बिहार के सारण जिले के इसुआपुर थानांतर्गत डोइला गांव में जहरीली शराब पीने से अब तक 21 लोगों की मौत हो चुकी है। तीन अन्य लोगों की हालत अब भी गंभीर बताई जा रही है। मंगलवार की रात इस गांव में कई लोगों ने जहरीली शराब पी। उसके बाद उल्टियों का दौर शुरू हो गया तथा कई लोगों की आंखों की रोशनी भी चली गई। अंतिम समय में इलाज का प्रयास किया गया, किंतु सफलता नहीं मिली। इस घटना को लेकर लोगों में काफी रोष है। प्रशासन इस मामले में कोई टिप्पणी करने से बचता नजर आ रहा है। अब शराबबंदी को लेकर बिहार में सवाल उठने लगे हैं। इसुआपुर की घटना को लेकर सड़क से लेकर सदन तक हंगामा मचा हुआ है। विपक्षी दल भाजपा इस मुद्दे को लेकर नीतीश सरकार पर करारा हमला कर रही है। 11 दिसंबर से बिहार विधानसभा का सत्र भी चल रहा है। जहरीली शराब से हुई मौत को लेकर विपक्षी दल भाजपा ने आज बिहार विधानसभा में जमकर हंगामा किया। भाजपा के सदस्यों ने शराबबंदी पर विफल होने के आरोप में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस्तीफे की मांग की। सदन में शराबबंदी के मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा भाजपा आमने-सामने आ गए। भाजपा के तीखे आरोप के कारण मुख्यमंत्री सदन में आपा खो बैठे तथा उन्होंने भाजपा के सदस्यों पर अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया। मुख्यमंत्री तू-तड़ाका पर भी उतर आए। मुख्यमंत्री ने कहा कि जब शराबबंदी का निर्णय लिया गया था उस वक्त भाजपा ने समर्थन दिया था। अचानक भाजपा अपने राजनीतिक लाभ के लिए अपना बयान बदल रही है। प्रतिपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा ने भी मुख्यमंत्री पर करारा हमला किया। उन्होंने कहा कि सदन के रिकॉर्ड से प्रतिपक्ष के नेता का बयान हटाया गया है, जबकि मुख्यमंत्री का नहीं। उन्होंने अपमानजनक भाषा के इस्तेमाल के लिए मुख्यमंत्री से माफी मांगने की मांग की। सदन की गर्माहट का असर सदन के बाहर भी देखने को मिल रहा है। प्रश्न यह उठता है कि बिहार में शराबबंदी के बावजूद शराब कहां से मिल रहा है? निश्चित रूप से इस मामले में प्रशासन की मिलीभगत है। शराबबंदी के कारण कम आय वाले लोग ज्यादा कीमतों पर शराब खरीदने में असमर्थ हैं। ऐसी स्थिति में वे लोग अवैध रूप से बने देसी शराब का सेवन कर रहे हैं, जिसका नतीजा इसुआपुर की घटना है। राज्य में इस तरह की यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी राज्य के कई हिस्सों में जहरीली या अवैध शराब पीने से कई लोगों की मौत हो चुकी है। हर बार प्रशासन लीपापोती कर मामले को दबा देता है। फिर जब नई घटना होती है तो इस पर बहस शुरू हो जाती है। आज नीतीश कुमार जिस राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ खड़े हैं, उस पार्टी ने भी गठबंधन से पहले शराबबंदी पर नीतीश सरकार को घेरा था। आज उनकी राजनीतिक मजबूरी ने जुबान बंद रखने पर मजबूर कर दिया है। शराबबंदी को लेकर महागठबंधन में भी खींचतान चल रही है। राजद के प्रमुख नेता सुधाकर सिंह ने दो दिन पहले ही शराबबंदी के मुद्दे पर नीतीश कुमार कटघड़े में खड़ा किया था। कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने भी इस मुद्दे पर बिहार सरकार को आइना दिखाया था। इन दोनों नेताओं का आरोप है कि प्रशासन की मिलीभगत से शराबबंदी का कोई मतलब नहीं रह गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस मुद्दे की समीक्षा करनी चाहिए। चौतरफा घिरे नीतीश कुमार लगातार दबाव में हैं। राज्य में तीन विधानसभाओं के लिए हुए उपचुनाव में दो गोपालगंज एवं कुढ़नी में भाजपा को जीत मिली है, जबकि मोकामा में राजद को विजय हासिल हुई है। कुढ़नी में जदयू का उम्मीदवार बुरी तरह पराजीत हुआ है। अपनी गिरती साख को देखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बौखला गए हैं। विधानसभा में उनकी बौखलाहट स्पष्ट रूप से दिखाई दी। महागठबंधन के विधायक दल की बैठक के दौरान उन्होंने कहा कि महागठबंधन 2025 का चुनाव उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ेगी। इसका मतलब साफ है कि नीतीश कुमार राजद को परोक्ष रूप से आश्वासन देना चाहते हैं कि आप हड़बड़ाए नहीं, हम आपको गद्दी सौंपेंगे। इसका सियासी मायने यह भी है कि नीतीश कुमार वर्तमान कार्यकाल पूरा करेंगे। उनके इस आश्वासन से सब कुछ ठीकठाक नहीं है। जदयू संसदीय दल के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा का बयान यह बताने के लिए काफी है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि महागठबंधन का पहला काम 2024 में भाजपा को हराना है। 2025 की बात बाद में देखी जाएगी। अगर नीतीश कुमार राजद के सामने आत्मसमर्पण करते हैं तो जदयू के कुछ नेता पाला भी बदल सकते हैं। कुल मिलाकर शराबबंदी के मुद्दे पर भाजपा बिहार में जमीन तलाशने की शुरूआत कर चुकी है।