अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र के यंगस्टे सेक्टर में भारत और चीन की सेना के बीच मुठभेड़ हुई है। इसमें भारत की तरफ से छह सैनिकों के घायल होने की खबर है। छह सैनिकों को इलाज के लिए गुवाहाटी एवं लद्दाख स्थित आर्मी अस्पताल में भेजा गया है। इस घटना में चीन की तरफ से भी 19 सैनिक बुरी तरह घायल हुए हैं। नौ दिसंबर को हुई इस घटना को लेकर दोनों देशों के बीच फिर से तनाव बढ़ गया है। 11 दिसंबर को दोनों देशों के बीच सेना के बीच हुई फ्लैग मिटिंग तथा कूटनीतिक प्रयास के बाद दोनों देशों की सेनाएं अपने-अपने पहले की जगह पर लौट गई है। 17 हजार फीट ऊंची यंगस्टे सहित पूरा तवांग क्षेत्र भारत के लिए सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। इससे पहले 1987 में भी तवांग क्षेत्र में दोनों देशों के सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी। दूसरे देश की सीमा में घुसपैठ करना चीन के लिए कोई नई बात नहीं है। उसकी विस्तारवादी नीति के कारण ही कई पड़ोसी देशों के साथ उसका झगड़ा चल रहा है। भारत के साथ ही वर्ष 1959 से ही तनातनी चल रही है। तिब्बत में चीन के खिलाफ हुए विद्रोह के बाद की गई सैन्य कार्रवाई को देखते हुए तिब्बत के धर्म गुरु दलाई लामा 1959 में तिब्बत से भागकर सर्वप्रथम तवांग पहुंचे थे। उसीका नतीजा था कि 1962 में चीन के भारत पर हमला कर सबक सिखाने की कोशिश की। भारत को यह उम्मीद नहीं थी कि हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा लगाने वाला चीन उस पर हमला भी करेगा। उसके बाद 1967 में सिक्किम सेक्टर के पास नाथु ला में दोनों देशों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें चीन को शिकस्त मिली थी। 1975 में भी चीन की तरफ से घुसपैठ हुई थी, जिसमें भारत के चार जवान शहीद हो गए थे। अगस्त 2017 को चीन ने डोकलाम क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश की। भारतीय सेना ने चीन की घुसपैठ को रोक दिया था, जिसके कारण दोनों देशों की सेनाएं 73 दिन तक आमने-सामने खड़ी थी। मोदी सरकार ने उस वक्त से ही चीन की विस्तारवादी नीति को परखते हुए कड़ा रुख अपनाना शुरू किया। चीन ने फिर 15 जून 2020 को गलवान घाटी में धोखे से भारतीय पोस्ट पर हमला किया जिसमें चीन को करारा जवाब मिला। इस हमले में भारत के 20 जवान शहीद हो गए, जबकि चीन के 38 जवान मारे गए। गलवान में पहली बार चीनी सेना ने कांटेदार डंडे आदि का इस्तेमाल किया क्योंकि दोनों देशों के बीच बड़े हथियार के उपयोग को लेकर प्रतिबंध लगा हुआ है। गलवान से मिली सीख का भारतीय सेना ने तवांग में इस्तेमाल किया। यही कारण है कि भारत के 50 जवानों ने ही चीन के 300 जवानों को पीट-पीट कर भगा दिया। अब प्रश्न यह उठता है कि चीन की विस्तारवादी नीति का किस तरह मुकाबला किया जाए। चीन जैसा कुटिल पड़ोसी दोस्ती की भाषा नहीं समझता है। अगर चीन को शांत रखना है तो उसे उसकी ही भाषा में जवाब देना होगा। यह तभी संभव है जब भारत सामरिक दृष्टि से मजबूत हो। नरेंद्र मोदी सरकार इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक सामरिक स्थिति को मजबूत किया जा रहा है। इसके अलावा बुनियादी ढांचे को भी विकसित किया जा रहा है, ताकि जरूरत पड़ने पर सेना चीनी सीमा पर बहुत कम समय में पहुंच सके। इसके लिए सड़कों का तेजी से जाल बिछाया जा रहा है तथा हवाई अड्डों को विकसित किया जा रहा है। भारत की वायु सेना भौगोलिक दृष्टिकोण से चीन पर भारी पड़ रही है। इसका कारण यह है कि चीन के बहुत से हवाई अड्डे काफी ऊंचाई पर हैं, जिस कारण लड़ाकू विमान अपनी पूरी क्षमता के अनुसार काम नहीं कर सकते। तवांग की घटना के लिए कुछ हद तक चीन की आंतरिक स्थिति को भी जिम्मेवार माना जा रहा है। लाख कोशिश के बावजूद चीन में अभी भी कोरोना अपना रौद्र रूप दिखा रहा है। इस कारण चीन के बहुत से इलाके में लॉकडाउन लगा हुआ है, जिसका वहां की जनता विरोध कर रही है। जनता सड़कों पर उतर कर राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इस्तीफे की मांग कर रही है। चीन की आर्थिक स्थिति पर भी कोरोना एवं विश्व की राजनीति का विपरीत असर पड़ा है। ऐसी स्थिति में चीन अपनी जनता का ध्यान भटकाने के लिए भारत के साथ सीमा संघर्ष को बढ़ावा दे रहा है। इस पूरे मामले में भारत को सतर्क रहने की जरूरत है। संसद में भी इस घटना को लेकर काफी हंगामा हुआ है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस पूरी घटना की जानकारी सदस्यों को दी है। भारत को चीन से मुकाबले के लिए हर तरह से तैयार रहना पड़ेगा। यह संतोष विषय है कि मोदी सरकार सही दिशा में आगे बढ़ रही है।
अरुणाचल में मुठभेड़
