केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल की ओर से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मनोज झा पर की गई यह टिप्पणी काफी चर्चा में रही, जिसमें उन्होंने कहा कि इनका (मनोज झा) का वश चले, तो पूरे देश को बिहार बना दें। केंद्रीय मंत्री गोयल की इस टिप्पणी पर राजनीतिक विवाद हुआ और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इसके लिए जमकर पीयूष गोयल की आलोचना की। विवाद को बढ़ता देख मंत्री गोयल ने अपनी टिप्पणी वापस ले ली क्योंकि बिहार के नेताओं ने गोयल की टिप्पणी को बिहारी स्वाभिमान और बिहारी अस्मिता से जोड़ना शुरू कर दिया। उक्त बयान को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा बखेड़ा खड़ा न हो जाए, उसके पहले गोयल ने अपनी टिप्पणी वापस लेने में ही अपनी भलाई समझी, इस टिप्पणी के बाद बिहार एक बार फिर अपने पिछड़ेपन को लेकर चर्चा में आ गया। आखिर ऐसा क्यों होता है कि जब-जब गरीबी, अशिक्षा, खराब स्वास्थ्य सुविधा व समेकित पिछड़ेपन की बात चलती है, तो बिहार का नाम सामने आ जाता है। आजादी के 75 साल बाद भी विकास के मापदंड पर बिहार का नाम अग्रणी राज्यों की सूची में आखिर क्यों नहीं शुमार हो सका है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम)  की ओर से बीते 20 दिसंबर को साल 2022 के लिए जारी सामाजिक प्रगति सूचकांक (एसपीआई) जारी हुआ, उसके मुताबिक बिहार का नाम सबसे कम प्रगति वाले राज्यों में है। बिहार 100 में से 44.47 अंकों के साथ असम व झारखंड के साथ सबसे निचले स्तर पर है। यह सूचकांक एक रिपोर्ट है, जिसमें तीन बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं, बेहतर जीवन शैली के आधार और अवसरों पर राज्यों के प्रदर्शन का आकलन किया जाता है, वहीं नीति आयोग की एसडीजी इंडिया इंडेक्स में भी 100 में से 52 अंकों के साथ बिहार सबसे नीचे है। हालांकि, बिहार की सरकार ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हुए कड़ा प्रतिवाद किया। इस इंडेक्स से पता चलता है कि विकास के मोर्चे पर कौन-सा राज्य कितना आगे बढ़ रहा है। इसी तरह नीति आयोग के भारत नवाचार सूचकांक (इनोवेशन इंडेक्स)-2021 की रिपोर्ट में भी बिहार 15वें स्थान पर है, इसमें राज्य स्तर पर नवाचार क्षमताओं और पारिस्थितिकी तंत्र की पड़ताल की जाती है। स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से विश्व बैंक की तकनीकी सहायता से तैयार की गई नीति आयोग के चौथे स्वास्थ्य सूचकांक (हेल्थ इंडेक्स) पर भी बिहार 18वें यानी नीचे से दूसरे स्थान पर दर्ज है। सबसे नीचे 19वें स्थान पर उत्तर प्रदेश का नाम है। जाहिर है कि अन्य राज्यों की तुलना में बिहार कई मापदंडों (इंडेक्स) पर पिछड़ा है। बिहार की सत्तारूढ़ पार्टी जनता दल यूनाइटेड के सांसद राजीव रंजन सिंह ने नीति आयोग की 2020-21 की रिपोर्ट में बिहार को सबसे पिछड़ा राज्य बताने पर लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान पूछा था कि इसके पिछड़ेपन की वजह क्या है? इस पर केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने अपने लिखित जवाब में कहा कि 115 क्षेत्रों में से 100 में बिहार को देशभर में सबसे कम 52 अंक मिले हैं। बिहार में 33.74 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। अगर वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) की बात की जाए, तो यह बढ़कर 52.5 प्रतिशत हो जाता है। पांच वर्ष से कम उम्र के 42 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, जबकि 15 वर्ष से ऊपर के लोगों की साक्षरता दर 64.7 प्रतिशत है। केवल 12.3 प्रतिशत परिवार ही हेल्थ इंश्योरेंस के दायरे में है। साथ ही, बिहार में सबसे कम 33.99 प्रतिशत लोग इंटरनेट का और महज 50.65 प्रतिशत लोग मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं। इसी तरह नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 24.32 प्रतिशत लोगों के पास संपत्ति नहीं है। एसडीजी इंडेक्स के अनुसार संपत्ति का मालिक उसे माना जाता है, जिसके पास टेलीफोन, फ्रिज, मोटरसाइकिल, कम्प्यूटर, साइकिल, रेडियो और टीवी में कोई दो चीजें उसके पास हो। राज्य में चार प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिनके पास बैंक अकाउंट नहीं है, वहीं 45.62 प्रतिशत महिलाओं को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। उल्लेखनीय है कि प्रति व्यक्ति आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, तकनीक, सुरक्षा, रेल-सड़क यातायात और सांस्थानिक स्थिति किसी भी राज्य के विकास के आकलन के मुख्य मापदंड हैं।