढ़नी का चुनाव परिणाम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए एक संदेश है। इसका असर महागठबंधन में भी देखने को मिल रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तारीक अनवर ने इस चुनाव परिणाम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि प्रचार अभियान के दौरान महागठबंधन की पार्टियों के बीच सामंजस्य की कम रही, जिसका असर जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच देखा गया। इस पूरे चुनाव में कांग्रेस शिथिल बनी रही। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जगदानंद ने भी नीतीश सरकार को निशाने पर लिया। राजद के पूर्व विधायक अनिल सहनी ने तो इस चुनाव परिणाम को लेकर नीतीश कुमार से इस्तीफा तक मांग लिया। सहनी ने कहा कि नीतीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली कर तेजस्वी यादव के लिए रास्ता साफ करना चाहिए। पहले ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि राजद और जदयू के एक साथ होने से कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र भाजपा के लिए काफी मुश्किल होगी। इससे पहले मुकामा एवं गोपालगंज में हुए उपचुनाव में भी भाजपा ने गोपालगंज से बाजी मारी, जबकि मोकामा सीट राजद के पाले में गई। यानी राज्य के तीन विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में दो सीट भाजपा के पक्ष में गई है। ऐसा लगता है कि भाजपा महागठबंधन से मुकाबले के लिए अभी से ही पूरी तैयारी में जुट गई है। वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा को महागठबंधन से कड़ी टक्कर मिलेगी। इसको देखते हुए भाजपा ने चिराग पासवान के नेतृत्व वाले लोक जनशक्ति पार्टी को भी अपनी तरफ खींचने की पहल शुरू कर दी है। उपचुनाव के लिए हुए प्रचार के दौरान चिराग पासवान ने भाजपा के उम्मीदवारों के पक्ष में रैलियां की थी। वर्ष 2020 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान ने जदयू उम्मीदवारों के खिलाफ अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को मैदान में उतार कर कड़ी चुनौती पेश की थी। लोजपा की इस पहल से भले ही उसको फायदा न हुआ हो किंतु उससे भाजपा को निश्चित रूप से फायदा हुआ। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू सिमट कर तीसरे नंबर पर आ गई। यही कारण है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं चिराग पासवान के बीच दुश्मनी काफी बढ़ गई है। भाजपा वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले पूर्व जदयू नेता आरसीपी सिंह तथा छोटे-छोटे दलों को अपने पाले में लाकर अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने में जुट गई है। पिछले चुनावों में महागठबंधन के निराशाजनक प्रदर्शन को देखते हुए प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष का उम्मीदवार होने का सपना पाले हुए नीतीश कुमार के लिए अच्छी खबर नहीं है। जिस तरह आम आदमी पार्टी अपना प्रदर्शन लगातार सुधारती जा रही है, उससे भी नीतीश कुमार की दावेदारी कमजोर पड़ती जा रही है। नीतीश की दावेदारी कमजोर पड़ने से राजद नेताओं के सब्र का बांध टूट रहा है क्योंकि उनका मानना था कि नीतीश कुमार जल्द मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़कर राष्ट्रीय राजनीति की तरफ कूच कर जाएंगे। फिलहाल ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। भविष्य में महागठबंधन के बीच और खींचतान बढ़ने की आशंका बढ़ती जा रही है।
महागठबंधन में घमासान
