नेपाल में पिछले कुछ दिनों में सियासी समीकरण तेजी से बदला है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल-माओवादी सेंटर (सीपीएन-एमसी) ने कुछ छोटे राजनीतिक दलों के साथ मिलकर नेपाली कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन को बहुमत भी मिला था। लेकिन सियासी दावपेंच के बीच सीपीएन-एमसी के अध्यक्ष पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड ने अचानक सीपीएन-यूएमएल के साथ हाथ मिलाकर नेपाल में सरकार बना ली है। प्रचंड ने 26 दिसंबर को नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। एक दिन पहले ही राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी ने उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। प्रचंड को 275 सदस्यीय प्रतिनिधिसभा में 169 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है। उन्हें सीपीएन-यूएमएल के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी सहित कई अन्य छोटे-छोटे दलों का समर्थन का प्राप्त है। समझौते के अनुसार प्रचंड और केपी शर्मा ओली ढाई-ढाई साल तक प्रधानमंत्री रहेंगे। शुरुआत में प्रचंड ने शपथ ली है किंतु ढाई साल के बाद केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री बनेंगे। गठबंधन को मजबूत रखने के लिए नए मंत्रिमंडल में तीन उप प्रधानमंत्री शामिल किए गए हैं। बहुमत के बावजूद प्रचंड को 30 दिन के भीतर निचले सदन में विश्वास मत हासिल करना होगा। समर्थन के अभाव में 89 सीट जीतने वाली नेपाली कांग्रेस सत्ता से वंचित रह गई है। प्रचंड की मांग थी कि पहले उन्हें ढाई साल के लिए प्रधानमंत्री बनाया जाए किंतु नेपाली कांग्रेस शेर बहादुर देउबा को पहले प्रधानमंत्री बनानी चाहती थीं। नेपाली कांग्रेस को यह भय था कि कही प्रचंड अपने ढाई साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद अपने वादे से न मुकर जाएं। इसके बाद ही सीपीएन-एमसी तथा नेपाली कांग्रेस के बीच गठबंधन टूट गया तथा प्रचंड नाटकीय रूप से गठबंधन से बाहर आ गए। प्रचंड एवं उनके मुख्य साझेदार ओली को चीन का समर्थक माना जाता है। अपने शासनकाल के दौरान ओली भारत विरोधी कई फैसले ले चुके हैं, जिसके कारण दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था। ओली ने पिछले साल दावा किया था कि सामरिक रूप से महत्वपूण तीन क्षेत्रों लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाल के राजनीतिक मानचित्र में शामिल करने के कारण उन्हें सत्ता से बाहर करने का प्रयास किया गया था। प्रचंड ने भी हाल के वर्षों में कहा था कि भारत और नेपाल को द्विपक्षीय सहयोग की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए इतिहास में छूटे कुछ मुद्दों का कूटनीतिक रूप से समाधान किए जाने की आवश्यकता है। मालूम हो कि नेपाल का भारत के पांच राज्यों सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 1850 किमी से अधिक की सीमा लगती है। किसी बंदरगाह आदि की गैर मौजूदगी के कारण माल और सेवाओं के परिवहन के लिए नेपाल भारत पर बहुत कुछ निर्भर करता है। समुद्री मार्ग के लिए भी नेपाल भारत के ऊपर आश्रित है। दोनों देशों के बीच वर्षों से बेटी-रोटी का संबंध रहा है। ऐसी स्थिति में नेपाल में किसी भी सियासी परिवर्तन पर भारत को नजर रखना आवश्यक है। चीन पहले से ही यह चाहता था कि नेपाल में किसी तरह दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों को एक मंच पर लाकर नेपाली कांग्रेस को सत्ता से दूर रखा जाए। लेकिन चुनाव में चीन के मुख्य समर्थक केपी शर्मा ओली की नेतृत्वाली सीपीएम-यूएमएल को बहुमत नहीं मिली। लेकिन नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन में खटपट का फायदा ओली को मिला। दोनों अब कम्युनिस्ट पार्टियां एक मंच पर आ गई हैं तथा कुछ छोटी पार्टियों को लेकर सरकार का गठन कर चुकी है। अब भारत को फिर से चौकन्ना रहने की जरूरत होगी। नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व में चल रही सरकार के शासन में भारत और नेपाल के बीच संबंध सुधर रहे थे। लेकिन अब प्रचंड की सरकार के शासन में निश्चित रूप से फिर से चीन का दबदबा रह सकता है। ओली किसी भी कीमत पर नई सरकार को भारत समर्थक होने नहीं देंगे। चीन नेपाल को कर्ज जाल में फंसाकर पहले ही अपनी गिरफ्त में ले चुका है। अब भारत के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो रही है कि अब किस तरह नेपाल को अपने पाले में रखेगा।
नेपाल में बदला सियासी समीकरण
