जोशीमठ उत्तराखंड का एक मनोरम स्थान है जहां जमीन दरक रही है, पूरे शहर को ढह जाने और तबाह हो जाने का खतरा है। बीते साल नवंबर में यह सिलसिला शुरू हुआ,परंतु  इसकी नेशनल लेवल पर चर्चा तब हुई, जब मुख्य सड़क में बड़ी दरार आ गई। घरों के ढह जाने का खतरा बढ़ा तो स्थानीय लोग सड़क पर मशाल जुलूस के जरिए विरोध प्रदर्शन करने लगे।  स्थानीय मारवाड़ी वार्ड में बीते दिनों जमीन फाड़कर अचानक पानी निकलने लगा। वहां जेपी कंपनी के 35 भवनों को आनन-फानन में खाली कराया गया। कारण कि वहां पानी का जलस्तर दोगुना हो गया है। कई लोगों ने अपना घर छोड़ रिश्तेदारों के यहां पनाह ली तो प्रशासन ने भी 93 मकानों के लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया। इलाके में 561 मकानों में दरारें आ चुकी हैं। इसके खिलाफ प्रभावित लोगों ने दिनभर बदरीनाथ हाईवे पर चक्का जाम रखा, इसमें लोगों की चिंताएं और गुस्सा जायज हैं। कारण कि यहां किसी भूकंप की वजह से दरार नहीं आई।  ना ही कोई हिमस्खलन हुआ, बल्कि ये एक तरह का मैन-मेड-डिजास्टर है। सरकार और कंपनियों की गलती का नतीजा है। सरकार को अपनी गलतियों का अहसास हो चुका है। सरकार ने जोशीमठ में जान-माल की सुरक्षा के लिए बड़ा कदम उठाया है। सरकार ने शहर के लगभग डेढ़ किलोमीटर के भूधंसाव प्रभावित क्षेत्र को आपदाग्रस्त घोषित कर दिया है।  इस त्रासदी पर पीएमओ भी नजर बनाए हुए है। इसी कड़ी में आज पीएमओ ने इस मुद्दे पर एक उच्च स्तरीय बैठक की। प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पीके मिश्रा प्रधानमंत्री कार्यालय में भारत सरकार के कैबिनेट सचिव, भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्यों के साथ एक उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक की गई। जोशीमठ के जिला पदाधिकारी भी इस मुद्दे पर वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से मौजूद रहे। वीसी के माध्यम से उत्तराखंड के वरिष्ठ अधिकारी भी समीक्षा में शामिल हुए। जोशीमठ के  ऐतिहासिक स्थान पर जमीन के धंसने की खबर ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। खासतौर पर इस घटना ने जमीन के नीचे चल रही परियोजनाओं पर पुनर्विचार के लिए बाध्य किया है। यह आध्यात्मिक स्थली और सबसे पुराना जोशीमठ भूधंसाव के चलते अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है। बद्रीनाथ हाइवे पर हेलंग से मारवाड़ी तक लगभग छह स्थानों पर भूमि का धंसाव हुआ है। सेना और आइटीबीपी के आवासीय परिसरों में भी दरारें पड़ी हैं। वहीं प्रदेश सरकार ने भी इस खतरे से निपटने, प्रभावित परिवारों की सुरक्षा और उन्हें राहत देने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शनिवार को जोशीमठ पहुंचे और भूधंसाव वाले क्षेत्रों का दौरा किया। प्रभावितों से मिलकर उन्हें ढाढस बंधाने के दौरान धामी भावुक हो गए। उन्होंने संकटग्रस्त परिवारों की सहायता का भरोसा दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि जोशीमठ की सुरक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाएंगे। मुख्यमंत्री ने प्रभावित क्षेत्रों में राहत व बचाव कार्यों के साथ विकास कार्यों के अनुश्रवण को शासन एवं स्थानीय स्तर पर उच्च स्तरीय समन्वय समिति गठित करने का निर्देश दिया।   उल्लेखनीय है कि जोशीमठ कभी कत्यूरी राजाओं की राजधानी थी, जिसका उस समय का नाम कार्तिकेयपुर था। लगता है कि एक क्षत्रिय सेनापति कंटुरा वासुदेव ने गढ़वाल की उत्तरी सीमा पर अपना शासन स्थापित किया तथा जोशीमठ में अपनी राजधानी बसाई। वासुदेव कत्यूरी ही कत्यूरी वंश का संस्थापक था। जिसने 7वीं से 11वीं सदी के बीच कुमाऊं एवं गढ़वाल पर शासन किया। फिर भी हिंदुओं के लिए एक धार्मिक स्थल की प्रधानता के रूप में जोशीमठ आदि शंकराचार्य की संबद्धता के कारण मान्य हुआ। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह समस्या प्राकृृतिक नहीं, मानवजनित  है। यह प्रकृृति की ओर से हमारे लिए चेतावनी है, इसलिए सरकारों को इस मानवीय त्रासदी पर नजर रखने की जरूरत है।