गुजरात, हिमाचल प्रदेश एवं दिल्ली नगर निगम के चुनाव नतीजों पर गौर करने से पता चलता है कि विपक्षी पार्टियों ने अपनी रणनीति में परिवर्तन किया है। दोनों राज्यों एवं दिल्ली नगर निगम के चुनाव परिणाम को देखने के बाद यह पता चलता है कि अब चुनाव चेहरा बनाम चेहरा नहीं, बल्कि चेहरा बनाम मुद्दों की लड़ाई हो गया है। अगले छह महीनों के भीतर होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भी पटकथा तैयार करने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। भाजपा ने जहां मुद्दों से ज्यादा प्रधानमंत्री की लेाकप्रियता और करिश्मे के बल पर गुजरात चुनाव में ऐतिहासिक कामयाबी पाई। पहले भी हर चुनाव को भाजपा मोदी के करिश्मे से जीतने की कोशिश करती आ रही है और आगे भी करेगी। वहीं कांग्रेस के पास मोदी के मुकाबले वैसा कोई मजबूत चेहरा नहीं होने की वजह से चुनावी मैदान में वह कमजोर पड़ रही है। यही कारण है कि कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में चेहरे से ज्यादा मुद्दों पर जोर देने की रणनीति अपनाई और चुनाव जीतने में कामयाब रही। इसी तरह आम आदमी पार्टी ने दिल्ली नगर निगम के चुनाव में राजधानी के कूड़े को एक ऐसे जीताऊ मुद्दा बनाने में सफल रही जिसने भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया। यही कारण है कि अब आगे का चुनाव चेहरा बनाम मुद्दों में बदलती नजर आ रही है। संसदीय प्रणाली वाले भारतीय लोकतंत्र में पिछले एक दशक में मुद्दों पर चेहरा भारी पड़ता रहा है। वर्ष 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनाव रहे हों या राज्य विधानसभा चुनाव, ज्यादातर मामलों में मुद्दों पर चेहरा भारी पड़ता रहा है। भाजपा को हमेशा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता चुनाव जिताऊ रही है। लेकिन कुछ राज्यों में क्षेत्रीय नेताओं जैसे ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल, के चंद्रशेखर राव, नवीन पटनायक एवं जगन मोहन जैसे चेहरे अपने राज्यों में मोदी के चेहरे और भाजपा पर भारी पड़े। इसी साल उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरेां की संयुक्त लोकप्रियता विपक्षी पार्टी के चेहरों की लोकप्रियता पर भारी पड़ी। पंजाब में अरविंद केजरीवाल एवं भगवंत मान के चेहरों ने कांग्रेस का सुपड़ा साफ कर दिया। हालांकि कांग्रेस ने गुजरात में भी यही रणनीति अपनाई थी, किंतु संगठन की कमजोरी ने कांग्रेस को हाशिए से बाहर कर दिया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तथा केंद्रीय पर्यवेक्षक का पद कई महीनों तक खाली रहा। राहुल गांधी की भारत जोड़ो पद यात्रा के दौरान भी कांग्रेस ने केवल मुद्दों को उठाकर मोदी सरकार को घेरने का काम किया है। कांग्रेस नहीं चाहती है कि भारत जोड़ो यात्रा मोदी बनाम राहुल गांधी बन जाए। इस यात्रा के दौरान कांग्रेस के नेताओं ने पुरानी पेंशन योजना, अग्निवीर भर्ती योजना, सेब किसानों के उत्पादन की पैकेजिंग पर जीएसटी, रसोई गैस व पेट्रोल डीजल की महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दों पर फोकस करती रही है। हिमाचल में हालांकि कांग्रेस तथा भाजपा के बीच मतों का अंतर महज 0.9 फीसदी रहा, किंतु सीटों की संख्या में अंतर पड़ गया। हिमाचल में मुद्दों के आगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के चेहरे का प्रभाव नहीं पड़ा। हिमाचल में भाजपा को सबसे बड़ा झटका बागी नेताओं के कारण लगा। 68 सीट में से 21 सीटों पर भाजपा के बागी उम्मीदवार अपने पार्टी के उम्मीदवारों को चुनौती दे रहे थे। वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव होना है। उसके पहले कई राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री मोदी के मुकाबले विपक्ष के पास कोई ऐसा लेाकप्रिय चेहरा नहीं है। कई क्षेत्रीय छत्रप प्रधानमंत्री को चुनौती दे रहे हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसे नेताओं की पहुंच कुछ ही राज्यों तक सीमित है। ये छत्रप नेता एक-दूसरे के पीछे चलने को तैयार नहीं हैं। सबको लगता है कि प्रधानमंत्री पद के लिए वही सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं। उदाहरण के तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव जैसे नेता अपने को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मानते हैं। कांग्रेस राहुल गांधी को अपना उम्मीदवार मानती है। ऐसी स्थिति में विपक्षी के संयुक्त उम्मीदवार के लिए सहमति बनना काफी मुश्किल लग रहा है। ऐसा लग रहा है कि विपक्षी पार्टियां इस समस्या का हल निकालने के लिए प्रधानमंत्री के चेहरे के खिलाफ मुद्दों की राजनीति कर सकती है। विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार के नाकामयाबी को उछाल कर भाजपा का रास्ता अवरूद्ध करने की कोशिश कर सकती है। आगे मिलने वाली चुनौती को देखते हुए प्रधानमंत्री ने विकसित भारत की योजना के साथ आगे बढ़ने की घोषणा कर विपक्ष को फिर से हैरान कर दिया है। कुल मिलाकर विपक्ष आगे का चुनाव मुद्दों के आधार पर लड़ने की ओर आगे बढ़ रहा है।