असम सरकार ने महान संत श्रीमंत शंकरदेव की जन्म स्थली बटद्रवा को अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए सुरक्षा-व्यवस्था के बीच अभियान शुरू किया है। धिंग सर्किल के तहत बटद्रवा मौजे में करीब 12 सौ बीघा सरकारी जमीन पर करीब तीन सौ परिवारों ने अवैध रूप से दखल कर घर बना लिया है। जिला प्रशासन द्वारा नोटिस देने के बाद बहुत से लोगों ने खुद ही अवैध कब्जा को हटा लिया, किंतु बहुत से लोग अभी भी कुंडली मारकर बैठे हैं। प्रशासन ने शांति बाजार, हाईडुब्बी, लालनगांव एवं बालि सत्र इलाके में अभियान चलाया है। किसी अप्रत्याशित घटना के मद्देनजर पहले से ही उस क्षेत्र में एक हजार से अधिक सुरक्षा बल के जवान तैनात किए गए हैं। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। प्रदेश भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में यह वादा किया था कि अगर भाजपा की सरकार आएगी तो बटद्रवा को अतिक्रमण से मुक्त कराया जाएगा। असम सरकार के निर्देश पर नगांव जिला प्रशासन पहले से ही तैयारी कर रही थी। बटद्रवा के मुद्दे को लेकर असम विधानसभा में भी एआईयूडीएफ ने हंगामा किया था। लेकिन मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्वशर्मा ने विधानसभा में स्पष्ट कर दिया कि राज्य में अवैध अतिक्रमण के खिलाफ अभियान जारी रहेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार सरकारी एवं वन्य भूमि पर अवैध कब्जे को बर्दाश्त नहीं करेगी। सदन में 21 दिसंबर को शून्य काल में कांग्रेस विधायक कमलाक्ष्य दे पुरकायस्थ के उठाए गए मुद्दे पर मुख्यमंत्री ने इस अभियान को धर्म के साथ जोड़ने पर विपक्ष को लताड़ते हुए कहा कि इसका धर्म से कोई संबंध नहीं है। यह प्रक्रिया रुकने वाली नहीं है। पूरे राज्य में बटद्रवा की तरह वन एवं सरकारी भूमि को अवैध कब्जे से मुक्त कराया जाएगा। सत्र असमिया लोगों की पहचान एवं संस्कृृति का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने कहा कि गौहाटी उच्च न्यायालय के निर्देश पर चल रहा यह अभियान राज्य के दूसरे क्षेत्रों में भी जारी रहेगा। बटद्रवा के बाद ग्वालपाड़ा में अतिक्रमण हटाओ अभियान जारी रहेगा। इससे पहले दरंग जिले के धलपुर में सितंबर 2021 में अतिक्रमण हटाओ अभियान शुरू किया गया था। उस दौरान हुई हिंसा में दो नागरिकों की मौत हो गई थी, जबकि 20 अन्य घायल हो गए थे। अगर जिला प्रशासन सतर्क रहता तो इस तरह की घटनाएं नहीं होती। यही कारण है कि नगांव में अभियान शुरू करने से पहले कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था की गई थी। राज्य के अनेक जगहों पर लोगों ने सरकारी, वन एवं रिजर्व फोरेस्ट की जमीन पर कब्जा किया हुआ है। इसके पीछे एक बड़ा गिरोह सक्रिय है, जिसमें सरकारी एवं वन विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी भी शामिल हैं। बार-बार अतिक्रमण हटाओ का वादा करने के बाद भी अभी तक स्थिति की जस की तस बनी हुई है। बटद्रवा अभियान के बाद उम्मीद की नई किरण जगी है। गुवाहाटी महानगर में भी 16 पहाड़ी क्षेत्र हैं। जिसके 71 प्रतिशत हिस्से पर लोगों ने अवैध कब्जा किया हुआ है। इन जमीनों को खाली करवाने की जरूरत है। यह तभी संभव होगा जब जिला प्रशासन, वन विभाग तथा संबंध एजेंसियां मिलकर आगे काम करेगी। इसके लिए मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति की भी जरूरत है। कई जगहों पर संदिग्ध नागरिकों ने भी सरकारी एवं वन विभाग की भूमि पर अवैध कर लिया है, जिससे देश और राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो गया है। ऐसे इलाकों में असमाजिक एवं आतंकी तत्व आराम से शरण ले लेते हैं तथा राष्ट्रविरोधी गतिविधियां चलाते हैं। राज्य के चर इलाके जेहादी एवं कट्टरपंथी तत्वों का अड्डा बना हुआ है। वन एवं पहाड़ी क्षेत्रों पर अवैध कब्जे से पर्यावरण के लिए भी खतरा बन गया है। राज्य सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है। अन्यथा स्थिति और बदतर हो जाएगी। असम में स्थिति सभी सत्रों एवं धार्मिक स्थानों की भूमि पर किए गए कब्जे को हटाने के लिए जोरदार अभियान चलाने की जरूरत है। हिमंत विश्वशर्मा सरकार ने इस दिशा में जो कदम उठाया है वह सराहनीय है। श्रीमंत शंकरदेव की जन्मस्थली को अवैध कब्जे से मुक्त कराने के लिए पिछले कई वर्षों से मांग की जा रही थी किंतु अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया था। हिमंत सरकार ने इस दिशा में अच्छी शुरुआत की है।
अवैध कब्जा हटाओ अभियान
